kamalnath birthday: कमलनाथ एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए गांधी-नेहरू परिवार की तीन पीढ़ियों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी एवं राहुल गांधी के साथ काम किया है. कमलनाथ के जन्मदिन पर जानिए उनका सियासी सफर.
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Kamal Nath 77th Birthday: मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का आज जन्मदिन (Kamal Nath Birthday) है, 77 साल के हो चुके कमलनाथ सियासत की पिच पर लगातार बैटिंग करते जा रहे हैं. गांधी परिवार के करीबी नेताओं में कमलनाथ का नाम शुमार किया जाता है. बता दें कि कमलनाथ की गांधी परिवार से नजदीकियां संजय गांधी के समय से है. संजय गांधी और कमलनाथ ने देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल से पढ़ाई की है और यहीं दोनों की दोस्ती हुई. कमलनाथ की नजर अब 2023 में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं.
देश और मध्यप्रदेश की राजनीति में जब भी अहम किरदारों की बात की जाती है तो कमलनाथ का नाम टॉप नेताओं की लिस्ट में शुमार रहता है. उन्होंने मध्यप्रदेश में 15 साल के वनवास को खत्म कर एक बार फिर कांग्रेस को सत्ता में स्थापित किया था, हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत के बाद उनकी सरकार गिर गई.
कानपुर की गलियों से CM बनने तक का सफर
इस वक्त कांग्रेस विपक्ष में है, लेकिन विपक्ष की भूमिका की जिम्मेदारी कमलनाथ बखूबी निभाना जानते है. एमपी में कांग्रेस की कमान कमलनाथ के हाथों में है. साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर दोनों दलों की निगाहें टिकी हैं. इसे लेकर सियासी जंग की सुगबुगाहट अभी से शुरू हो गई है. इस बीच हम आपके लिए उत्तरप्रदेश के कानपुर की गलियों में खेलने वाले उस लड़के (कमलनाथ) के सियासी सफर के बारे में जानकारी लेकर आए हैं, जो यूपी से आकर मध्यप्रदेश के सीएम बने.
पिता चाहते थे वकील बनें कमलनाथ
18 नवंबर 1946 को उत्तरप्रदेश के कानपुर में जन्मे कमलनाथ आज मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में कांग्रेस का एक बड़ा चेहरा हैं. उनकी शुरूआती शिक्षा कानपुर में हुई. पिता महेंद्र नाथ की इच्छा थी कि बेटा वकील बने, लेकिन कमलनाथ की किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था. कमलनाथ देहरादून स्थित दून स्कूल के छात्र रहे हैं. कहा जाता है कि दून स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही वह इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के संपर्क में आए थे और वहीं से उनकी राजनीति में एंट्री की नींव तैयार हुई थी.
संजय गांधी के करीबी दोस्त
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि समय के साथ ही कमलनाथ और संजय गांधी की दोस्ती दिन ब दिन गहरी होती गई, लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब दोनों की दोस्ती में दूरियां आ गईं, वो वक्त था जब कमलनाथ कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज चले गए. हालांकि दोनों के दूर होने के बाद उनकी यारी कम नहीं हुआ. ये दोस्ती सियासत में भी चर्चे में रहती थी, कारण था दोनों का हरदम साथ रहना.
जब संजय गांधी के लिए जेल चले गए कमलनाथ
संजय गांधी और कमलनाथ की दोस्ती के बारे में एक किस्सा भी मशहूर है कि 'जब आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार थी. तब एक मामले में संजय गांधी को तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. तब इंदिरा गांधी को संजय गांधी की सुरक्षा की चिंता थी. ऐसे में कमलनाथ, संजय गांधी के पास जेल जाने के लिए जानबूझकर एक जज से भिड़ गए थे. जिसके बाद अवमानना के आरोप में कमलनाथ को तिहाड़ जेल भेज दिया गया था.'
यहां से बदली थी कमलनाथ की किस्मत
बात है 1975 की है, जब कांग्रेस बेहद कठिन दौर से गुजर रही थी. इसके बाद 23 जून 1980 को संजय गांधी की असमय मौत की खबर ने नेहरू परिवार ही नहीं बल्कि समूचे देश को झकझोर कर रख दिया था. कांग्रेस में उठापटक का दौर जारी था. यही वो वक्त था जब कमलनाथ को संजय गांधी का जिगरी दोस्त होने का फायदा मिला. क्योंकि साल 1979 में पार्टी आलाकमान ने कमलनाथ को मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से टिकट दिया. यहां से चुनाव जीत कर कमलनाथ संसद पहुंचे.
