भोपालः मध्य प्रदेश की सियासत में जब भी कांग्रेस के बड़े नेताओं की बात होती है तो इसमें एक नाम जरूर शामिल रहता है. इस नेता को सियासत विरासत में मिली है, जो पहले तो सौम्य तरीके से अपने राजनीतिक सफर को आगे बढ़ा रहे थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनके सियासी तेवर भी तल्ख हो गए हैं. बात कर रहे हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव की जिनका आज जन्मदिन है. अरुण यादव की गिनती मध्य प्रदेश के उन नेताओं में होती है जिन्हें प्रदेश में कांग्रेस का बड़ा चेहरा माना जाता है. अरुण यादव कांग्रेस में राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं ऐसे में यह साल उनके लिए भी अहम रह सकता है. 


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खलघाट में रैली की थी चर्चा 
दरअसल, अरुण यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने हाल ही में तल्ख तेवर दिखाएं हैं. राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा थी की अरुण यादव अपने भाई कांग्रेस विधायक सचिन यादव के साथ खलघाट में एक बड़ी रैली आयोजित करने वाले हैं. सोशल मीडिया पर इस रैली को लेकर प्रचार भी चालू हो गया था. जिसे यादव बंधुओं के शक्ति प्रदर्शन से जोड़कर देखा जा रहा था. हालांकि यह रैली तो अब तक आयोजित नहीं हुई लेकिन अरुण यादव प्रदेश प्रदेश चर्चा में आ गए. 


पिता की राह पर अरुण यादव 
दरअसल, माना जा रहा है कि अरुण यादव भी अब अपने पिता और मध्य प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव की राह पर चलने लगे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सुभाष यादव की गिनती मध्य प्रदेश के उन नेताओं में होती थी जो अपने आक्रामक अंदाज के साथ-साथ पार्टी स्तर पर भी अपनी बात मुखरता से रखने के लिए जाने जाते थे. बताया जाता है कि सुभाष यादव को जब ऐसा लगा कि पार्टी में उनकी उपेक्षा हो रही है तो उन्होंने भी खलघाट में एक बड़ी रैली का आयोजन किया था. जिसके बाद उन्हें प्रदेश की कांग्रेस सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. अपने पिता के उलट अरुण यादव शांत राजनीति के लिए जाने जाते थे. लेकिन अब उन्होंने भी तल्ख तेवर दिखाने चालू किए हैं, जिससे माना जा रहा है कि अरुण यादव भी अपने पिता की राह पर चलने लगे हैं. 


अरुण यादव को विरासत में मिली सियासत 
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव का बेटा होने के नाते अरुण यादव को सियासत विरासत में मिली थी. पिता के कहने पर ही अरुण यादव राजनीति के मैदान में उतरे थे. 2007 में वह पहली बार में ही खरगोन संसदीय सीट से उपचुनाव जीतकर सांसद बने थे. केंद्र में मंत्री बनने और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाल चुके अरुण यादव का प्रदेश में व्यापक आधार है. उनके समर्थक प्रदेश के हर अंचल में हैं, यही वजह है कि अरुण यादव को आने वाले वक्त में प्रदेश की सियासत में अहम माना जा रहा है. 


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अरुण यादव का सियासी सफर, सीएम शिवराज को दे चुके हैं टक्कर 
बात अगर अरुण यादव के सियासी सफर की जाए तो वह सबसे पहले 2007 में खरगोन संसदीय सीट से उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. इसके बाद 2009 में खंडवा लोकसभा सीट से उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता नंदकुमार सिंह चौहान को हराया था, जिसके बाद यादव को यूपीए-2 सरकार में केंद्रीय मंत्री बनाया गया था. अरुण यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. अरुण यादव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनके घर में ही टक्कर दे चुके हैं, 2018 के विधानसभा चुनाव में यादव ने सीएम शिवराज के खिलाफ बुधनी से चुनाव लड़ा था. भले ही इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन उनके सीएम शिवराज के सामने उतरने से चुनाव रोचक हो गया था. 


जो पार्टी कहती है वहीं मैं करता हूं 
अरुण यादव अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते हैं, हाल ही में आयोजित हुए खंडवा लोकसभा उपचुनाव में उन्हें कांग्रेस की तरफ से प्रबल दावेदार माना जा रहा था. लेकिन उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली. लेकिन बुराहानपुर में आयोजित एक सभा में अरुण यादव का बड़ा बयान सामने आया था. अरुण यादव ने कहा कि ''कांग्रेस पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ दिया है, पार्टी उन्हें हर बार जो निर्देश देती है वह उसका पालन करते हैं. हर बार फसल मैं उगाता हूं, लेकिन उस फसल को काटकर कोई और ले जाता है. 2018 में भी ऐसा ही हुआ था. 2018 में फसल मैंने उगाई, पार्टी आलाकमान ने कहा किसी और के दे दों तो मैंने अपनी फसल दे दी. क्योंकि फसल हम फिर उगा लेंगे. हालांकि अरुण यादव ने कहा कि ''मुझे कांग्रेस पार्टी से बहुत कुछ मिला है और आगे भी बहुत मौके मिलेंगे. इसलिए पार्टी जो कहती है वहीं मैं करता हूं. 


कांग्रेस पार्टी में पिछड़े वर्ग का अहम चेहरा हैं अरुण यादव
अरुण यादव कांग्रेस पार्टी में पिछड़े वर्ग का चेहरा माने जाते हैं. ये बात इतनी अहम है कि मध्य प्रदेश अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के प्रभुत्व वाला राज्य है और यहां 52 फीसदी मतदाता इसी वर्ग से आते हैं. साल 2000 के बाद से भाजपा के तीन मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान अन्य पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं. यही वजह है कि अरुण यादव के कद का नेता कांग्रेस की जरूरत है. 


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राहुल गांधी के करीबी यादव को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी 
दरअसल, अरुण यादव को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है. वह खुलकर कई बार उन्हें फिर से कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की वकालत कर चुके हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद 2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए बेहद अहम माना जा रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में राहुल गांधी अरुण यादव को कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकते हैं, क्योंकि पहले भी अरुण यादव को कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाकर राहुल गांधी इसका उदाहरण दे चुके हैं. प्रदेश में ओबीसी वर्ग को लेकर जिस तरह से सियासत हो रही है उसमें अरुण यादव कांग्रेस के लिए बड़ा चेहरा हो सकते हैं. क्योंकि फिलवक्त अरुण यादव से बड़ा ओबीसी चेहरा पार्टी में नहीं है. 


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