Chhattisgarh News: बलौदाबाजार। देश भले ही कितना भी आगे बढ़ जाए लेकिन, जबतक हर आदमी को स्वास्थ्य सेवाएं सही से नहीं मिलेगी विकास अधूरा ही रहने वाला है. सरकार इन सेवाओं के लिए काफी पैसे खर्च करती है. लेकिन, कई बार रिक्तियां भरने में बेहद देरी होती है. इससे मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. इसमें सबसे ज्यादा समस्या गरीब वर्ग के लोगों को होती है. कुछ ऐसा ही हाल है बलौदाबाजार के अस्पतालों का जो महज रेफर सेंटर बन गए हैं.


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अस्पताल में डॉक्टरों का टोटा
सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के वजह से अस्पताल के नाम पर रिफर सेंटर बना हुआ है. जिले में लगभग 50 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं जिनमें केवल 15 डॉक्टर ही कार्यरत है. 150 बिस्तरों वाले जिला अस्पताल में सर्जन डॉक्टर नहीं है. भाटापारा में स्त्री रोग विशेषज्ञ,सर्जन व निश्चेतना के चिकित्सक नहीं है.


कहां कितने पद रिक्त
- लवन में 5 विशेषज्ञ डॉक्टर के पद में सभी रिक्त हैं
- कसडोल में 6 विशेषज्ञ डॉक्टर के पद में 4 रिक्त हैं
- सिमगा में 5 विशेषज्ञ डॉक्टर के पद में सभी रिक्त हैं
- सुहेला में 6 विशेषज्ञ डॉक्टर के 6 पद रिक्त हैं
- पलारी में 5 विशेषज्ञ डॉक्टर के 5 पद रिक्त हैं
- भाटापारा में 7 विशेषज्ञ डॉक्टर स्वीकृत पदों पर 4 रिक्त हैं


30 प्रतिशत डॉक्टर 100 फीसदी इलाज कैसे?
यानि लगभग 30 प्रतिशत डॉक्टरों के भरोसे ही जिले की स्वास्थ व्यवस्था की डोर है. मरीज के परिजन जैसे तैसे प्राइवेट गाड़ी या 108 की मदद से जिला चिकित्सालय बड़ी उम्मीद लेकर पहुंचते हैं पर यहां डॉक्टरों की कमी के चलते प्राथमिक उपचार के अलावा और कोई इलाज संभव नहीं हो पाता.


मेकाहारा में कर देते हैं रेफर
जिले के इस सबसे बडे शासकीय अस्पताल में सर्जरी के लिए एक भी डॉक्टर नहीं है. ऐसे में इमरजेंसी केस आने पर यहां के डॉक्टर पर्ची बनाकर सीधे मेकॉहारा रेफर कर देते हैं


गरीबों के लिए इलाज हो जाता है गंभीर
गंभीर मरीज को तत्काल इलाज की आवश्यकता होती है ऐसे वे मेकॉहारा न जाकर शहर के महंगे निजी अस्पतालों में मरीज को ले जाना गरीब परिवार वालों की मजबूरी बन जाती है. यहां करीब 300 मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं. सर्दी-खांसी आदि का इलाज तो हो जाता है मगर गंभीर बीमारियों और आपात चिकित्सा के लिए यहां व्यवस्था नहीं है.


मरता क्या ना करता
बताया जाता है कि ज्यादातर डॉक्टर अपना प्राइवेट अस्पताल का भी संचालन कर रहें है. जो डॉक्टटर सरकारी अस्पताल में ईलाज के लिए पहुंचे मरीजों को अपने निजी अस्पताल में आने की सलाह देते हैं. ऐसे में मरीज के हालात ऐसे हो जाते हैं मरता क्या ना करता.