महाशिवरात्रि से पहले महाकाल की नगरी में मिला अतिप्राचीन शिव मंदिर, जानिए क्या बोले विशेषज्ञ
ujjain ancient shiv temple: महाकाल की नगरी उज्जैन के नाटाखेड़ी गांव अतिप्राचीन शिव मंदिर मिला है. इसकी सूचना गांव के सरपंच ने पुराविदो को दी. सूचना मिलते ही पुराविद शोधार्थी मौके पर पहुंचे. मंदिर परमार कालीन 11वीं 12वीं शताब्दी के होने की आशंका जताई गई.
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर तराना तहसील के ग्राम नाटाखेड़ी में अति प्राचीन शिव मंदिर मिला है. जिसकी जानकारी गांव के ही सरपंच राजेश गुर्जर फौजी ने पुराविद् जानकारों को दी. सूचना मिलते है मौके पर पहुंचें पुराविदो ने मंदिर के परमार कालीन 11वीं 12वीं शताब्दी के होने की आशंका जताई हैं. जानकारों का कहना है मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में विद्यमान है.
बता दें कि इस संबंध में सरपंच राजेश गुर्जर द्वारा राज्य शासन को भी अवगत कराया गया है. ताकि पुरातात्विक महत्व को उजागर किया जा सके. आने वाले समय में इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण किया जा सके. साथ ही आने वाले समय में इसका संरक्षण और जीर्णोधार हो सके.
जानिए क्या कहा शोधार्थी ने!
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के शोधार्थी पुराविद् शुभम केवलिया ने अधिक जानकारी देते हुए बताया की सूचना पर अपने साथी यशवंत सिंह तंवर, ध्रुव जैन व तराना के ही एक डॉ. रितेश लोट प्राध्यापक प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विभाग के मार्गदर्शन में ग्राम नाटाखेड़ी का दौरा करने गया था. सर्वेक्षण के दौरान हमने पाया की यहां पर कुछ प्राचीन शिलाएं, मूर्तियां एवं नंदी लंबे समय से रखे हुए हैं. जिन पर किसी का ध्यान नहीं गया है. इन अवशेषों को देखने से मालूम होता है कि इस स्थान पर दो शिव मंदिर परमार कालीन यानी 11वीं व 12वीं शताब्दी ईस्वी में संभवत निर्मित किए गए होंगे.
पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्र
वर्तमान में मंदिर का अधिष्ठान ही यहां शेष है, जो पूर्ण रूप से दिखाई दे रहा है. जिससे यह लगता है कि यह पंचरथ शैली का मंदिर रहा होगा. मंदिर के आसपास के क्षेत्र में दो नंदी व दो जलाधारी, चंद्रशिला आदि भी दिख रही है. इसके साथ ही यहां ब्रह्मा, विष्णु आदि प्रतिमाएं भी विद्यमान है. शोधार्थी पुराविद् शुभम केवलिया पुराविद् ने आगे बताया कि इन पुरातात्विक अवशेषों को देखकर यह लगता है कि उक्त क्षेत्र पुरातात्विक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. शासन को भी इस स्थान की ओर ध्यान देकर खुदाई कराते हुए मंदिर के अवशेषों को एकत्रित कर इसके संरक्षण एवं जीर्णोद्धार के प्रयास करने चाहिए.
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