राजगढ़: मध्यप्रदेश के राजगढ़ का कड़िया गांव चोरों और जेबकतरों के लिए शिक्षा का केन्द्र बना हुआ है, क्योंकि यहां छोटी उम्र से ही बच्चों को अपराधों की शिक्षा की ट्रेनिंग दी जाती है. यहां के 5 साल से लेकर 12 साल के उम्र के बच्चे करोड़ों रुपए की चोरी की वारदात को अंजाम देते हैं. देश के अलग-अलग राज्यों में चोरी की घटना को आसानी से अंजाम देने में माहिर है. 


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शादी में देते हैं चोरी की घटना को अंजाम
इन दिनों शादियों का सीजन है और ऐसे में कड़िया सासी के लोगों को चोरी की घटना का अंजाम देने का सीजन आ गया है. गुलखेड़ी कड़िया सासी के बच्चे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में बच्चा गैंग सक्रिय हो गया होगा. इन इन बच्चों के महंगे सूट-बूट भी शादियों में जाने के लिए तैयार हो गए होंगे.  फिर बड़े-बड़े शहरों में होने वाली महंगी शादियों में यह बच्चा गैंग चोरी की वारदात को अंजाम देंगे. 


आका रिसर्च करते है कहा शादी होगी 
पहले तो बच्चों के आका रिसर्च करेंगे कि किस बिजनेसमैन की किस होटल किस गार्डन में शादी होनी है और कितने का सोना इस शादी में पहुंचने वाला हैं. जहां जिस शादी में बड़े पैमाने पर सोना चांदी और रुपए पहुंचने की संभावना होती है. वाह ये बच्चा गैंग सूट-बूट पहनकर और मेहमान की तरह शादी में एंट्री करेंगे और मासूम से बच्चे दिखने वाले देखते ही देखते सोना चांदी से भरा बैग और पैसे को काफी आसानी से लेकर रफू चक्कर हो जाएंगे. यह लाखों करोड़ों की चोरी की वारदात को अंजाम देने वाले मात्र 5 से 12 साल के अंदर के उम्र के बच्चे होते हैं.


5 से 10 लाख रुपए का चोरी करने का कोर्स
इन छोटे बच्चों को शादियों में कैसे घुसना है कैसे मेहमानों के साथ घुलना मिलना है. किस तरह से माल से भरा बैग लेकर गायब होना है उसकी ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग की फीस 5 से 10 लाख रुपए होती है. ये ट्रेनिंग राजधानी भोपाल से महज 100 किलोमीटर दूर राजगढ़ जिले के कड़िया सासी और गुलखेड़ी जैसे गांव में दी जाती है. 


हालांकि बीते कुछ सालों में राजगढ़ पुलिस ने काफी हद तक इन गांवों में चोरी की घटनाओं को अंजाम देने वालों पर नक़ल कसने में कामयाब हुई है.  जिसके लिए न्यायालय द्वारा राजगढ़ एसपी प्रदीप शर्मा को प्रशंसा पत्र भी मिल चुका है. इस गांव से अब कहीं लोग शिक्षित होकर सरकारी नौकरी में अच्छी पोस्ट पर नौकरी कर रहा है.


नाबालिग होने का फायदा उठाते हैं
चाइल्ड लाइन केंद्र समन्वयक बताते हैं कि बीते कुछ सालों में 40 बच्चे उनके पास ऐसे आए हैं. जो अलग-अलग राज्यों में चोरी की घटनाओं को अंजाम दे रहे थे लेकिन नाबालिग होने के चलते इन पर कठोर कार्रवाई नहीं होती. इसका फायदा यह लोग उठाते हैं. चाइल्ड लाइन केंद्र समन्वयक मनीष दंगी ने बताया इन बच्चों को चोरी करते की ट्रेनिंग भी पैसे देकर सीखनी होती है, जिसके लिए लाखों रुपए लिए जाते हैं.


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