अविनाश प्रसाद/बस्तर: विश्व प्रसिद्ध सबसे लंबे समय तक चलने वाले बस्तर दशहरे में आज देवी-देवताओं के महाकुंभ का समापन हुआ. इस दौरान सैकड़ों देवी-देवताओं की विदाई दी गई. यहां पर होने वाले दशहरे की सबसे खास बात यह है कि यहां पर होने वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेने सैकड़ों देवी-देवता एकत्रित होते हैं. इतना ही नहीं यहां पर देवी देवताओं का पंजीयन भी जिला प्रशासन करता है. बस्तर के दशहरे में 75 दिनों तक चलने वाले कार्यक्रम के अंतर्गत आज 'कुटुंब जात्रा' नामक रस्म अदा की गई.


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अलग-अलग राज्यों के देवी-देवता होते हैं शामिल
बस्तर के दशहरे में शामिल होने के लिए ना केवल बस्तर बल्कि छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्सों और महाराष्ट्र उड़ीसा तेलंगाना के साथ ही आंध्र प्रदेश से भी देवी देवताओं के विग्रह जगदलपुर आते हैं. दशहरा खत्म होने के बाद आज इन्हीं देवी देवताओं को एक धार्मिक आयोजन कर विदाई दी गई.


200 से अधिक देवी देवताओं का नहीं हुआ पंजीयन
आपको बता दें कि सभी देवी देवताओं के विग्रह को लेकर आने वाले पुजारियों और उनके सहयोगियों को रोजाना के भोजन के लिए जिला प्रशासन अन्न एवं तेल मसाले उपलब्ध करवाता है. सभी देवी देवताओं का पंजीयन जिला प्रशासन ने कर रखा है और कोरोनाकाल के बाद इस बार 200 से अधिक ऐसे देवी देवताओं के विग्रह बस्तर दशहरे में शामिल होने आए थे. जिनका पंजीयन जिला प्रशासन के पास नहीं है. इनमें वे देवी देवता भी शामिल हैं जो अबूझमाड़ के घोर नक्सल प्रभावित इलाकों के गांवों के इष्ट हैं.


बस्तर की खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं देवी-देवता
बस्तर के दशहरे में मां दंतेश्वरी के सम्मान में सभी देवी देवताओं के विग्रह जगदलपुर पहुंचे हुए थे. भोजन के समाप्त हो जाने के बाद आज विशेष पूजा एवं बली अर्पित कर देवी देवताओं के कुटुंब को सम्मान उनके गंतव्य के लिए रवाना किया गया. सैकड़ों वर्षो की परंपरा के अनुसार राज परिवार के सदस्य ने इसमें मां दंतेश्वरी के पुजारी की हैसियत से पूजा अर्चना की. ऐसा माना जाता है कि बस्तर के दशहरे में आए हुए देवी देवता प्रसन्न होकर, बस्तर की खुशहाली और समृद्धि का आशीर्वाद देकर वापस जाते हैं.


मां दंतेश्वरी के छत्र की भी हुई विदाई
दंतेवाड़ा स्थित 52 में शक्तिपीठ से लाये गए माता दंतेश्वरी के छत्र को भी आज यहां विदाई दी गई. बस्तर राज परिवार के सदस्य कमल चंद्र भंजदेव बताते हैं कि इस बार बड़ी संख्या में अबूझमाड़ के अंदरूनी इलाकों से देवी-देवताओं के विग्रहों को लेकर पुजारी पहुंचे हुए थे. बस्तर की संस्कृति के संरक्षण के लिहाज से यह बेहद महत्वपूर्ण और शुभ संकेत हैं.


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