शैलेंद्र स‍िंंह ठाकुर/ब‍िलासपुर: शारदीय नवरात्र की नवमी पर सोमवार को रतनपुर मां महामाया मंदिर में मां महामाया देवी का राजसी श्रृंगार किया गया. नवरात्र की नवमीं तिथि पर रविवार को सुबह 6 बजकर 30 मिनट में श्रृंगार के बाद मंदिर का पट खोला गया.


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9 प्रकार के सोने के हारों से क‍िया गया राजसी श्रृंगार 
प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी नवरात्र की नवमी तिथि को मां महामाया देवी को रानीहार, कंठ हार, मोहर हार, ढार, चंद्रहार, पटिया समेत 9 प्रकार के हार,करधन, नथ धारण कराई गई. राजसी श्रृंगार के बाद मां महामाया की महाआरती हुआ. पूजा अर्चना के बाद मां को राजसी नैवेद्य समर्पित किया गया.


पुरोहितों समेत ब्राह्मणों को कराया गया भोज
मंदिर ट्रस्ट के द्वारा आज दोपहर मंदिर परिसर में कन्या भोज व ब्राह्मण भोज के आयोजन के साथ मंदिर के पुरोहितों समेत ब्राह्मणों को भोज कराया जाएगा. साथ ही ज्योति कलश रक्षकों को भोज कराकर उन्हें वस्त्र और दक्षिणा प्रदान की जाएगी. कन्या, ब्राह्मण भोज के बाद दोपहर पूजन सामग्री के साथ पुजारी सभी ज्योति कलश कक्ष में प्रज्जवलित मनोकामना ज्योति कलश की पूजा अर्चना कर मंत्रोच्चार के साथ ज्योति विसर्जित की जाएगी. 


ऐत‍िहास‍िक जगह है रतनपुर 
बता दें क‍ि कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 किमी पर स्थित आदिशक्ति महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास है. त्रिपुरी के कलचुरियों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बना कर लंबे समय तक छत्‍तीसगढ़ में शासन किया था. इसे चतुर्युगी नगरी भी कहा जाता है जिसका तात्पर्य है क‍ि इसका अस्तित्व चारों युगों में विद्यमान  रहा है. राजा रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर के नाम से अपनी राजधानी को बसाया था.  


मंद‍िर की ऐसी है मह‍िमा 
1045 ई. में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में  शिकार के लिए आये थे जहां रात्रि विश्राम उन्होंने एक वटवृक्ष पर किया. अर्ध रात्रि में जब राजा की आंखें खुली, तब उन्होंने वटवृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा. यह देखकर वह चमत्कृत हो गए क‍ि वह आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है. इसे देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे. सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया तथा 1050 ई. में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया. 


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