अनोखा, अद्भुत और बेमिसाल... 1000 फीट ऊंचाई पर बसे छत्तीसगढ़ के इस गांव की अनूठी परंपरा के आगे मॉर्डन जमाना भी फेल!
Kanker: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में करीब 1000 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे रावस गांव में एक ऐसी अनूठी परंपरा है, जिसके आगे मॉर्डन जमाना भी फेल है. इस गांव के लोगों ने सद्भावना की मिसाल पेश की है. जानिए क्या है ये गांव अनोखा, अद्भुत और बेमिसाल...
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के विभिन्न रंग हमेशा लोगों को सौहार्द का उदाहरण देते हैं. इन्हीं रंगों में एक ऐसा रंग है, जो सद्भावना की मिसाल बन गया है. कांकेर जिले के रावस गांव में लोगों द्वारा खुद से एक ऐसी अनूठी परंपरा चलाई जा रही है, जो बेमिसाल है. इसके सामने तो मॉर्डन जमाने के ख्याल भी काफी फीके नजर आते हैं. जानिए इस परंपरा के बारे में-
रावस गांव
ये कहानी है कांकेर जिला और कोंडागांव जिले के सरहद पर बसे रावस गांव की है. ये गांव करीब 1000 फीट की ऊंचाई पर बसा हुआ है, जो सद्भावना की मिसाल बन चुका है.
सद्भावना की मिसाल
इस गांव के लोगों ने एक अनूठी परंपरा खुद बनाई है, जो अमूमन शहरों में बहुत कम दिखाई पड़ती है. इस परंपरा ने सद्भावना की मिसाल पेश की है.
काम कर इकट्ठा करते हैं पैसे
रावस गांव के लोग पूरे साल एक-दूसरे के खेतों में या घरों में काम करते हैं. इस काम के एवज में मिलने वाली रकम से साल में एक बार सभी ग्रामीण पैसा इकट्ठा करते हैं और उससे बर्तन खरीदते हैं.
मनाते हैं पिकनिक
बर्तन खरीदने के साथ-साथ ग्रामीण सामूहिक रूप से पिकनिक मनाते हैं. सभी मिलजुल कर खाना बनाते हैं और फिर साथ में खाते हैं.
बढ़ता है आपसी प्रेम
पिकनिक मनाने से सभी ग्राम वासियों का आपस में मेलजोल और प्रेम तो बढ़ता ही है. साथ में आनंद का एक उत्सव भी हो जाता है.
बन चुकी है परंपरा
कई सालों से एक जुटता की मिसाल बनी यही पिकनिक अब धीरे-धीरे परंपरा का रूप लेती जा रही है. इसके लिए सभी ग्रामीण एकजुट होते हैं और खुद से पूरा काम करते हैं.
कोई बनाता है खाना तो कई दोने-पत्तल
ग्रामीण अपना-अपना काम बांटते हैं. कोई खाने-पीने का मोर्चा संभालता है तो कोई दोने-पत्तल का. किसी के जिम्मे साफ-सफाई आती है तो किसी के हिस्से बाकी के काम. इस पिकनिक में मांसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं.
साल भर रहता है इंतजार
इस पिकनिक और उत्सव को लेकर ग्रामीण कहते हैं कि उन्हें सालभर इस उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है. इसके लिए कोई नियत तिथि निर्धारित नहीं है. अमूमन धान बुवाई के पहले ये उत्सव मनाकर फिर से ग्रामीण खेतों की ओर रुख कर एक-दूसरे का हाथ बंटाने में लग जाते हैं. इससे ग्रामीणों को खेतों या घरों में दूसरे काम करने के लिए मजदूरों की कमी नहीं होती. साथ ही सरलता से सभी के काम पूरे हो जाते हैं. इनपुट- कांकेर से गौतम सरकार की रिपोर्ट, ZEE मीडिया