बिलासपुर: मंदिर में बनी भगवान की मूर्ति को हम सभी बड़े श्रद्धा से पूजते हैं, उन्हें चढ़ावा चढ़ाते हैं. हम उस मूर्ति को ही भगवान समझकर आराधना करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं एक मंदिर (Temple)  ऐसा है जहां के लोग भगवान को फूल माला नहीं बल्कि पत्थर  (Stone)  चढ़ाते हैं. यकीन नहीं हुआ ना आपको. लेकिन यही सच है. दरअसल, बिलासपुर की बगदाई माई की अराधना का अंदाज कुछ ऐसा ही है, जहां के लोग माता को फूल नहीं बल्कि पत्थर चढ़ाते हैं.


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आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर (Bilaspur) शहर से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम खमतराई से प्राचीनकाल से माता बगदाई विराजमान हैं. यहां माता बगदाई को पत्थर चढ़ाने की परम्परा को लेकर मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित अश्वनी तिवारी का कहना है कि आदिशक्ति माता बगदाई देवी की महिमा की जितनी भी बात की जाए वो बेहद ही कम है. माता बगदाई को लेकर इतिहासकारों के मुताबित ग्राम खमतराई में एक जमाने से घनघोर जंगल हुआ करता था. यहां आने के लिए कोई रास्ता नहीं  हुआ करता था और अनजान व्यक्ति को यहां आने से पहले ही डर सताया करता करता था. उस जमाने में खमतराई गांव में गिनती के ही लोग रहते थे. मंदिर तक जाने के लिए पगडंडी ही एक मात्र रास्ता हुआ करता था. जिससे लोग आने-जाने के लिए इस्तेमाल किया करते थे. 


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अक्सर उस रास्ते गुजरते हुए लोगों को देवी मां की महिमा और उनकी दिव्य शक्ति का धीरे-धीरे अहसास होने लगा. किसी भी समय पगडंडी से गुजरा किया करते थे. एक दिन मंदिर के पुजारी को सपने में भूमि से निकले एक फीट के पत्थर से दिव्य रौशनी चमकती हुई नज़र आई. जिसे देखने के बाद पंडित ने स्थानीय लोगों से अपले सपने का जिक्र किया और फिर कुछ लोगों के साथ मिलकर देखने के निकल पड़े. लेकिन उस वक्त पंडित को कुछ समझ ही नहीं आया क्योंकि जो पंडित ने सपने में देखा था, ठीक वही नज़ारा पंडित को उसके आंखों के सामने नज़र आ रहा था. ये सारा नजारा अपने आंखों देखी देखने के बाद वहां मौजूद लोगों ने निर्णय लिया कि यह भूमि उत्पत्तित पत्थर साधारण नहीं है, ये दिव्य शक्ति है. तो उस जमाने में लोगों के पास समझ कम थी तो दिव्य शक्ति को प्रसन्न करने के लिए नारियल, फूल, अगरबत्ती व मिष्ठान की जगह जमीन में पड़े हुए चमरगोटा पत्थर को ही भेंट कर दिया. तब से ग्राम खमतराई के लोगों ने पत्थर चढ़ाने की परम्परा की शुरुआत की और खुशहाल जीवन जीने लगे. दिव्य शक्ति को पूजने के लिए उसका नाम जंगल में होने की वजह से वनदेवी रख दिया गया.


देवी मां को खुश करने भक्त जो पत्थर उनको चढ़ाते हैं वो पत्थर कोई साधारण मिलने वाला पत्थर नहीं है. यह पत्थर मुरुम खदानों और खेत-खलिहानों में मिलने वाला पत्थर है. अब भले ही यह चमरगोटा पत्थर मंदिर के आसपास आसानी से मिल जाया करता है, लेकिन घनघोर जंगलों से बाहर निकलकर बसाहट वाले इलाकों में अब ये मिलने लगा है. देवी मां को खुश करने के लिए भक्त अपनी मुरादों को पूरा करने  लिए कड़ी मेहनत भी करते हैं और खेतों से चुनकर बड़ी मुश्किल से मां के लिए से पसंदीदा पत्थर चमरगोटा उनको भेंट करते है. यानी मां भी अपने भक्तों की परीक्षा पहले लेती है, और जो मुरादी मां को प्रसन्न करने की परीक्षा में पास होता है, उनकी मनोकामना देवी मां पूरी कर देती हैं. इसलिए तो देवी मां बगदाई को मनोकामना देवी के नाम से जाना जाता है.


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