नई दिल्‍ली: आज हम ऐसी दो चीजों की बात करेंगे जो भारत के कई घरों में शायद स्‍टोर रूम में रखी हों या कबाड़ी की दुकान में पहुंचा दी गई हों. ये आज की पीढ़ी के लिए प्लास्टिक के डिब्बे से ज्यादा कुछ नहीं हैं, लेकिन 70 से 90 के दशक के लोग इसे कैसेट और टेप रिकॉर्डर के नाम से जानते हैं. कैसेट एक प्लास्टिक के कवर में होता था और उसके ऊपर उस फिल्म का पोस्‍टर लगा रहता था, जिस फिल्म के गाने कैसेट में रिकॉर्ड किए जाते थे. इस कैसेट के भीतर एक टेप होता था. गाने उसी में कोड किए जाते थे. इस टेप को सुनने के लिए प्‍लेयर में लगाया जाता था और फिर आपकी मर्जी का संगीत बजने लगता था. आज की पीढ़ी के लिए ये सब अजूबा जैसा है. पर ये भारत की एक बहुत बड़ी आबादी का बेहद भावुक सच है. 


संगीत की दुनिया में क्रांति लाने वाले Lou Ottens 


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आज अचानक इस कैसेट की बात हम इस लिए कर रहे हैं क्योंकि, इसका अविष्कार करने वाले Lou Ottens का 94 साल की उम्र में इसी महीने 6 मार्च को निधन हो गया. वो नीदलैंड्स में रहते थे. वर्ष 1962 में Lou Ottens ने कैसेट बनाया था. इसके बाद संगीत की दुनिया में क्रांति आ गई थी. इसकी वजह से कोई भी आदमी कभी भी अपनी मर्जी के मुताबिक अपना संगीत सुन सकता था । आज की पीढ़ी इस बात के महत्व को नहीं समझ पाएगी क्योंकि उनके तो फोन में दुनिया के संगीत की लाइब्रेरी हर समय मौजूद रहती है, पर हम लोगों ने वो वक्त भी देखा है जब दिनभर में कुछ मिनट के लिए रेडियो पर गाने सुने जा सकते थे. इसमें आपकी पसंद का कोई महत्व नहीं था. गाने सुनने के लिए लोग रेडियो स्टेशन के नाम चिट्ठियां लिखते थे. फिर भी उन्हें पसंद का गाना सुनने को मिलेगा इसकी गारंटी नहीं होती थी. फिर एक दिन मार्केट में Lou Ottens के कैसेट आ गए और संगीत को सुनने सुनाने का तरीका ही बदल गया. 


1962 में बनाया पहला कैसेट 


Lou Ottens पेशे से इंजीनियर थे. वो एक प्रसिद्ध इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कंपनी में काम करते थे. इन्हें संगीत का काफी शौक था, लेकिन मर्जी के मुताबिक, संगीत सुनने के लिए उन्हें जिस ग्रामोफोन की मदद लेनी पड़ती थी. उसे चलाना कसरत करने से कम नहीं था. इसमें एक डिब्बा होता था, उसमें एक बड़ा सा लाउड स्‍पीकर लगा होता था और नीचे डिस्‍क लगाने की जगह होती थी. गाने उसी डिस्‍क में रिकॉर्ड किए जाते थे. जरा सी चूक हो जाए तो उनके टूटने का खतरा भी रहता था और ये महंगे भी बहुत होते थे इसलिए ज्यादातर अमीर लोगों के यहां ही ये देखे जाते थे. Lou Ottens ने 1960 में हल्के और सस्ते कंज्यूमर फ्रेंडली गैजेट पर काम शुरू किया. दो साल की मेहनत के बाद 1962 में Lou Ottens ने पहला कैसेट बनाया. यह भारी भरकम ग्रामोफोन की जगह हल्का और सस्ता था. उस समय एक ग्रामोफोन के डिस्‍क की कीमत 500 से 3,000 रुपये तक थी, जबकि एक कैसेट की कीमत 50 रूपये से 200 रूपये ही थी. सस्ते और सुविधाजनक ऑप्‍शन ने पूरी दुनिया में संगीत को सुनने का तरीका बदल दिया. 


ऑडियो कैसेट ने समाज में एक बहुत बड़ा बदलाव किया. इसने बुद्धिजीवियों और अमीरों की कैद से संगीत को निकाल कर देश के हर घर में पहुंचा दिया.  इस अविष्कार की खास बात ये थी कि इस प्रोडक्‍ट ने पूरी इंडस्‍ट्री को जन्म दिया. मतलब ये कि कैसेट आया तो टेप प्‍लेयर और टेप रिकॉर्डर बने, फिर उसे चलाने के लिए वॉकमैन बने. कुछ दिन बाद ब्‍लैंक कैसेट्स में गाने रिकॉर्ड करने का व्यवसाय भी शुरू हो गया. 


ऑडियो कैसेट्स की बिक्री में भारत था दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार


ऑडियो कैसेट्स की बिक्री में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार था. 1980 और 90 के दशक में देश में हर साल 18 करोड़ ऑडियो कैसेट्स बेचे जाते थे, जबकि उस समय देश की आबादी 70 करोड़ थी. यानी हर चार साल में देश की आबादी के बराबर कैसेट्स बिक जाते थे. उस समय देश में 1200 करोड़ रुपये का कैसेट्स का कारोबार था.



एक अनुमान के अनुसार, दुनिया में अब तक 10,000 करोड़ कैसेट बिक चुके हैं, जबकि दुनिया की पूरी आबादी 770 करोड़ है यानी हर व्यक्ति ने 13 कैसेट्स  खरीदे, लेकिन इतनी प्रचलित चीज का भी अंत आया. कंप्यूटर आने के साथ ही 1982 में कॉम्‍पैक्‍ट डिस्‍क यानी (CD) बाजार में आई. इसमें डिजिटल तरीके से डेटा स्‍टोरेज किया जाता था. इसकी स्‍टोर करने की क्षमता और ऑडियो क्‍वालिटी कैसेट से ज्यादा होती है. एक सीडी में 100 गाने स्टोर किए जा सकते थे और इनमें कैसेट की तरह रील भी नहीं फंसती थी.


ऐसे खत्‍म हुआ कैसेट का बाजार


1996 में DVD यानी डिजिटल वीडियो डिस्‍क बाजार में आया. इसमें CD से ज्यादा स्टोर करने की क्षमता थी. फिर वर्ष 2000 में पोर्टेबल मीडिया प्‍लेयर यानी एमपी प्‍लेयर बाजार में आया. छोटी सी डिवाइस में 12 हजार गाने स्टोर किए जा सकते हैं. साथ ही इसे इंटरनेट के जरिए नए गाने लोड भी किए जा सकते हैं. फिर स्‍मार्टफोन आने के बाद से गाने मोबाइल में ही स्टोर किया जाने लगे और कैसेट का बाजार खत्म हो गया. आज न तो कैसेट हमारे बीच हैं और न ही उनका अविष्कार करने वाले Lou Ottens. अब कुछ लोगों के लिए कैसेट सजाने की चीज हो गई है. टेक्‍नोलॉजी ने इन्हें एंटीक बना दिया है. हो सकता है कि आज से 20-25 साल बाद Antique Cassettes की ऑनलाइन नीलामी हो और ये बहुत महंगे बिकें.