देखिए कश्मीरियों के हमदर्द `पाकिस्तान` के दिए हुए जख्मों के कभी ना मिटने वाले निशान
आज कश्मीर यही कह रहा है कि हमारा मतलब केवल अमन से है, विकास से है. लेकिन एक साल पहले स्पेशल स्टेटस खत्म हो जाने के बाद से ये सोच पाकिस्तान अभी तक पचा नहीं पाया है. उसी सोच को हमारा जवाब है ज़ी न्यूज की ये रिपोर्टिंग. कश्मीर की आवाज हर किसी तक पहुंचनी बेहद जरूरी है, क्योंकि बहुत से लोग आप तक ये आवाज पहुंचने नहीं देना चाहते.
नई दिल्ली: पाकिस्तान के झंडे और भारत के झंडे के बीचों बीच लगी पोस्ट (Indo-Pak Border) पर रहने वाले किसके साथ जाना चाहते हैं? ये एक ऐसा सवाल है जिसका सही जवाब देने के लिए इन लोगों को भी हिम्मत करनी पड़ती है. इन्हें ये डर सताता रहता है कि अगर इन्होंने देश के बारे में कुछ सकारात्मक सोच भी लिया तो आतंक को शरण देने वाले और कश्मीर की आजादी का झंडा बुलंद करने वाले इन्हें मार ना डालें. इसलिए आज इनकी बात आप ध्यान से सुनें, क्योंकि यही इनके सच का सबसे बड़ा अवॉर्ड होगा.
जिस कश्मीर (Jammu & Kashmir) की सरपरस्ती के नाम पर पाकिस्तान (Pakistan) धारा 370 खत्म किए जाने का एक साल होने पर मातम मना रहा है, आज उसकी असलियत हम आपको दिखाएंगे. ZEE News वहां पहुंचा है जहां आज तक कोई दूसरा चैनल नहीं पहुंच पाया. आज हम आपको पाकिस्तान की फौज का असली चेहरा दिखाएंगे. वो कहते हैं लड़ाई हिंदुस्तान की फौज से है, लेकिन निशाना कश्मीर के मासूम नागरिकों को बनाया जा रहा है. इनका गुनाह केवल इतना है के ये सरहद पर बसे हुए हैं. हर वक्त पाकिस्तान के निशाने पर होते हैं.
भारत पाक सीमा पर बने सतपुरा गांव में घरों पर पाकिस्तान की ओर से दागे गए मोर्टार के निशान आज भी हरे हैं. यहां रहने वाले बच्चे डरे सहमे रहते हैं. यहां से आंख उठाकर देखें तो पाकिस्तान की पोस्ट सामने नजर आती है. खाना खाते हैं तो एक आंख सामने की तरफ देखती रहती है कहीं भागना ना पड़े. गांव में एक घर ऐसा भी है जिसका गेट, घर की छत सब उड़ चुके हैं. यहां रहने वाले लोग दिन-रात गोले दागे जाने के खतरे के बीच जिंदगी जी रहे हैं.
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उल्लेखनीय है कि तंगधार इलाके में 2003 के बाद से शांति कायम थी, लेकिन पिछले साल पाकिस्तान ने इस इलाके में अपनी नापाक हरकतें शुरू कर दी. एक साल में 6 आम नागरिक इसी गोलीबारी में मारे भी गए. लोगो का कहना है कि पाकिस्तान खुद को कश्मीर का हमदर्द बता रहा है. लेकिन हमारी जान का दुश्मन भी बना हुआ है. हम उसके हाथों से कब मारें जाएंगे, गोले बारूद बरसने पर भागने और जान बचाने का मौका मिलेगा या नहीं इन्हीं सवालों के घेरे में जिंदगी जी रहे हैं.
गांव के सरपंच के बताया कि पिछले साल धारा 370 हटी तो यहां रहने वालों को उम्मीद जगी कि अब ये खूबसूरत इलाका विकास की और चल निकलेगा. पिछले साल पंचायती राज व्यवस्थआ पटरी पर लौटी, सरपंच के एकाउंट में पैसे आने लगे, लेकिन दिन रात की दुश्मनी और नफरत पाल कर बैठे इस पड़ोसी की हरकतों ने इन लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है. बस इस आस में बैठे रहते हैं कि जब गोलीबारी हो तो भारतीय सेना इधर से जवाब दे और इस बीच ये कहीं पनाह ढूंढ कर जान बचा लें.
गांव के हमें कई जिंदा बम भी मिले जिन्हें अभी निष्क्रिय किया जाना है. गांव के लोग बताते है कि ये बम हाल ही के दिनों में यहां आकर गिरे थे, लेकिन फटे नहीं थे. सेना ने इसे कवर तो कर दिया लेकिन इसे बेकार करना आसाना नहीं है.
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आज कश्मीर यही कह रहा है कि हमारा मतलब केवल अमन से है, विकास से है. लेकिन एक साल पहले स्पेशल स्टेटस खत्म हो जाने के बाद से ये सोच पाकिस्तान अभी तक पचा नहीं पाया है. उसी सोच को हमारा जवाब है ज़ी न्यूज की ये रिपोर्टिंग. कश्मीर की आवाज हर किसी तक पहुंचनी बेहद जरूरी है, क्योंकि बहुत से लोग आप तक ये आवाज पहुंचने नहीं देना चाहते.
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