Bhopal Seat: BJP का गढ़ है ये लोकसभा सीट, गांधीनगर छोड़ यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे आडवाणी! समझें समीकरण
MP Lok Sabha Elections 2024: भोपाल लोकसभा सीट पर बीजेपी का दबदबा है. 1989 से लेकर अब तक बीजेपी लगातार 9 चुनाव जीत चुकी है. 2019 में साध्वी प्रज्ञा ने दिग्विजय सिंह को हराया था तो चलिए जानते हैं भोपाल लोकसभा सीट का इतिहास...
MP Lok Sabha Elections 2024: 2024 के लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही दिन बचे हैं. आगामी आम चुनाव की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है. इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुटी हुई हैं. भोपाल सीट की बात करें तो यह भारतीय जनता पार्टी का मजबूत गढ़ है. बीजेपी ने यहां लगातार 9 चुनाव जीते हैं. वहीं, कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को हराया था, तो आइए समझते हैं भोपाल लोकसभा सीट का समीकरण...
भोपाल लोकसभा की विधानसभा सीटें कौन सी हैं?
भोपाल लोकसभा सीट में 8 विधानसभा सीटें शामिल हैं. जो कि भोपाल दक्षिण-पश्चिम, हुजूर, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य, बैरसिया, सिहौर, नरेला और गोविंदपुरा हैं. फिलहाल 8 में से 6 सीटें बीजेपी के पास हैं. जबकि कांग्रेस को 2 सीटों पर जीत मिली थी.
मतदाताओं की संख्या
2011 की जनगणना के अनुसार भोपाल लोकसभा सीट पर 19 लाख (1,957,241) से ज्यादा मतदाता हैं. इनमें से 10 लाख (1,039,153) से ज्यादा पुरुष और 9 लाख (918,021) से ज्यादा महिला वोटर हैं.
भोपाल लोकसभा सीट के मतदाता
प्रकार | मात्रा |
---|---|
कुल मतदाता | 19 लाख |
पुरुष मतदाता | 10 लाख |
महिला मतदाता | 9 लाख |
भोपाल लोकसभा सीट का इतिहास
1952 में हुए पहले आम चुनाव की बात करें तो उस समय भोपाल में 2 लोकसभा सीटें थीं. जहां कांग्रेस ने दोनों सीटों पर जीत हासिल की. चंद्रभानु राय और सैदुल्लाह रज़मी सांसद बनकर देश की संसद में पहुंचे थे. 1957 में देश का दूसरा आम चुनाव हुआ. खास बात यह थी कि MP के गठन के बाद यह राज्य का पहला आम चुनाव था. चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. इस बार कांग्रेस ने मैमूना सुल्तान को मैदान में उतारा था. मैमूना सुल्तान ने 1957 और 1962 दोनों चुनावों में भोपाल सीट जीती. मैमूना सुल्तान की बात करें तो वो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े थीं. वह भोपाल को राजधानी बनाने के लिए संघर्ष करने वालों में से थीं. बता दें कि सुल्तान को दो बार राज्यसभा भी भेजा गया. मैमूना सुल्तान के परदादा शाह सूजा दुर्रानी साम्राज्य के शासक और मूल रूप से अफगानिस्तान से थे. इसके अलावा मैमूना सुल्तान आईसीएस अधिकारी मोहम्मद असगर अंसारी की बेटी थीं.
भोपाल में कांग्रेस की पहली बार
1967 में हुए चौथे आम चुनाव में कांग्रेस को पहली बार हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के जगन्नाथराव जोशी चुनाव जीते थे. जगन्नाथराव जोशी ने दो बार की सांसद मैमूना सुल्तान को मात दी थी. जगन्नाथराव जोशी की बात करें तो वो जनसंघ के बहुत कद्दावर नेता थे. जगन्नाथराव जोशी को उनकी ऑरेटरी स्किल्स के लिए जाने जाते थे. जोशी ने गोवा मुक्ति आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. साथ ही कर्नाटक में जनसंघ और भाजपा के विस्तार में उनके योगदान के लिए उन्हें "कर्नाटक केसरी" की उपाधि दी गई थी.
