Manendragarh News: आज यानी 12 मई को दुनिया भर के कई देशों में मदर्स डे मनाया जा रहा है. आज के इस खास दिन आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताते हैं जो कई नेत्रहीन बच्चों की मां है. मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जिले के मुख्यालय मनेंद्रगढ़ में संचालित नेत्रहीन विद्यालय संचलित है. यहां मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के तीन दर्जन से ज्यादा बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं. घर से माता-पिता से दूर रह कर यहां नेत्रहीन बच्चे पढ़ते हैं. जहा पर बीते 15 सालों से नेत्रहीन विद्यालय में काम करने वाली 53 वर्षीय गीता ने इन बच्चों को जन्म तो नहीं दिया, लेकिन गीता मां बन कर नेत्रहीन विद्यालयों के बच्चों की सेवा कर सवार रही जिंदगी.


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गीता रजक की कहानी
मनेंद्रगढ़ विकासखंड के आमाखेरवा में संचालित नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की देखभाल करने वाली गीता खुद तो बस 5वीं पास है, लेकिन इन नेत्रहीन बच्चों के अध्ययन कार्य में भी गीता सहयोग करती है. नेत्रहीन विद्यालय के बच्चे जब स्टडी रूम में पढ़ाई करते है तो किताबें निकालने के अलावा. स्टडी रूम के साफ सफाई को लेकर भी संजीदा है. इसके अलावा पढ़ाई के दौरान बच्चों को प्यास लगने पर पानी लाकर देना, चाय बनाना गीता की दिनचर्या में शामिल है. नेत्रहीन विद्यालय में अध्ययनरत बच्चे भी गीता को गीता मां कह कर पुकारते हैं. गीता को भी इन बच्चों की सेवा करने किसी पुण्य कार्य से कम नहीं लगता. गीता कहती भी है कि मैं इनको नेत्रहीन बच्चे समझती ही नहीं हूं. मैं अपने बच्चे जैसा मानकर इन बच्चों की सेवा करती हूं. गीता रजक का कहना है कि मेरे खुद 2 बच्चे हैं. एक बेटी और एक बेटा. जैसे मैं अपने बच्चों को पालती हूं वैसे इन बच्चों को पालती हूं. गीता बताती है इन बच्चों की देखरेख कर मुझे जो पैसे नेत्रहीन विद्यालय द्वारा दिये जाते हैं उन पैसे से मैं अपने बच्चों का लालन पालन करती हूं.


गीता रजक खुद तीन बच्चों की मां हैं. एक बेटे की मौत बीमारी से हो गई. दो बच्चे अब हैं. एक बेटी और बेटा है. 10 साल पहले पति की बीमारी से मौत के बाद गीता हार नहीं मानी और बच्चों को बड़ा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया. गीता का बेटा धोबी का काम करता है. वहीं, एक बेटी है जिसकी शादी गीता ने अपने दम पर की है. गीता के बेटे और बेटी की शादी हो चुकी है और अब ज्यादातर समय गीता रजक नेत्रहीन विद्यालय में ही गुजारती है.


15 सालों से आया का दायित्व निभा रही हैं
नेत्रहीन विद्यालय के व्यवस्थापक राकेश गुप्ता ने बताया कि गीता रजक पिछले 15 सालों से आया का दायित्व निभा रही हैं. राकेश बताते हैं कि विद्यालय के छोटे बच्चों को नहलाने तक का काम यह करती हैं. इसके अलावा नेत्रहीन विद्यालय के छात्रों के कपड़े धोना, खाना बनाकर खिलाना, बर्तन धोना. छात्रों के बेड लगाने के अलावा कई कार्य करती हैं. विद्यालय में 10 घण्टे काम करने के बाद भी जब कभी गीता की जरूरत होती है, उसे बुला लिया जाता है और वह हर कार्य करती है. नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की जब तबियत खराब होती है तो उन्हें अस्पताल ले जाने तक से दवाई लाने और दवाई समय पर खिलाने का काम भी गीता के जिम्मे है.


रिपोर्ट: सरवर अली (कोरिया)