MP Chunav Result: नहीं टूटा रायसेन जिले का अनूठा मिथक, प्रभारी मंत्रियों के लिए भारी पड़ रहा यह जिला
Madhya Pradesh Elections Result: मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से जुड़ा एक सियासी मिथक इस बार के चुनाव नतीजों में भी सही साबित हुआ है. जिसकी चर्चा भी खूब हो रही है.
Raisen Election Result: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी को बड़ी जीत मिली है. लेकिन प्रदेश में चलने वाले कुछ सियासी मिथक इस बार भी कायम हैं, जिनमें रायसेन जिले से जुड़े सियासी मिथक की चर्चा भी खूब हो रही है. जो इस चुनाव में भी बरकरार रहा है. जो भी नेता रायसेन जिला का प्रभारी मंत्री बनता है, उसके लिए चुनाव उतना ही कठिन हो जाता है. इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है, जहां बीजेपी और कांग्रेस के दो कद्दावर नेता अपनी-अपनी सीटों पर चुनाव हार गए. खास बात यह है कि 15वीं विधानसभा के दौरान यह दोनों नेता रायसेन जिले के प्रभारी मंत्री थे.
अरविंद भदौरिया और हर्ष यादव चुनाव हारे
दरअसल, सागर जिले के देवरी विधानसभा सीट से कांग्रेस के सीनियर नेता और कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे हर्ष यादव को देवरी विधानसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा है, जबकि बीजेपी के दिग्गज नेता और शिवराज सरकार में मंत्री अरविंद भदौरिया को भी अटेर विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा. इन दोनों नेताओं की खास बात यह है कि दोनों रायसेन जिले के प्रभारी मंत्री थे. 15 महीने की कमलनाथ सरकार के दौरान हर्ष यादव रायसेन जिले के प्रभारी मंत्री रहे थे, जबकि शिवराज सरकार में अरविंद भदौरिया रायसेन जिले के प्रभारी मंत्री थे. लेकिन दोनों को अपनी सीट पर हार मिली.
ऐसे शुरू हुई रायसेन के प्रभारी मंत्री की सियासी कहानी
राजनीतिक गलियारों में रायसेन जिले का सियासी मिथक हमेशा चर्चा में रहा है. बीते 40 सालों में जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, उनके नतीजें इस अनूठे संयोग की पुष्टि करते हैं. शुरुआत 1980 से होती है, उस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और हसनाथ सिद्धीकी को रायसेन जिला का प्रभारी मंत्री बनाया गया था, लेकिन वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उनकी मौत हो गई. इसके बाद अर्जुन सिंह दूसरे कार्यकाल में रसूल अहमद सिद्धिकी को रायसेन जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया, लेकिन उनकी भी प्रभारी मंत्री के पद पर रहते हुए मौत हो गई. इस तरह से दो प्रभारी मंत्रियों से यह मिथक शुरू हुआ था.
कैलाश चावला
1990 में स्व. सुंदरलाल पटवा की सरकार में कैलाश चावला को रायसेन जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया. लेकिन 1993 के चुनावों में कैलाश चावला को हार का सामना करना पड़ा. खास बात यह है कि प्रदेश में सरकार भी बदल गई और कांग्रेस की सरकार बन गई.
दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में रायसेन जिला
1993 में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने और उनके कार्यकाल में वीरसिंह रघुवंशी और आरिफ अकील रायसेन जिले के प्रभारी मंत्री रहे. लेकिन वीरसिंह रघुवंशी चुनाव हार गए और आरिफ अकील इस मामले में लकी रहे और 2003 का चुनाव जीत गए. लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की सरकार चली गई, ऐसे में आरिफ अकील को मंत्री पद तो छोड़ना पड़ा.
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भाजपा शासनकाल में रायसेन का मिथक
2003 से प्रदेश में बीजेपी का शासन शुरू हुआ, इस दौरान विदिशा जिले से आने वाले लक्ष्मीकांत शर्मा, सीहोर जिले से आने वाले बृजेंद्र प्रताप सिंह और भोपाल जिले से आने वाले बाबूलाल गौर को रायसेन जिले का मंत्री बनाया गया. लेकिन इनमें बाबूलाल गौर को छोड़कर सभी को अपने अगले चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. बाबूलाल गौर भले ही चुनाव नहीं हारे लेकिन उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा था.
2008 में लक्ष्मीकांत शर्मा, बृजेंद्र प्रताप सिंह और करण सिंह वर्मा रायसेन जिले के प्रभारी मंत्री रहे, लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में इन तीनों को हार का सामना करना पड़ा था. बाद में 2018 में इनमें बृजेंद्र प्रताप सिंह और करण सिंह वर्मा ने जीत हासिल की थी.
2013 में ऐसा रहा मिथक
2013 में रायसेन जिले को दो प्रभारी मंत्री मिले, पहले बाबूलाल गौर को रायसेन का प्रभारी मंत्री बनाया गया. लेकिन 75 प्लस फॉर्मूले के तहत उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया. जिससे उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा और इसके बाद वह 2018 का चुनाव भी नहीं लड़े. बाबूलाल गौर के बाद सूर्यप्रकाश मीणा को रायसेन का प्रभारी मंत्री बनाया गया. लेकिन 2018 के चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया और वह चुनाव ही नहीं लड़ पाए.
2018 में भी जारी रहा मिथक
2013 के बाद 2018 में भी यह मिथक जारी रहा. 2018 में कमलनाथ सरकार बनी और सागर जिले से आने वाले हर्ष यादव रायसेन के प्रभारी मंत्री बने थे. लेकिन सरकार गिरने के चलते पहले उनका मंत्री पद गया. इसके बाद वह 2023 का चुनाव भी हार गए. कमलनाथ सरकार गिरने के बाद राज्य में फिर बीजेपी की सरकार लौटी इस बार सीएम शिवराज ने भिंड से आने वाले अरविंद भदौरिया को रायसेन जिले का प्रभारी मंत्री बनाया. लेकिन भदौरियां भी अटेर सीट से चुनाव हार गए हैं. प्रभारी मंत्रियों के चुनाव हारने की वजह से यह सियासी मिथक चर्चा में हैं.
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