अविनाश प्रसाद/बस्तर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे का वैभव समय के साथ बढ़ता रहा है.यह विश्व का एकमात्र ऐसा पर्व है जो 75 दिनों की अवधि में मनाया जाता है.इसके दर्जनों रस्मो और रिवाजों को निभाए जाने की जिम्मेदारी 20 हज़ार से अधिक लोगों की होती है.इसी पर्व का एक अनोखा विधान है ''''काछिन गादी''''. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस विधान के अंतर्गत एक नाबालिक कन्या पर काछिन देवी की सवारी होती है और इसके बाद उस कन्या को कांटों के झूले पर झुलाया जाता है. 


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बता दें कि दशहरे का यह एक महत्वपूर्ण विधान होता है.जिसमें कांटे की गद्दी पर झूल कर देवी राज परिवार के सदस्यों को दशहरा मनाने की अनुमति प्रदान करती हैं.आगामी 25 सितंबर को बस्तर जिले के जगदलपुर शहर में रस्म निभाई जानी है. इसके लिए 6 वर्ष की बालिका पीहू अपने परिवार के साथ का ''''काछिन-गुड़ी'''' यानी काछिन देवी के मंदिर में आकर ठहर चुकी हैं.


क्या है परंपरा?
इस परंपरा के अंतर्गत नाबालिक कन्या आयोजन के एक सप्ताह पूर्व ही अपने परिजनों के साथ काछिन गुड़ी पहुंच जाती है. यहां पुजारी द्वारा देवी का आह्वान किया जाता है और उसके बाद कन्या पर देवी की सवारी शुरू होती है. इस दौरान गुरुमाएं देवी की सेवा में जगार गीत गाती हैं. बता दें कि देवी से निवेदन किया जाता है कि काछिन-गादी पर्व के दिन भी वे कन्या पर सवार हों और दशहरा पर्व मनाने की अनुमति प्रदान करें. यह प्रक्रिया निरंतर 7 दिनों तक चलती है.आठवें दिन बस्तर राजपरिवार के लोग संध्याकाल राजमहल से निकल कर पैदल ही माता के मंदिर तक पहुंचते हैं, इस दौरान उनके साथ बैंड-बाजे और श्रद्धालुओं का हुजूम होता है. 


भैरम भक्त सिरहा देवी का आह्वान करता है और बालिका पर देवी की सवारी होती है. सफेद वस्त्र में बालिका मंदिर से बाहर निकलती हैं और कांटो से बने झूले की परिक्रमा करती है. इस दौरान वे वीरांगना के रूप में अपने पराक्रम का प्रदर्शन भी करती हैं. बालिका को कांटे के झूले पर सुलाया जाता है और उनकी पूजा आराधना की जाती है. बालिका पर सवार देवी से बस्तर दशहरा मनाए जाने की अनुमति राज परिवार के लोग मांगते हैं.साथ ही दशहरे के निर्विघ्न संपन्न होने की कामना भी की जाती है.देवी द्वारा अनुमति स्वरूप पुष्प भेंट किया जाता है.जैसे ही देवी कुछ प्रदान करती हैं और पूरे महकमे में क्या बात प्रसारित कर दी जाती है कि देवी ने दशहरा मनाए जाने की अनुमति प्रदान कर दी है.


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क्या है काछिन गादी?
काछिन देवी अन्नधन और पशुधन की रक्षा करने वाली रणदेवी मानी जाती हैं.इनका सिंहासन कांटों की गद्दी पर होता है. काछिन गादी विधान के लिए मंदिर के सामने एक झूला बनाया जाता है.इस झूले में बेल वृक्ष के कांटें लगे होते हैं. इसी झूले पर माता को झुलाया जाता है.


जानें इससे जुड़ी कहानी?
17वीं शताब्दी में जब बस्तर रियासत का मुख्यालय बस्तर ग्राम हुआ करता था, तब जगदलपुर जगतूगुड़ा के नाम से जाना जाता था. यह म्हारा लोगों का कबीला था. उन दिनों इस इलाके में जंगली जानवरों का आतंक बढ़ रहा था.ऐसे में कबीले का मुखिया जगतू महाराजा दलपत देव के पास पहुंचा. उसने महाराजा से निवेदन किया कि वे हिंसक जंगली-जानवरों से उन्हें निजात दिलाएं.राजा आखेट के लिए जगतुगुड़ा पहुंचे. उन्होंने ही सब जानवरों का सफाया कर दिया.राजा को यह इलाका बेहद पसंद आ गया और उन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाने जगतू से इच्छा जाहिर की.जगतू इस बात के लिए तैयार हो गया. इसके बदले राजा ने कबिले की आराध्य काछिन देवी के सम्मान में बस्तर के दशहरे में काछिन गादी परंपरा की शुरुआत की है.तब से यह परंपरा यहां अनवरत निभाई जाती है.