कांग्रेस की वापसी
1971 में हुए पांचवें आम चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की. इस बार शंकर दयाल शर्मा चुनाव जीते. शंकर दयाल शर्मा ने जनसंघ के भानु प्रकाश सिंह को हराया था. शंकर दयाल शर्मा की बात करें तो उनकी गिनती देश के वरिष्ठ नेताओं में होती है. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे. बाद में वह भारत के 9वें राष्ट्रपति बने और इसके पहले उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति और कई राज्यों के राज्यपाल की जिम्मेदारी भी मिली.
जनसंघ के मुस्लिम नेता ने जीता था चुनाव
1977 में हुए छठे आम चुनाव में जनता पार्टी ने जीत हासिल की. यहां जनता पार्टी ने जनसंघ से जुड़े आरिफ बेग को मैदान में उतारा था और उनके सामने थे कद्दावर कांग्रेस नेता और सांसद शंकर दयाल शर्मा. खास बात यह है थी कि उस वक्त भी शंकर दयाल शर्मा भोपाल में काफी मशहूर थे और उन्हें भोपाल की शान माना जाता था, लेकिन 77 के चुनाव में जनता में कांग्रेस के प्रति काफी गुस्सा था और शंकर दयाल शर्मा भी इंदिरा गांधी की तरह कद्दावर नेताओं के चुनाव हारने वालों की सूची में आ गए थे. हालांकि, 1980 में हुए सातवें आम चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की. इस बार शंकर दयाल शर्मा ने फिर से चुनाव जीता.इस बार भी आरिफ बेग और शंकर दयाल शर्मा आमने-सामने थे, जहां करीबी मुकाबले में शर्मा ने जीत हासिल की.
भोपाल में कांग्रेस की आखिरी जीत
साल था 1984 का, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी. उनकी मृत्यु के बाद देश में चुनाव हुए. लोगों की सहानुभूति कांग्रेस के प्रति थी. ऐसा देखने को भी मिला क्योंकि कांग्रेस ने पहली बार 400 सीटों का आंकड़ा पार किया. अटल जैसे बड़े नेता चुनाव हार गये. भोपाल में भी कांग्रेस की जीत हुई. कांग्रेस के केएन प्रधान ने बीजेपी के लक्ष्मी नारायण शर्मा को मात दी. खास बात यह है कि इस सीट पर कांग्रेस की यह आखिरी जीत थी. इसके बाद कांग्रेस कभी भी भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव नहीं जीत सकी.
भाजपा युग
भोपाल में बीजेपी की जीत का क्रम 1989 से शुरू हुआ, जो अब तक जारी है. 1989, 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के सुशील चंद्र वर्मा ने भोपाल सीट से लगातार जीत हासिल की. उन्होंने के.एन. प्रधान, मंसूर अली खान पटोदी, कैलाश अग्निहोत्री और आरिफ बेग को हराया. मंसूर अली खान पटोदी ये नाम आपको सुना- सुना लग रहा होगा. सुना तो होगा ही, वैसे आज की पीढ़ी के लिए मंसूर अली खान पटोदी की पहचान एक्टर सैफ अली खान के पिता के रूप में होती है. हालांकि, मंसूर अली खान पटोदी की दो और खास पहचान हैं. एक तो यह कि वह अपने समय के धाकड़ क्रिकेटर थे और दूसरा यह कि वह ब्रिटिश राज के दौरान पटौदी रियासत के आखिरी शासक थे.
कपिल देव पहुंचे थे प्रचार के लिए
आपको बता दें कि 1991 के लोकसभा चुनाव में मंसूर अली खान पटोदी ने शहर-ए-भोपाल से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. निशान कांग्रेस का था सो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कपिल देव भी प्रचार करने पहुंचे थे. हालांकि, उन दिनों राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था, इसलिए पटौदी चुनाव हार गए थे.
