Chhattisgarh News: देश में चारों तरफ स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) के पहले से ही हर्ष का माहौल देखने को मिल रहा है. हालांकि छत्तीसगढ़ के सूरजपुर ( Surajpur News) में एक परिवार पिछले कई दशकों से आजादी की लड़ाई में जान गंवाने वाले अपने दादा को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए लगातार दफ्तरों का चक्कर लगा रहा है. इसे लेकर के राज्य सरकार के अधिकारी जांच के बाद आगे की कारवाई की बात कर रहे हैं. कहां का है मामला परिजन क्यों मांग कर रहे हैं जानते हैं. 


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क्या कहते हैं परिजन 
सूरजपुर के भैयाथान रोड के निवासी कमलेश कुमार लगभग पिछले 45 सालों से अपने दादा बाबू परमानंद को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार से फरियाद कर रहे हैं, कमलेश कुमार के अनुसार उनके दादा बाबू परमानंद साल 1939 में आजादी की लड़ाई लड़ते हुए शहीद हो गए थे. बाबू परमानंद का जन्म 1923 में हुआ था, उनके पिता शिक्षक थे, बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति की भावना भरी हुई थी. 16 साल की उम्र में उन्होंने हरिद्वार में पढ़ाई करने के बहाने से घर छोड़ा और आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए, इसी दौरान 1939 में हैदराबाद के गुलबर्गा में उनकी गिरफ्तारी हुई और अंग्रेजों के द्वारा बेरहमी से पिटाई किए जाने की वजह से उनकी मौत हो गई थी. 


इसकी जानकारी बाबू परमानंद के परिजनों को आकाशवाणी के द्वारा चिट्ठी से प्राप्त हुई. इसके बाद साल 1980 में बाबू परमानंद के पोते कमलेश कुमार ने कलेक्टर से लेकर प्रधानमंत्री तक को चिट्ठी लिखी और अपने दादाजी को शहीद का दर्जा देने की मांग की.  उनका आरोप है कि ना तो केंद्र और ना ही राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान दिया, आखिरकार छत्तीसगढ़ राज्य अलग होने के बाद उन्होंने फिर कलेक्टर, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी मांग रखी, जिसके बाद राज्य सरकार के द्वारा पूरे मामले की जानकारी मांगी गई, आखिरकार कलेक्टर के द्वारा पूरे मामले की जांच कराई जा रही है. 


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मौजूद हैं साक्ष्य 
बाबू परमानंद के परिजनों के पास कई ऐसे तथ्य मौजूद हैं जिससे यह साफ होता है कि देश की आजादी की लड़ा में परमानंद ने अपनी जान दी थी. उन्हें शहीद का दर्जा दिलाने के लिए जांच चल रही है. अब जांच पूरी होने के बाद सामने आएगा कि उन्हें शहीद का दर्जा मिलता है की नहीं.