रूठे हुए अनूप मिश्रा ने जैसे ही सपाक्स को दी चाय पार्टी, बीजेपी ने टिकट देकर मनाया
भितरवार से टिकट मिलने से पहले कहा जा रहा है कि अनूप मिश्रा पार्टी से नाराज थे. इसके पीछे वजह है कि उन्हें पार्टी से करीब करीब अलग कर दिया गया था.
नई दिल्ली : 2013 चुनावों से पहले मध्यप्रदेश में बीजेपी की राजनीति जिन चेहरों के आसपास घूमती थी, उनमें एक नाम अनूप मिश्रा का हुआ करता था. लेकिन 2013 के चुनाव में भितरवार सीट से अनूप मिश्रा चुनाव हार गए. इस समय तक वह राज्य में कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे. लेकिन उसके बाद अचानक से वह हाशिए पर चले गए. हालांकि बाद में लोकसभा चुनाव में उन्हें फिर से टिकट दे दिया. वह मुरैना से चुनाव जीत तो गए, लेकिन फिर भी मप्र की राजनीति में वह मुकाम हासिल नहीं कर पाए, जिसके लिए वह जाने जाते थे. यही कारण रहा कि वह पिछले 4 साल में अलग थलग ही रहे. कहा जा रहा है कि इस कारण वह पार्टी से नाराज भी थे.
यहां तक कि ग्वालियर में होने वाले राजनीतिक कार्यक्रमों से भी उन्हें दूर रखा गया. उन्हीं के क्षेत्र में उनकी अनदेखी की शिकायत पार्टी हाईकमान से करना पड़ी थी. विधानसभा चुनावों की आहट से पहले ही उन्होंने साफ कर दिया था कि वह राज्य में चुनाव लड़ना चाहते हैं. ऐसे में पार्टी के सामने बड़ी दुविधा थी. उधर राज्य में एसटीएससी कानून में फेरबदल और आरक्षण के खिलाफ खड़े हुए संगठन सपाक्स ने बीजेपी को पहले ही परेशान कर रखा था. बीजेपी में ब्राह्रमण चेहरे पहले से ही अपनी जगह बनाने के लिए जूझ रहे हैं. ऐसे में अनूप मिश्रा की नाराजगी पार्टी मोल नहीं लेना चाहती थी. अंत में अनूप मिश्रा की मानते हुए बीजेपी ने उन्हें टिकट दे ही दिया. हालांकि टिकट उन्हें ग्वालियर से नहीं भितरवार से मिला.
अटल बिहारी वाजपेयी के असमायिक निधन का भी बड़ा असर
इसी साल देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. अनूप मिश्रा वाजपेयी के भांजे हैं. उनके राजनीतिक करियर में इस बात का भी उन्हें खूब फायदा मिला. वाजपेयी के निधन के बाद बीजेपी ने अपने हर राज्य में उनके नाम पर योजनाएं शुरू की. वाजपेयी की भांजी करुणा शुक्ला पहले से ही बीजेपी पर उपेक्षा का आरोप लगाकर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं. ऐसे में अगर मध्यप्रदेश में अनूप मिश्रा की भी अनदेखी होती तो पार्टी को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ता.
ऐसे बनी अनूप मिश्रा की बात
चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि सपाक्स आंदोलन के कारण बीजेपी के खिलाफ सवर्णों में गुस्सा था. एससी/एसटी एक्ट का विरोध कर रहे सपाक्स का कोई चेहरा नहीं था. सपाक्स के पदाधिकारी सांसद अनूप मिश्रा का विरोध जताने उनके आवास पर गए थे. अनूप मिश्रा ने सबको अंदर बुलाया और चाय पिलाई. इसके बाद बीजेपी आलाकमान के कान खड़े हो गए.
चार बार जा चुके हैं विधानसभा
अनूप मिश्रा का जन्म 16 मई 1956 को ग्वालियर में हुआ. उनके पिता का नाम त्रिलोकीनाथ मिश्रा और मां का नाम उर्मिला मिश्रा है. अनूप मिश्रा चार बार विधायक रहे. सबसे पहले वह 1990 में विधानसभा के लिए चुनकर पहुंचे. इसके बाद 1998 से लेकर 2013 तक लगातार मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे. 2013 में भितरवार सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. 2014 में उन्हें पार्टी ने मुरैना से लोकसभा का टिकट दे दिया. मोदी लहर में वह मुरैना से भी जीत गए. जबकि ये उनकी घरेलू सीट नहीं थी.
2013 में हार गए थे चुनाव
अनूप मिश्रा 2013 विधानसभा चुनाव में लाखन सिंह यादव से ही 6,548 वोटों से चुनाव हार गये थे. लेकिन, पार्टी ने एक बार फिर उन्हें इस सीट से प्रत्याशी बनाया गया है. मिश्रा काफी समय से पार्टी से नाराज बताये जा रहे थे. वे टिकट वितरण से पहले ही पार्टी के प्रति नाराजगी जाहिर कर चुके थे. कांग्रेस इस सीट पर मौजूदा विधायक लाखन सिंह यादव को पहले ही मैदान में उतार चुकी है. ऐसे में अब भितरवार में मुकाबला दिलचस्प होने की पूरी उम्मीद है.