Famous Shiva Temples of Chhattisgarh: अब से कुछ दिन बाद ही महाशिवरात्रि (mahashivratri) का महापर्व आने वाला है. इसको लेकर शिव भक्तों में दर्शन पूजन (darshan pujan) को लेकर उत्साह है. ऐसे में यदि आप भी महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के मंदिर में दर्शन पूजन करने की योजना बना रहे हैं, तो आज हम आपको छत्तीसगढ़ (chhattisgarh) में स्थित एक ऐसे शिवलिंग के बारे में बता रहे हैं, जिसकी स्थापना त्रेता युग में भगवान राम (lord ram) ने की थी. महाशिवरात्रि के दिन इस मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहता है. यह मंदिर अपनी अद्भुत विशेषताओं के लिए जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त एक लाख अखंडित चावल सफेद रंग के थैले में भरकर चढ़ाते हैं, उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है.


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जानिए क्या है मान्यता?
दरअसल विश्वप्रसिद्व लक्ष्मणेश्वर मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर चापा जिले के खरौद में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने खर और दूषण का यहीं पर वध किया था. इसलिए इस स्थान का नाम खैराद है. पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान राम द्वारा रावण का वध करने के बाद लक्ष्मणजी ने भगवान राम से ही इस मंदिर की स्थापना करवाई थी. मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग की स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी. इसलिए इसे लक्ष्मणेश्वर शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है. इसके बाद भगवान राम ने शिवलिंग की पूजा करते हुए ब्रम्ह हत्या दोष से निवारण के लिए क्षमा याचना की थी. इसलिए ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा करने से ब्रह्महत्या के दोष का निवारण हो जाता है. 


शिवलिंग में है एक लाख छेद!
विश्वप्रसिद्व लक्ष्मणेश्वर मंदिर अपने आप में बेहद अद्भुत और आश्चर्यों से भरा हुआ है. बताया जाता है कि इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं. इसलिए इसे लक्षलिंग या लखेश्वर कहा जाता है. पौराणिक मान्यता अनुसार इन एक लाख छेदों में से एक छेद ऐसा है जो पाताल से जुड़ा है. इस छिद्र में जितना जल अर्पित किया जाता है, वह सब पाताल में समा जाता है. वहीं इस शिवलिंग में एक छेद ऐसा भी है, जो हमेशा जल से भरा रहता है, जिसे अक्षय कुण्ड कहा जाता है.


छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विख्यात है मंदिर
विश्वप्रसिद्व लक्ष्मणेश्वर मंदिर में स्थापित लक्षलिंग शिवलिंग जमीन से 30 फीट ऊपर है. इसे स्वयंभू शिवलिंग भी कहा जाता है. खैराद में स्थित यह मंदिर छत्तीसगढ़ के काशी के नाम से विख्यात है. सरकरा द्वारा चलाई जा रही राम वन गमन परिपथ में भी इस मंदिर को स्थान दिया गया है. ऐसी मान्यता है कि भगवान राम और लक्ष्मण ने खर, दूषण और रावण के वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने महादेव की स्थापना की थी. 


आठवीं शताब्दी में हुआ था निर्माण
पौराणिक मान्यतानुसार भगवान शंकर की पूजा के लिए लक्ष्मण जी जल लेने गए थे. इस दौरान जब वे आ रहे थे तो अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई. बताया जाता है कि बीमार अवस्था में जब लक्ष्मण जी सो रहे थे, उसी वक्त भगवान शिव ने लक्ष्मण जी को सपने में दर्शन दिए और यहां शिवलिंग स्थापित कर पूजा करने को कहा. पूजा के बाद लक्ष्मण जी स्वस्थ्य हो गए.  मंदिर के प्राचीन शिलालेख के अनुसार मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी के राजा खड्गदेव ने मंदिर के निर्णाण में मदद की थी. वहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि मंदिर का निर्माण पाण्डु वंश के संस्थापक इंद्रबल के पुत्र ईसानदेव ने करवाया था.


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(disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और मंदिर द्वारा प्रचलित लोक आस्था पर आधारित है. zee media किसी भी बात की पुष्टि नहीं करता है.)