Chhattisgarh schools Conditions ​: गर्मी की छुट्टियां मतलब बच्चों के लिए मौज-मस्ती, दिनभर खेलना-कूदना और पढ़ाई-लिखाई की कोई टेंशन नहीं. हालांकि, कुछ ही दिनों में बच्चों की छुट्टियां या यूं कहें कि उनकी मौज-मस्ती खत्म होने वाली है.  छत्तीसगढ़ में बच्चों की छुट्टियां खत्म होने वाली हैं. स्कूलों में नया शैक्षणिक सत्र 18 जून से शुरू होगा. इस बीच 18 जून से 10 जुलाई तक शाला प्रवेश उत्सव मनाया जाएगा. इस उत्सव के दौरान नए बच्चों का स्कूलों में प्रवेश कराया जाएगा. हालांकि, बलौदाबाजार जिले में अभी भी कई स्कूल भवन ऐसे हैं. जिनमें छात्रों को पढ़ाना अपनी जान जोखिम में डालने के बराबर है. जिले में कई स्कूल भवन इतनी जर्जर स्थिति में हैं कि इन स्कूलों की छतें और दीवारें कभी भी गिर सकती हैं. इस बार फिर नए शैक्षणिक सत्र में विद्यार्थियों को इन्हीं जर्जर स्कूलों के भवनों में पढ़ाई करनी पड़ेगी. कई स्कूलों की हालत इतनी खराब है कि कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है.


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स्कूलों की दीवारों में आई दरारें
सरकार भले ही शिक्षा के स्तर में सुधार लाने और स्कूली विद्यार्थियों को अच्छी सुविधाएं, अच्छे भवन और अच्छा माहौल मुहैया कराने के तमाम दावे करती हो, लेकिन हकीकत इसके उलट है. स्कूल की दीवारों में आई ये दरारें कुछ और ही बयां कर रही हैं. बलौदाबाजार जिले के मुड़ियाडीह, लिरीडीपा, कुकदा, परसभदेर समेत कई गांवों में स्कूल जर्जर हालत में हैं. जिसमें से मुड़ियाडीह गांव के 35 वर्ष पुराने शासकीय प्राथमिक विद्यालय में लगभग 100 बच्चे हैं, इन बच्चों को इस नए सत्र में भी जर्जर भवन में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ेगी. साथ ही इन स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है.


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एक मात्र प्राथमिक विद्यालय
इसी जिले के कसडोल विकासखंड लिरीडीपा गांव में प्राथमिक विद्यालय में पिछले सत्र तक विद्यालय की छत जर्जर होने के कारण छात्र-छात्राएं विद्यालय के बाहर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करते नजर आते थे. पलारी की बात करें तो यह करीब 1500 आबादी वाले गांव कुकड़ा में एक मात्र प्राथमिक विद्यालय है, जो आज भी 80 के दशक में बने पंचायत भवन में संचालित हो रहा है. ऐसा नहीं है कि स्कूल के लिए नया भवन नहीं बनाया गया. यहां पिछले पांच साल से नया स्कूल भवन बना हुआ है, लेकिन विभाग की लापरवाही के कारण स्कूल भवन गांव से दूर सुनसान जगह पर बनाया गया है.


पंचायत भवन में पढ़ते हैं बच्चे
इस विद्यालय में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों को 1 किमी दूर कीचड़ भरी गलियों और कंटीली झाड़ियों से होकर जाना पड़ता है, जिसके कारण विद्यार्थी नए स्कूल में पढ़ने नहीं जाते हैं. जिसके बाद कक्षा पांच तक के बच्चे गांव के ही दो कमरे के पंचायत भवन और आंगनबाड़ी भवन में पढ़ने को मजबूर हैं. देखने वाली बात यह होगी कि क्या प्रशासन इन जर्जर स्कूलों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करता है या फिर छात्रों को जान जोखिम में डालकर इन जर्जर भवनों में पढ़ाई करनी पड़ेगी.


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