अर्पित पांडे/भोपाल: 'मामा' के नाम से प्रसिद्ध शिवराज सिंह चौहान एक ऐसी शख्सियत हैं, जो सबसे लंबे वक्त से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल रहे हैं. करीब डेढ़ दशक तक सूबे के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठने वाले शिवराज जब 2018 में मुख्यमंत्री पद से हटे तो उस वक्त शायद ही किसी ने उम्मीद की होगी कि 'मामा' महज 15 महीने में ही धमाकेदार वापसी करेंगे. जब कमलनाथ सरकार गिरी तो एक बार फिर शिवराज ही सरताज बने. एक किसान के बेटे का सत्ता के शिखर तक पहुंचने का सफर काफी दिलचस्प रहा है. 


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शिवराज सिंह चौहान के बारे में एक सियासी किस्सा मशहूर है, बताया जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें मध्य प्रदेश के कोटे से केंद्रीय मंत्री बनाया जा रहा था, तैयारियां पूरी हो चुकी थी, शिवराज भी शपथ लेने के लिए तैयार थे. लेकिन एन वक्त पर उनकी जगह प्रहलाद पटेल को केंद्रीय मंत्री बनाया गया. उस वक्त शिवराज सधे अंदाज में यह देखते रहे. शिवराज पूरी ताकत से संगठन में जुटे रहे. यही वजह रही है कि 2005 में जब मध्य प्रदेश में बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया. 


यूं ही नहीं बने जनता के चहेते
शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता की कमान मिलने के बाद लोक कल्याण और अंत्योदय की दिशा में काम करना शुरू किया. विद्यार्थियों को स्कूल जाने लिए साइकिल देना, तीर्थ दर्शन योजना या निर्धारित समय में नागरिक सेवाओं की गारंटी की बात हो, शिवराज की इसी सोच का नतीजा है. वे मुश्किल परिस्थितियों में लोगों की नजरों से ओझल नहीं होते. ओले गिरे तो किसानों के खेतों में पहुंच जाते हैं, बाढ़ आए तो हवाई सर्वेक्षण पर निकल जाते हैं.


'टाइगर जिंदा हैं, लौट कर जरुर आउंगा'.. 
2018 में मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने एक सभा में कहा था कि 'टाइगर जिंदा हैं, लौट कर जरूर आउंगा'. अपनी कही हुई बात को सच साबित करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने 2020 में तमाम सियासी बाधाओं को पार कर जोरदार वापसी की. इसे शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक कुशलता ही मानी जाएगी कि, जब वे सीएम पद से हटे. तो केंद्र में जा सकते थे. लेकिन सियासत के माहिर खिलाड़ी शिवराज प्रदेश की सियासी नब्ज को टटोलने में सफल रहे. वे शायद इस बात को समझ चुके थे कि प्रदेश की कमलनाथ सरकार कभी भी गिर सकती है. इसीलिए उन्होंने केंद्र में न जाकर कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदेश में आंदोलन का झंड़ा बुलंद करके रखा. जिसका नतीजा  उन्हें चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में मिला. 


चौथी पारी में भी पिछले दो साल में शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक करियर में तमाम उतार-चढ़ाव आए लेकिन शिवराज ने राजनीति दंगल में खुद को बनाए रखा. यही वजह है कि, शिवराज ही मध्य प्रदेश के असली सरताज माने जाते हैं.


किसान के घर में जन्में थे शिवराज 
5 मार्च 1959 को सीहोर जिले के जैत गांव में एक किसान प्रेम सिंह चौहान के घर जन्में शिवराज सिंह चौहान में नेतृत्व के गुण बचपन में ही दिखने लगा था. जब वे अपने खेतों में मजदूरी करने वाले मजदूरों के लिए अपने पिता प्रेम सिंह से ही भिड़ गए. शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक करियर की शुरूआत संघ के कार्यकर्ता के तौर पर हुई थी, इमरजेंसी के दौर में जेल जाने से उनकी नेतृत्व क्षमता मजबूत हुई. क्योंकि शिवराज में भविष्य की राजनीति के बड़े नेता बनने के सारे गुण थे. 


1990 में पहली बार बने विधायक 
1975 में छात्र राजनीति से शुरूआत करने वाले शिवराज सिंह को 1990 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर सीहोर की बुधनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला. महज एक साल बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी लोकसभा सीट विदिशा से शिवराज सिंह को उत्तराधिकारी बनाया. शिवराज सिंह चौहान के अब तक के राजनीतिक करियर की बात की जाए तो.


  • 1990 में पहली बार विधायक बने

  • 1991 में पहली बार लोकसभा सांसद बने

  • शिवराज सिंह 2003 में बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने

  • विदिशा लोकसभा सीट से लगातार पांच बार सांसद चुने गए

  • 29 नवंबर 2005 को पहली बार मध्य प्रदेश के सीएम पद की शपथ ली

  • 13 साल तक एमपी मुख्यमंत्री रहे

  • 13 मार्च 2020 को चौथी बार मध्य प्रदेश के सीएम पद की कमान संभाली


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