राहुल सिंह राठौड़/ उज्जैन: शहर के थाना देवास गेट क्षेत्र अंतर्गत मालीपुरा में बने संघ के कार्यालय पर देर शाम 4 बजे उस वक़्त हड़कंप मच गया, जब शहर की बंद पड़ी विनोद मिल की चाल के 4000 मजदूरों के 150 करीब परिवार अपनी मर्जी से ईसाई धर्म अपनाने के लिए उज्जैन संघ प्रमुख को ज्ञापन देने पहुंचे और उनके परिजनों का जमकर हंगामा भी कार्यालय के बाहर देखने को मिला. इसी बीच 3 महिलाएं जिला चिकित्सालय में ब्लड प्रेशर व सीने में दर्द के चलते भर्ती की है. वहीं एक परिवार जिला अस्पताल के सामने अपने मासूम बच्चे से साथ फुटपाथ पर अभी से रहने पहुंच गया.


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इस ज्ञापन में मजदूरों के परिवार ने बताया कि हम कई बार जिम्मेदारों को ज्ञापन दे देकर थक चुके हैं. बावजूद उसके कोई निराकरण नहीं निकल रहा है. सीएम द्वारा जमीन देने के आश्वासन के बावजूद हमे बार बार क्षेत्रीय प्रशासन द्वारा मकान खाली करने का नोटिस देकर परेशान किया जा रहा है. आज जिला कलेक्टर व एसडीएम ने आकहरी दिन कहकर खाली करने को कहा. इस वजह से हम अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करने का ज्ञापन देने के लिए संघ कार्यालय पहुंचे हैं. अगर कल प्रशासनिक अमला मकान ध्वस्त करने आता है और हम 150 परिवारों में से किसी को कुछ होता है तो उसकी जिम्मेदारी प्रशासन की व शासन की होगी.


क्या है पूरा मामला जानिए!
दरअसल थाना कोतवाली क्षेत्र अन्तर्गत आने वाली विनोद मिल आज से 26 वर्ष पूर्व यानी 1996 में भारी नुकसान के चलते बंद हो गई थी. जिससे वहां काम करने वाले करीब 4000 से अधिक मजदूर बेरोजगार हो गए. हालांकि सभी मजदूर विनोद मिल की बनी चाल में परिवार के साथ आज भी रहते हैं. जिससे उन्हें घर के लिए परेशान नहीं होना पड़ा और सभी ने अपने नए काम की तलाश कर ली. लेकिन अब न्यायालय के आदेश के बाद कार्रवाई की तैयारी जोरों पर है. लोग विरोध पर उतरे है. घर के मालिकाना हक को लेकर चिंता में है. मजदूरों के परिवार का कहना हैं कि हमारी यहां 4 पीढ़ी बीत गई और अब मकान चले गए. मुआवजा या जमीन नहीं मिली तो कहां जायंगे? दरअसल सरकार जमीन खाली करवाने के बाद मुआवजा तो देगी ही लेकिन चाल के लोग चाहते है कि जमीन खाली करना ही न पड़े.


अब तक क्या क्या हुआ
आज से 4 वर्ष पूर्व न्यायालय का राहत भरा फैंसला आया था कि मौजूदा सरकार 400 करोड़ की जमीन को 2 साल के अंतराल में खाली करवाये और जो करीब 4000 से अधिक मजदूरों का परिवार है, उन्हें 58 करोड़ व अन्य जो ड्यूज है वो चुकाए. बीच में कोरोना के 2 साल के कारण खाली नहीं हो पाए. पर अब ये कार्रवाई को लेकर तेजी सामने आई है. अब जब प्रशासन ने कार्रवाई के लिए तैयारी शुरू कर दी है तो लोग सड़क पर उतरकर नारे बाजी करने से लेकर धर्म परिवर्तन करवाने तक सड़कों पर उतर चुके हैं कि हमें मकानों का मालिकाना हक दिया जाए, या फिर 5 बीघा जमीन दी जाए. जिस पर हम खुद मकान बना लेंगे. यही पास में हमें 8 बाय 8×8 के कमरे की मल्टी में जो मकान दिए हैं. उसमें हम नहीं जाना चाहते. हमें कोई मुआवजा नहीं मिला, सिर्फ वह पैसा कुछ 6% लोगों को मिला है. जो हमारे पूर्वज मिल में मजदूरी करते थे. उसका ग्रेजुएटी का पैसा ब्याज सहित मिला है. वह भी 3 साल की लड़ाई के बाद अभी हम इस स्थिति में है कि कहीं नहीं जाना चाहते.


अब तक दो हजार की मौत!
आपको बता दें कि अब तक करीब दो हजार श्रमिकों की मृत्यु हो चुकी है. जो जीते हुए दावा राशि पाने से वंचित रहे. कई श्रमिकों ने तो आत्महत्या भी कर ली. साथ ही कुछ श्रमिक और उनके परिजन किडनी, कैंसर, टीबी, मिर्गी, लकवा और दमा जैसी खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे हैं. यदि उन्हें जीवित रहते बकाया राशि का भुगतान नहीं हुआ तो अन्याय होगा, इससे श्रमिक परिवारों के लोग प्रभावित हो रहे हैं. यह बात को 3 वर्ष पूर्व खुद डॉ मोहन यादव ने कही थी जो अब सरकार में कैबिनेट मंत्री है.