मध्य प्रदेश में सरकार राज्य के 40 फीसदी जंगलों को निजी हाथों में देने की तैयारी कर रही है. इसके लिए वन विभाग की तरफ से जमीनों की जानकारी मांगी गई है. दरअसल सरकार वनों की स्थिति को सुधारने के लिए 40 फीसदी वन क्षेत्र को पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप मॉडल के तहत निजी कंपनियों को देने की योजना बना रही है. हालांकि आदिवासी संगठन सरकार के इस फैसले के विरोध में उतर गए हैं. ''जय आदिवासी युवा संगठन'' ने सरकार की इस योजना के खिलाफ आंदोलन करने की चेतावनी दी है. 


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मध्य प्रदेश के जंगल का एक बड़ा हिस्सा आरक्षित है और एक हिस्से में राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और सेंचुरी आदि हैं. बाकी भाग को बिगड़ा वनक्षेत्र माना जाता है. बिगड़ा वन क्षेत्र उसे माना जाता है, जिसमें पेड़ कम हों और झाड़ियां या खाली जमीन अधिक हो. बता दें कि राज्य के कुल 94,689 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में से लगभग 37,420 वर्ग किलोमीटर का इलाका बिगड़ा वन क्षेत्र है. सरकार का कहना है कि इन बिगड़े वन क्षेत्रों का निजी क्षेत्रों द्वारा वनीकरण किया जाएगा. मध्य प्रदेश के PCCF (Principal Chief Conservator of Forests)राजेश श्रीवास्तव ने वनों की जानकारी लेने के लिए निर्देश भी जारी कर दिए हैं.


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वनमंत्री बोले- वनों में सुधार करने में मदद मिलेगीः मध्य प्रदेश के वनमंत्री विजय शाह ने एक विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि 'प्रदेश के बिगड़े वनक्षेत्रों को तेजी से पुनर्स्थापित करने और इनमें सुधार करने के उद्देश्य से वन विभाग द्वारा निजी निवेश को जिम्मा सौंपने की योजना बनायी गई है. इसका प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा और वहां से मंजूरी मिलने के बाद निजी निवेश को आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.'


वनमंत्री के अनुसार, निजी कंपनियों के साथ अनुबंध की अवधि 30 साल होगी. निजी निवेशक से अनुबंध के तहत प्राप्त होने वाला 50 फीसदी हिस्सा राज्य शासन द्वारा ग्राम वन समिति या ग्राम सभा को दिया जाएगा. 


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आदिवासी संगठनों ने जतायी नाराजगीः वहीं आदिवासियों ने सरकार की इस योजना पर आपत्ति जतायी है. आदिवासी संगठन जय आदिवासी युवा संगठन का कहना है कि वनों पर आदिवासियों का हक है. संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रविराज बघेल ने वनों के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन करने की चेतावनी दी है. संगठन ने सरकार से वनों का निजीकरण करने का फैसला वापस लेने की मांग की है. 


कांग्रेस ने खोला सरकार के खिलाफ मोर्चाः विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस मामले में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने कहा है कि ये फैसला असंवैधानिक है. संविधान में जंगल की ज़मीन पर आदिवासियों का हक बताया गया है. इसमें छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी. कांग्रेस ने आदिवासियों का समर्थन करते हुए फैसला रोकने की मांग की है.


बीजेपी ने कहा है कि इसमें सरकार की मंशा रोज़गार के मौके पैदा करने की है. बीजेपी के सीनियर विधायक यशवंत सिसोदिया ने निजी कंपनियों से निवेश के ज़रिए वनों के विकास को बेहतर तरीका बताया है. उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार में ये ध्यान रखा जायेगा कि आदिवासियों के हितों पर कोई फर्क नहीं पड़े.


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