इंदिरा गांधी ने कहा था तीसरा बेटा
कमलनाथ ने महज 22 साल की उम्र में कांग्रेस का हाथ थामा था. कांग्रेस की सियासत और नेहरू परिवार में कमलनाथ की हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सियासी गलियारों में एक बात खूब प्रचलित थी कि, 'इंदिरा गांधी के दो हाथ संजय गांधी और कमलनाथ. खास बात ये भी है कि इंदिरा गांधी कमलनाथ को तीसरा बेटा बताती थीं. साल 1979 में छिंदवाड़ा में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमलनाथ की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि 'ये सिर्फ कांग्रेस के नेता नहीं है, राजीव गांधी और संजय गांधी के बाद मेरे तीसरे बेटे हैं, कृपया उन्हें वोट दीजिए.'
छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद चुने गए
आपातकाल के बाद सत्ता में आयी जनता पार्टी की सरकार को गिराने में कमलनाथ की कथित तौर पर बड़ी भूमिका मानी जाती है. इसके बाद कमलनाथ गांधी परिवार के और भी खास हो गए थे. छिंदवाड़ा लोकसभा को कमलनाथ का अभेद्य किला माना जाता है. कमलनाथ छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद चुने गए हैं. 1979 में कमलनाथ पहली बार छिंदवाड़ा के सांसद चुने गए थे और उसके बाद से वह 9 बार यहां से संसद तक का सफर तय किया. छिंदवाड़ा से पहला चुनाव जीतने के बाद कमलनाथ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वे 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. जबकि 2019 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वह पहली बार छिंदवाड़ा से विधायक बने.
एक बंगले की वजह से कमलनाथ हार गए थे चुनाव
सियासी गलियारों में 'बाजीगर' कहे जाने वाले कमलनाथ एक बार चुनाव भी हारे हैं. दरअसल, 1996 तक कमलनाथ 1980 से मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा सीट से लगातार चुनाव जीतते आ रहे थे. सन 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो उन्होंने अपनी पत्नी को चुनाव लड़वा दिया, कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ चुनाव जीत भी गईं. इसी बीच कमलनाथ को दिल्ली में सांसद न रहने के चलते लुटियंस जोन में मिला बड़ा बंगला खाली करने का नोटिस मिला. जानकार बताते हैं कि कमलनाथ ने बहुत कोशिश की कि ये बंगला उनकी पत्नी के नाम एलाट हो जाए, लेकिन उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनीं थीं, जिसके कारण बड़ा बंगला नहीं मिल सका. उधर कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने तैयार नहीं थे. ऐसे में बंगले की खातिर उन्होंने अपनी पत्नी से संसद से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा में उपचुनाव में प्रत्याशी बन गए. फिर जब 1997 में उपचुनाव हुआ तो बीजेपी ने सुंदरलाल पटवा को मैदान में उतारा. पटवा ने ये चुनाव बखूबी लड़ा और कमलनाथ को उन्हीं के गढ़ में मात दे दी. हालांकि अगले साल 1998 में फिर चुनाव हुए और पटवा कमलनाथ से हार गए.
जब बने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री
साल 2018 में हुए मध्यप्रदेश चुनाव में कांग्रेस पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ी. पार्टी को लीड करने की जिम्मेदारी भी कमलनाथ कंधों पर थी, वे उस वक्त पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे. इस चुनाव में कांग्रेस ने 15 साल बाद एमपी की सत्ता में वापसी की थी, अब बारी थी सीएम घोषित करने की. सीएम पद की रेस में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम टॉप में शामिल था. काफी मशक्कत के बाद पार्टी आलाकमान ने आखिरकार कमलनाथ के नाम पर मुहर लगाई. बताया तो यहां तक जाता है कि सोनिया और प्रियंका से चर्चा के बाद राहुल गांधी ने कमलनाथ के नाम पर ही अंतिम मुहर लगाई गई थी.
केंद्र सरकार में निभाईं अहम जिम्मेदारियां
कमलनाथ 1991 से 1994 तक केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री, 1995 से 1996 केंद्रीय कपड़ा मंत्री, 2004 से 2008 तक केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री, 2009 से 2011 तक केंद्रीय सड़क व परिवहन मंत्री, 2012 से 2014 तक शहरी विकास व संसदीय कार्य मंत्री रहे. उन्होंने भारत की शताब्दी और व्यापार, निवेश, उद्योग नामक पुस्तक भी लिखी है.
जारी है राजनीतिक सफर
77 साल के हो चुके कमलनाथ का राजनीतिक सफर आज भी जारी है, 2023 में होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान कमलनाथ के हाथों में ही, कमलनाथ राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी है. हालांकि माना जा रहा है कि यह विधानसभा चुनाव 2023 कमलनाथ का आखिरी चुनाव हो सकता है. जिस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.