उमा भारती भी भोपाल से सांसद चुनी गईं
1999 में भोपाल सीट पर मुकाबला दिलचस्प था. दो कद्दावर नेता उमा भारती और सुरेश पचौरी आमने-सामने थे. हालांकि, चुनाव में उमा भारती को धमाकेदार जीत मिली थी. चुनाव में उमा भारती को 55% वोट शेयर के साथ 5,37,905 वोट मिले. वहीं, कांग्रेस के सुरेश पचौरी को 38% वोट शेयर के साथ 3,69,041 वोट मिले. उमा ने यह चुनाव 168864 वोटों से जीता था.
उमा बनीं CM तो BJP ने इस पूर्व CM को मैदान में उतारा
वर्ष 2004 में हुए चौदहवें आम चुनाव में कांग्रेस ने देश में वापसी की. हालांकि, फिर भी भोपाल में उसे जीत नसीब नहीं हुई. आपको बता दें कि 2003 के अंत में हुए एमपी चुनाव में बीजेपी को शानदार जीत मिली थी. राज्य में बीजेपी की सरकार बनी. 1999 में भोपाल से सांसद का चुनाव जीतने वाली उमा भारती मुख्यमंत्री थीं. जाहिर सी बात है कि सीएम उमा थीं तो टिकट किसी और को देना था. जब उमा सीएम बनीं तो बीजेपी ने यहां पूर्व सीएम कैलाश जोशी को मैदान में उतारा. जिसके बाद जोशी 2004 और 2009 में लगातार यहां से 2 लोकसभा चुनाव जीते.
आपको बता दें कि कैलाश जोशी 1970 के दशक में मध्य प्रदेश के 9वें मुख्यमंत्री बने थे. आपने उनका और उनके बेटे दीपक जोशी का नाम पिछले साल खबरों में सुना होगा. दरअसल, पिछले साल दीपक जोशी काफी सुर्खियों में रहे थे. एमपी 2023 चुनाव से पहले दीपक जोशी ने बीजेपी पर खूब निशाना साधा था. साथ ही बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए. उन्होंने खातेगांव सीट से चुनाव भी लड़ा था. हालांकि, उनकी हार हुई थी.
आडवाणी लड़ना चाहते थे चुनाव
बीजेपी 2014 का चुनाव 'अबकी बार मोदी सरकार' के नारे के साथ लड़ रही थी. चुनाव में बीजेपी को भारी जीत मिली. भोपाल की बात करें तो यहां उम्मीदवार बदला, लेकिन नतीजा वही रहा यानी एक बार फिर बीजेपी की जीत. पार्टी ने कैलाश जोशी को टिकट देने की बजाय आलोक संजर को मैदान में उतारा तो दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी पीसी शर्मा थे. जहां आलोक संजर ने कांग्रेस के पीसी शर्मा को 370696 वोटों से हराया था.
आपको बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसी खबरें आईं थीं कि लाल कृष्ण आडवाणी भोपाल से चुनाव लड़ना चाहते थे. बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने उन्हें गांधीनगर से चुनाव लड़ने को कहा था. हालांकि, कहा जाता है कि आडवाणी इस फैसले से नाखुश थे और भोपाल से चुनाव लड़ने पर अड़े हुए थे. यह सस्पेंस कई दिनों तक जारी रहा था, फिर अंत में आडवाणी ने गांधीनगर से चुनाव लड़ने का फैसला किया. जहां, उन्होंने जबरदस्त जीत हासिल की थी.
