सत्येंद्र परमार/निवाड़ी: मध्य प्रदेश की अयोध्या कहे जाने वाली निवाड़ी जिले की धार्मिक नगरी ओरछा की स्थापना 15वीं सदी में बुन्देला राजा रूद्र प्रताप सिंह ने की थी. ओरछा अपने राजा महल, रामराजा मंदिर, शीश महल, जहांगीर महल आदि के लिए प्रसिद्ध है. बुन्देला शासकों के दौरान ही ओरछा में बुन्देली स्थापत्य कला का विकास हुआ है. ओरछा में बुन्देली स्थापत्य के उदाहरण स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं. जिसमें यहां की इमारतें, मंदिर, महल, बगीचे आदि शामिल हैं. इनमें राजपूत और मुगल स्थापत्य का मिश्रण भी देखने को मिलता है. 500 साल पहले भी 15वीं शताब्दी में ओरछा सबसे विकसित रियासतों में शामिल हुआ करता था. उस समय भी यहां पर सर्वसुविधायुक्त कॉलोनियां थीं और इसमें राजा के मंत्री और सूबेदार साथ रहते थे. ओरछा की इस विकसित संस्कृति की जानकारी यहां पर ऑर्कोलॉजी विभाग द्वारा कराई जा रही खुदाई में सामने आ रही है. यहां पर 500 साल पुरानी विकसित संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़ी कई महत्वपूर्ण चीजे मिली है.


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आपको सुनने में ताज्जुब हो रहा होगा कि छह-सात माह पहले जहां घने जंगल हुआ करते थे. वहां पर आज 500 साल पुरानी 22 संरचनाएं मिली हैं. 80 एकड़ में फैली ऐसी संरचनाएं एक छोटे नगर जैसी हैं. जिसे देखकर यह कहा जा सकता है कि यहां पर 500 साल पहले लोग यहां रहा करते थे. लोग इस पुरातात्विक स्थल  के बारे में जान पाए मध्य प्रदेश राज्य पुरात्तव विभाग के 8 महीनों की मेहनत के कारण. ऐतिहासिक नगर ओरछा में बेतवा नदी के उत्तरी किनारे पर जहां 6-7 महीने पहले घने जंगल के बीच मलबे का ढेर था. वहां वैज्ञानिक तरीके से जब साफ सफाई की गई तो करीब 500 साल पुरानी 22 संरचनाएं मिलीं, 80 एकड़ में फैली ये संरचनाएं छोटे नगर जैसी थी.


खुदाई में संरचनाएं मिलती गईं
जहां छोटे-छोटे महलनुमा आवासों की नींव और ग्राउंड फ्लोर का आधा स्ट्रक्चर साबुत मिला है. राज्य पुरातत्व, अभिलेखागार और संग्रहालय संचालनालय की आयुक्त शिल्पा गुप्ता ने यहां जंगल में साफ-सफाई का काम अक्टूबर 2022 में शुरू कराने के निर्देश दिए थे. जिसके बाद पुराने घरों के अवशेष मिले तो प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया गया. इस पूरे प्रोजेक्ट को लीड पुरातत्व अधिकारी घनश्याम बाथम और इंजीनियर राघवेंद्र तिवारी के नेतृत्व में किया गया. इस पूरे काम को चले आज करीब 7 माह हो गए है. शुरूआती में यहां मलबे के टीले थे. जिन्हें जब हटाया गया तो नई आर्कियोलॉजिकल साइट मिल गई. इसके बाद जैसे-जैसे यहां पर खुदाई की गई वैसे-वैसे संरचनाएं मिलती गई.


22 पुरातात्विक संरचनाओं के वैज्ञानिक प्रमाण के बाद अब आयुक्त शिल्पा गुप्ता द्वारा अब ओरछा के जहांगीर महल के दक्षिणी भाग में खुदाई के काम के साथ अब अनुरक्षण का कार्य भी किया जा रहा है. किले परिसर के 800 मीटर से अधिक के क्षेत्र में खुदाई और सफाई का काम किया जा चुका है. खुदाई में पुरातन काल के मकान आदि के अवशेष एवं अन्य सामग्री भी मिल चूंकि है. यहां पर पुरानी दीवारें व सामान आदि भी मिला जिसका संरक्षण करना बड़ी चुनौती थी. इसके लिए एक्सपर्ट घनश्याम बाथम व उनकी टीम ने दिन रात मेहनत कर इस पुरातात्विक धरोहर को सहेजने का काम किया.


ये मिला खुदाई के दौरान
खुदाई के दौरान यहां पर घरों में उपयोग में आने वाले मिट्टी के बर्तन, सिल चक्की, रसोई घर, अनाज स्टोर करने के पात्र, मिट्टी के बच्चों के खिलौने एवं बावड़ियां और मंदिर के अवशेष मिले हैं.जिससे यह कहा जा सकता है कि यहां पर लोग पूर्व में व्यवस्थित तरीके से रहा करते थे जो एक अच्छे नगर के सिटी प्लान को दर्शाता है. यहां पर मिल रहे अवशेषों से स्पष्ट होता है कि यह पूरा निर्माण एक सुरक्षित कैंपस नुमा एरिया रहा होगा. जहां राजकीय काम को करने वाले लोगों की बस्ती थी. यहां पर मजदूरों से बहुत ही सावधानी से और संभलकर खुदाई कराई गई थी. खुदाई में यहां पर बस्तियों के अवशेष पुराने आलीशान मकानों के अवशेष के साथ ही सड़क भी यहां पर मिली थी. साथ ही उस समय के मिट्टी और टेराकोटा के बर्तनों के साथ ही अन्य चीजें भी यहां पर मिल चुकी हैं. जिसे देखकर पता चलता है कि उस समय भी ओरछा राज्य को व्यवस्थित तरीके से संचालित करने के लिए राजा द्वारा अपने मंत्री, वजीर एवं सूबेदारों की एक कॉलोनी बनाकर रखा जाता होगा.इससे सभी की सुरक्षा के साथ ही राजकीय कार्य में सुविधा होती होगी.


ओरछा का इतिहास 
बता दें कि महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने रविवार 29 अप्रैल सन 1531 को ओरछा किले की नीव डाली गई थी और उसके कुछ माह पश्चात 1531 में ही एक चीता से गाय को बचाते समय उनकी मृत्यु हो गई. उसके पश्चात ओरछा का राज्य उनके बड़े पुत्र भारती चन्द्र ने संभाला और 1554 में पुत्रहीन वह स्वर्गवासी हो गये. अंत एवं उनके छोटे भाई मधुकरशाह ने राज्य की बागडोर संभाली और 1554 से 1592 तक मधुकारशाह ओरछा के राजा रहे और इसी काल में ओरछा में राम मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, चर्तुभुज मंदिर आदि का निर्माण हुआ और लगभग 252 वर्ष तक ओरछा राजधानी रही और उसके बाद 1840 में यहां से हटाकर टीकमगढ़ को राजधानी बनाया गया. कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने अयोध्या से ओरछा आते समय महारानी कुंवर गणेश से यह शर्तानुसार तय कर लिया था कि जहां वे रहेंगे वहां कोई दूसरा राजा न रहेगा. इसलिए ओरछा में भगवान राम की मान्यता राम राजा के रूप है और राम की प्रतिष्ठापना भी ओरछा में मंदिर नहीं महारानी के अपने महल में ही है.