बेहद अनोखी होती है यहां की गोवर्धन पूजा, खौलते दूध में नहाते हैं पुजारी... जानिए कहां का है मामला
सोनभद्र में मारकुंडी के पास लोरिक पत्थर के मैदान में हैरतअंगेज तरीके से गोवर्धन पूजा के दिन अनोखी रस्म निभाई जाती है. खौलते दूध से नहाने के बाद पुजारी पूजा करते हैं. वीर लोरिक स्मारक से जुड़ी रोचक कहानी भी इस खबर में पढ़िए....
सोनभद्र: हर साल की तरह इस बार भी सोनभद्र के वीर लोरिक स्मारक पर गोवर्धन पूजा का आयोजन किया गया. देश भले ही आधुनिक होकर आगे बढ़ रहा है, लेकिन आस्था के नाम पर अभी भी कई लोग पुरानी मान्यताओं से बाहर नहीं निकल पाए. कुछ इसी तरह की मान्यता लोरिक स्मारक से जुड़ी है, जो ऐतिहासिक स्थल माना जाता है. यहां की अनोखी परंपरा हैरान करने वाली है..
कैसे अनोखी परंपरा है...
लोरिक स्मारक स्थल पर होने वाली गोवर्धन पूजा अनोखी है. अद्भुत है, अजीब है, क्योंकि खौलते दूध से खुद को जलाने की इस परंपरा में ना तो कोई जख्मी होता है और न ही जलता है. खौलते दूध से नहाने की रस्म सदियों से निभाई जा रही है. पूजा के दौरान पुजारी बाबा खौलते हुए दूध से स्नान करता है. दूध में चावल पड़ा होता है, जो पूजा कराने वाले पंडित के आंखों पर डाला जाता है. इस बार भी ऐसा हुआ.
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खौलते दूध से नहाने पर भी नहीं जलते
पूजा कराने वाले (पतिवाह) राजेंद्र बाबा से जब यह पूछा गया कि गर्म दूध से नहाने पर क्यों नहीं जलते तो उन्होंने जवाब दिया कि सब भगवान कृष्ण की कृपा है, जलते नहीं हैं, भक्ति से शक्ति होती है और शक्ति से भक्ति की जाती है, जो लोग पूजा में निमित्त नियमों का पालन करके आते हैं, वो खोलते हुए दूध से नहाने के बाद भी नहीं जलते और जो पूजा के नियमों का पालन नहीं करते, उनको परेशानी होती है. गोवर्धन पूजा के बारे में कहा जाता है कि भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी, तब से लेकर इस स्थान पर ये परंपरा चली आ रही है.
इस बार नहीं की कोई राजनीति भविष्यवाणी
पूजा कराने वाले पतिवाह बाबा राजेंद्र पूरे वर्ष के मौसम की भविष्यवाणी करते हैं किसानों को किस मौसम में बरसात से फायदा होगा और कब नुकसान इसकी भी जानकारी देते हैं. इसके साथ ही राजनीतिक उठापटक पर भी भविष्यवाणी करते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने किसी भी राजनीतिक मुद्दे पर बोलने से इंकार कर दिया. हालांकि उनके मुताबिक 2 महीने बाद कोविड -19 इस देश से खत्म हो जाएगा.
स्मारक स्थल से जुड़ी है रोचक कहानी
वीर लोरिक स्मारक ऐतिहासिक स्थल के तौर पर देखा जाता है. मान्यताओं के मुताबिक अगोरी का राजा मुलागत की रहने वाली मंजरी को अपनी पटरानी बनाना चाहता था, लेकिन मंजरी वीर लोरिक से प्रेम करती थी. मंजरी से विवाह करने के लिए वीर लोरिक ने अगोरी किले पर चढ़ाई कर राजा मुलागत को परास्त किया.
वीर लोरिक और मंजरी के प्रेम की निशानी है ये स्थल
युद्ध जीतकर वापस लौटते समय मंजरी ने वीर लोरिक लो कहा कि हमारे प्रेम की कोई निशानी होनी चाहिए. ऐसी लगभग 18 फीट ऊंची शिला को वीर लोरिक ने अपनी तलवार से दो टुकड़ों में बांट दिया, लेकिन एक टुकड़ा नीचे गिर गया, जिस पर मंजरी ने कहा कि दोबारा इस शिलाखंड को अपनी तलवार से दो टुकड़ों में बांट दीजिए, लेकिन एक भी टुकड़ा नीचे ना गिरे, हुआ भी ऐसा.इसके बाद से ही इस स्थान को पवित्र और वीर लोरिक और मंजरी के प्रेम की निशानी के रूप में जाना जाता है. हर साल यहां भाई दूज के दिन गोवर्धन पूजा का इसी तरह आयोजन किया जाता है.
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