भोपाल: ज्योतिरादित्य सिंधिया को गले में भगवा गमछा डाले आज साल भर पूरा हो गया है. साल 2020 में आज ही के दिन उन्होंने कांग्रेस पार्टी से बगावत करते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था. अब वह भाजपा उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के सांसद चुने जा चुके हैं. इन 365 दिनों में उन्होंने खुद को भाजपा के कल्चर में ढालने की भी खूब कोशिश की है. यह बदलाव उनके व्यक्तित्व में दिखाई भी दे रहा है. वह 'महाराज' की छवि से निकलकर लगातार 'जमीनी' होते जा रहे हैं.


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सिंधिया अपने राज घराने वाले आवरण को उतारकर फेंक देना चाहते हैं जो उनको पारिवारिक विरासत में मिला है. वह जननेता की अपनी छवि गढ़ना चाहते हैं. भाजपा में शामिल होने के बाद जब सिंधिया को एक न्यूज चैनल के रिपोर्टर ने 'महाराज' कहकर संबोधित किया था तो उन्होंने इस पर आपत्ति जताई थी. सिंधिया ने कहा था कि वह 'महाराज' नहीं है, अब देश में राजशाही नहीं लोकतंत्र है. अब सिंधिया लगातार आम जनता से मिल रहे हैं, लोगों के घर जा रहे हैं, सफाईकर्मियों के यहां भोजन कर रहे हैं.  


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राहुल गांधी ने बीते दिनों एक बयान में कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी. इसके लिए उन्हें कांग्रेस में वापस आना होगा. लेकिन बीते एक साल में खुद को भाजपा संगठन में स्वीकार्य करवाने के लिए सिंधिया ने जिस ढंग से कोशिश की है, वह भगवा पार्टी में उनकी लंबी पारी का संकेत दे रहा है. भाजपा में शामिल होने के तुरंत बाद नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय जाना यही संकेत दे रहा था कि सिंधिया पार्टी की विचारधारा को पूरी तरह आत्मसात करना चाहते हैं.


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मध्य प्रदेश में संघ पदाधिकारियों से मेलजोल बढ़ाना, भाजपा में खुद के धुर विरोधियों से सामंजस्य बैठाना उनके एक परिपक्व नेता बनने की कहानी कह रहा है. साथ ही पार्टी संगठन में उनकी पैठ भी बढ़ा रहा है. सिंधिया अपने अधिकांश दौरों में मंदिरों और धार्मिक समारोह में शिरकत करते हैं. उनके ही निर्देश पर गुना में श्रीराम की भव्य मूर्ति स्थापित की जा रही है. ग्वालियर में विकास कार्यों के श्रेय को लेकर भाजपा सांसद विवेक शेजवलकर और उनके बीच कोल्ड वार की खबरें चलीं तो सिंधिया ने खुद शेजवलकर के घर पहुंचकर अफवाहों पर पूर्ण विराम लगा दिया.  


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