एक किताब ने बदल दी थी 97 साल के स्वतंत्रता सेनानी की लाइफ, बोस और गांधी के रास्ते पर चले
विदिशा के 97 वर्षीय रघुवीर चरण शर्मा जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी. भारत देश से अग्रेजों को भगाने के लिए उन्हें जेल जाना पड़ा. महात्मा गांधी के भारत छोडो आन्दोलन में काम किया. आज भी 97 वर्ष की उम्र में देश भक्ति का जज्बा कम नहीं हुआ है. वे लगातार समाज के लिए काम कर रहे हैं.
दीपेश शाह/विदिशा: देश की आजादी में जो शहीद हो गए उनका तो योगदान अतुलनीय है. मगर आज जो स्वतंत्रता सेनानी हमारे बीच जीवित हैंं, उनका योगदान भी कम नहीं आंका जा सकता. वहीं विदिशा में अब एकमात्र बचे रघुवीर चरण शर्मा तो बिरले ही सेनानी हैं. रघुवीर चरण शर्मा में महज 10 वर्ष की उम्र में सुन्दर लाल की किताब 'भारत में अंग्रेजी शासन" पढ़ने से देश प्रेम की भावना जगी.उन दिनों सुन्दर लाल की यह किताब प्रतिबंधित थी.
प्रतिबंधित किताब पढ़ने के बाद जागा था जोश
विदिशा की संकरी गलियों में रहने वाले कन्हैया लाल शर्मा जो न्यायालय में रीडर थे, के घर 13 फरवरी 1926 को रघुवीर चरण शर्मा का जन्म हुआ. उन दिनों भारत में अंग्रेजी शासन था. प्रारंभिक समय से ही रघुवीर चरण शर्मा क्रन्तिकारी थे. बात 1936 की है, जब सुन्दर लाल की किताब "भारत में अंग्रेजी शासन" जो उन दिनों प्रतिबंधित किताब थी, इस किताब के अध्ययन से देश प्रेम की भावना उमड़ उठी. उसके बाद रघुवीर चरण शर्मा क्रांतिकारी नेताओं के संपर्क में आ गए और देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के अभियानों के हिस्सा बनने लगे.
'भारत छोड़ो आंदोलन' में लिया था भाग
बात 1942 की है. महात्मा गांधी ने अंग्रेजोंं के खिलाफ 'भारत छोड़ो आंदोलन' चलाया, जिस आन्दोलन में "करो या मरो' का नारा दिया गया.आदेश के अनुसार, रघुवीर चरण शर्मा गांव -गांव जाकर लोगों को अंग्रेजों को सहयोग न करने को प्रेरित करने लगे. स्कूल-स्कूल जाकर छात्रों में देश प्रेम की भावना भरने लगे. उसी दौरान उन्हें और उनके साथियों को विदिशा से ही गिरफ्तार कर लिया गया. 2 माह ग्वालियर जेल में रखा गया. 6 माह तक मुंगावली जेल में रहना पड़ा. अंत में मेहनत रंग लाई और देश को आज़ादी मिली.
सुभाष चंद्र बोस से हुई थी मुलाकात
रघुवीर चरण शर्मा बताते हैं कि मुझे वह दिन याद है जब मैं ट्रेन में सुभाष चन्द्र बोस से मिला था तो उन्होंने कहा था कि अंग्रेज अभी लड़ाई में उलझे हैं तो गर्म लोहे पर चोट करो. महात्मा गांधी से मुंबई जाते समय विदिशा रेलवे स्टेशन पर मुलाकात हुई थी.
सम्मान निधि से भी करा रहो समाज के काम
आज़ादी के बाद घर चलाने के लिए शर्मा ने प्राइवेट नौकरी की. 1972 में इंदिरा गांधी के प्रयासों से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ताम्र पत्र से सम्मानित कर सम्मान निधि की शुरुआत की. जिस सम्मान निधि से शर्मा विवेकानंद, चन्द्र शेखर, महारानी लक्ष्मी बाई की मूर्ति और शहीद ज्योति स्तम्भ की स्थापना करा चुके हैं. देश की सरकार आजादी के ऐसे सेनानायकों को आज भी देश की धरोहर मानते हुए उन्हें सम्मान निधि दे रही है. मगर विदिशा के रघुवीर चरण शर्मा को मिलने वाली सम्मान निधि के पाई-पाई का हिसाब रखते है. अपने आदर्शों के पक्के रघुवीर चरण अपनी सम्मान निधि का उपयोग आज भी राष्ट्र की धरोहर मानकर अपने और अपने परिवार के लिए नहीं करते है. आज भी वह जनहित के कामों में लगाते है. विदिशा के शहरी स्तंभ के लिए 3.5 लाख, गर्ल्स कॉलेज की केंटीन के लिए 2लाख, फर्नीचर के लिए 1 लाख, वहीं कॉलेज में विवेकानंद की प्रतिमा के लिए 1.11 लाख रुपये दिए.
बीमारी में भी समाज का हो रहा काम
देश की आजादी के दस्तावेज़ सुरक्षित रहें और वीरों के साहित्य को हम लोगों तक पहुंचा सकें, इसके लिए स्वतंत्रता सेनानी रघुवीर चरण शर्मा ने हिन्दी भवन की स्थापना कर उसके निर्माण के लिए 10 लाख रुपये दिए थे. साथ अन्य सामाजिक संगठनों को भी लाखोंं रुपये दान दिए है. आज वह बीमार हैं और बहुत कम पैसा वह अपनी बीमारी पर खर्च कर रहे है. रघुवीर चरण शर्मा देश की धरोहर हैं और उन जैसे लोगों के होते हुए हमें चिन्ता नहीं करना चाहिए.
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