प्यारे मियां केस: नाबालिग पीड़िता की मौत के मामले में SIT गठित, DGP ने 10 दिन में मांगी रिपोर्ट
देर रात डीजीपी वीके जोहरी ने आईजी महिला की अध्यक्षता में SIT का गठन किया. डीजीपी ने पूरे मामले की जांच के लिए 10 दिन का समय दिया है, जिसके बाद SIT उन्हें जांच रिपोर्ट सौंपेगी.
भोपाल: प्यारे मियां केस में यौन शोषण की शिकार 17 वर्षीय नाबालिग की मौत का मामला उलझ गया है. जिसे सुलझाने के लिए देर रात डीजीपी वीके जोहरी ने आईजी महिला की अध्यक्षता में SIT का गठन किया. डीजीपी ने पूरे मामले की जांच के लिए 10 दिन का समय दिया है, जिसके बाद SIT उन्हें जांच रिपोर्ट सौंपेगी.
क्या है मामला ?
दरअसल प्यारे मियां यौन शोषण मामले की शिकार 17 वर्षीय नाबालिग पीड़िता की हमीदिया अस्पताल में गुरुवार को मौत हो गई थी. पीड़िता बालिका गृह में रह रही था, जहां उसने ढेर सारी नींद की गोलियों खा ली थी. हालत गंभीर होने के कारण उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई.
अस्पताल से सीधा श्मशान घाट ले जाया गया शव
बैरागढ़ एसडीएम मनोज उपाध्याय हमीदिया अस्पताल पहुंचे और उन्होंने पीड़िता के परिजनों को 2 लाख रुपए का चेक दिया. पोस्टमार्टम के बाद पीड़िता के चाचा और पिता ने उसके शव को आखरी बार घर ले जाने की जिद की, लेकिन पुलिस ने उनकी नहीं सुनी. हबीबगंज सीएसपी भूपेंद्र सिंह ने पिता और चाचा को शव वाहन में बैठाकर विश्राम घाट रवाना कर दिया. इसके बाद क्राइम ब्रांच की टीम नाबालिग के घर गई और मृतिका की मां और महिलाओं को विश्राम घाट लेकर गई और उनके सामने अंतिम संस्कार कर दिया.
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खड़ें हुए कई सवाल
मृतका की मां ने खुद मुख्यमंत्री से सीबीआई जांच की मांग की. विपक्ष ने इस घटना की तुलना उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड से की. कई सवाल खड़े हुए कि मृतका के पास नींद की इतनी गोलियां कहां से आई और पुलिस को जल्दीबाजी में अंतिम संस्कार का आदेश किसने दिया?
मृतका की दादी ने पुलिस पर आरोप लगाए हैं. उनके बार-बार मांग करने के बावजूद पुलिस ने उन्हें बच्ची का शव नहीं सौंपा और अंतिम संस्कार कर दिया. साथ ही परिजनों का यह भी कहना है कि बालिका गृह की संचालक उन्हें बेटी से मिलने नहीं देती थी न ही फोन पर बात करने देती थी. परिवार वालों को आशंका है कि उनकी बेटी को नींद की गोलियां खिलाई गई हैं, क्योंकि वह पहले कभी नींद की गोलियां नहीं खाती थी.
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