तृप्ति सोनी/रायपुर:छत्तीसगढ़ (CG News) में धर्मांतरण के मुद्दे पर सियासत छिड़ी है. जिसके केंद्र में है बस्तर, लेकिन बस्तर में धर्मांतरण का आधार क्या है? आरोप लगते हैं कि ईसाई समुदाय की ओर से आदिवासियों का धर्मांतरण किया जा रहा है, लेकिन ईसाई समुदाय आज पीड़ित पक्ष दिखता है. ऐसा हाल की घटनाओं से समझा जा सकता है. जिसके बारे में छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के प्रेसिडेंट अरुण पन्नालाल बताते हैं कि उनका फोरम राज्य के 21 जिलों में सालों से एक्टिव है, वो खुद भी एक आदिवासी हैं. जिनकी चौथी पीढ़ी क्रिश्चियानिटी पर बिलीव करती है, बस्तर में ईसाई समुदाय के बहिष्कार, कब्र से लाशों को निकालना, चर्च में तोड़फोड़ के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. जिस पर पुलिस प्रशासन भी मौन रहने का आरोप लगाया. वे बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 15% के अनुपात से ईसाई समुदाय का प्रभाव क्षेत्र बढ़ा है.


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चुनाव में उतरेगा ईसाई समुदाय 
प्रभाव क्षेत्र यानी जहां ईसाई धर्म को मानने वाले जुड़ रहे हैं, उनका धर्मांतरण नहीं हो रहा है. बल्कि, वे आदिवासी ही हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि क्रॉस पहनने से या चर्च में प्रार्थना करने से कोई ईसाई नहीं हो जाता. छत्तीसगढ़ में ईसाई समुदाय के बड़े लीडर अरुण पन्नालाल कहते हैं कि चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही अपनी राजनीति के लिए आदिवासियों और ईसाईयों को दो पाटों में पीस रहे हैं, लेकिन वे संघर्ष की लड़ाई लड़ेंगे. ईसाई समुदाय पर प्रताड़ना के और उनके अधिकारों पर प्रहार के कई मामलों को लेकर कोर्ट में भी केस चल रहे हैं तो इधर विधानसभा चुनाव के महज़ कुछ महीने पहले ही ईसाई समुदाय ने चुनाव में उतरने की बात कह दी है. 


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12 सीटों पर ईसाई समुदाय का है प्रभाव 
बस्तर की 12 सीटों पर ईसाई समुदाय का लगभग 30% प्रभाव है. सरगुजा में तीन सीटें, मंत्री अमरजीत भगत की सीट सीतापुर, बलरामपुर और अंबिकापुर में ईसाई समुदाय का अच्छा खासा प्रभाव होने का दावा है. वहीं रायगढ़ की दो सीटों पर ईसाई समुदाय अपने प्रभाव की बात कह रहे हैं. कुल मिलाकर अपनी लगभग 12 लाख की आबादी के आधार पर 17 से 20 सीटों पर ईसाई समुदाय बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में नज़र आता है. इससे परे वे इसे अस्तित्व की लड़ाई बता रहे हैं.