दिग्गी राजा की करारी हार
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो पूरे देश की नजर भोपाल सीट पर थी. यहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ रहे थे और उनके सामने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर थीं. आपको बता दें कि चुनाव से पहले ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अपने बयानों और केस को लेकर सुर्खियों में आ गई थीं. चुनाव में दिग्विजय सिंह के लिए कई बॉलीवुड हस्तियां प्रचार करने पहुंचीं. हालांकि, दिग्गी राजा को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 3 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीती थीं.
पिछले कुछ चुनावों के नतीजे
2009 भोपाल चुनाव परिणाम
पार्टी | उम्मीदवार | वोट | वोट% |
---|---|---|---|
BJP | कैलाश चंद्र जोशी (विजेता) | 3,35,678 | 50.95 |
कांग्रेस | सुरेंद्र सिंह ठाकुर | 2,70,521 | 41.06 |
BSP | अशोक नारायण सिंह | 18,649 | 2.83 |
2014 भोपाल चुनाव परिणाम
पार्टी | उम्मीदवार | वोट | वोट% |
---|---|---|---|
BJP | आलोक संजर (विजेता) | 7,14,178 | 63.19 |
कांग्रेस | पी.सी. शर्मा | 3,43,482 | 30.39 |
AAP | रचना ढींगरा | 21,298 | 1.88 |
2019 भोपाल चुनाव परिणाम
पार्टी | उम्मीदवार | वोट | वोट% |
---|---|---|---|
BJP | साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (विजेता) | 866,482 | 61.54 |
कांग्रेस | दिग्विजय सिंह | 5,01,660 | 35.63 |
BSP | माधो सिंह अहिरवार | 11,277 | 0.80 |
भोपाल के सांसदों की लिस्ट
चुनाव | विजेता | मुख्य प्रतिद्वंद्वी | विजेता के वोट | विजेता का वोट शेयर |
---|---|---|---|---|
1957 | मैमूना सुल्तान (कांग्रेस) | हरदयाल देवगन (HMS) | 81,134 | 41% |
1962 | मैमूना सुल्तान (कांग्रेस) | ओम प्रकाश (HMS) | 83,204 | 37% |
1967 | जे.आर. जोशी (बीजेएस) | मैमूना सुल्तान (कांग्रेस) | 1,38,698 | 49% |
1971 | शंकर दयाल शर्मा (कांग्रेस) | भानु प्रकाश सिंह (बीजेएस) | 1,58,805 | 51% |
1977 | आरिफ बेग (बीएलडी) | शंकर दयाल शर्मा (कांग्रेस) | 2,31,023 | 63% |
1980 | शंकरदयाल शर्मा (कांग्रेस) | आरिफ बेग (जेएनपी) | 1,68,059 | 44% |
1984 | के.एन. प्रधान (कांग्रेस) | लक्ष्मी नारायण शर्मा (BJP) | 2,40,717 | 62% |
1989 | सुशील चंद्र वर्मा (BJP) | के.एन. प्रचान (कांग्रेस) | 2,81,169 | 46% |
1991 | सुशील चंद्र वर्मा (BJP) | मंसूर अली खान पटोदी (कांग्रेस) | 3,08,946 | 54% |
1996 | सुशील चंद्र वर्मा (BJP) | कैलाश अग्निहोत्री (कांग्रेस) | 3,53,427 | 49% |
1998 | सुशील चंद्र वर्मा (BJP) | आरिफ बेग (कांग्रेस) | 4,94,481 | 57% |
1999 | उमा भारती (BJP) | सुरेश पचौरी (कांग्रेस) | 5,37,905 | 55% |
2004 | कैलाश जोशी (BJP) | साजिद अली (कांग्रेस) | 5,61,563 | 65% |
2009 | कैलाश जोशी (BJP) | सुरेंद्र सिंह ठाकुर (कांग्रेस) | 3,35,678 | 51% |
2014 | आलोक संजर (BJP) | पी सी शर्मा (कांग्रेस) | 7,14,178 | 63% |
2019 | साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (BJP) | दिग्विजय सिंह (कांग्रेस) | 8,66,482 | 62% |