Chhattisgarh Reservation Politics: रायपुर। छत्तीसगढ़ में बीते महीने से आरक्षण पर राजनीति जारी है. राजभवन और सरकार के बीच रस्सा कसी का खेल जारी है. मामले में लगातार नेताओं के बयान आ रहे हैं. इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel), राज्य सरकार और कांग्रेस के नेता राज्यपाल अनुसुइया उइके (Governor Anusuiya Uikey) पर केंद्र के दबाव में काम करने का आरोप लगा चुके हैं. अब राजनीतिक घमासान के 50 साल बाद मामले में राज्यपाल का बयान आया है. इसे किसी बड़े अपडेट की तरह देखा जा रहा है.


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राज्यपाल ने कहा इंजतार करिए
रायपुर में एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंची राज्यपाल अनुसुइया उइके ने पत्रकारों से बात की. इस दौरान मीडिया की तरफ से आरक्षण विवाद और बिल में साउन करने को लेकर सलाव किया गया. इस पर राज्यपाल ने कहा कि अभी मार्च तक इंतजार करिए. अब उनके बयान के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं. वहीं सरकार और कांग्रेस के लोग पहले से लंबे खिच रहे इंतजार पर नाराजगी जाहिए की है.


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ऐसे खत्म हो गया था आरक्षण
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 19 सितम्बर 2022 को फैसला सुनाते हुए 58% आरक्षण को असंवैधानिक बताया था. उसके बाद से छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई आरक्षण रोस्टर नहीं बचा. इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आरक्षण संबंधी दो संशोधन विधेयक पारित कराए. इसमें आरक्षण को बढ़ाकर 76% कर दिया गया था.


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नए बिल में ये है व्यवस्था
1 दिसंबर 2022 को गहमागहमी के बीच छत्तीसगढ़ में आरक्षण संसोधन विधेयकों को पास करा लिया गया. इसके अनुसार, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था होनी थी. लेकिन, बिल राजभवन पहुंचा को वहां अटक गया. राज्यपाल ने अपने तर्कों के आधार पर इसमें साइन नहीं किए.


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पहले क्या थी व्यवस्था?
हाईकोर्ट के आदेश से पहले छत्तीसगढ़ की सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 58% आरक्षण था. इनमें से अनुसूचित जाति को 12%, अनुसूचित जनजाति को 32% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण का लाभ मिल रहा था. 19 सितम्बर को आए बिलासपुर उहाई कोर्ट के फैसले से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया.


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