अव‍िनाश प्रसाद/बस्‍तर: जहां एक तरफ पूरा छत्तीसगढ़ राज्य हरेली त्योहार के उत्साह में डूबा हुआ है. वहीं, दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के ही बस्तर जिले के जगदलपुर में यही हरेली त्यौहार पिछले 600 वर्षों से एकदम अलग तरीके से मनाया जा रहा है. इसे यहां पाठ जात्रा के रूप में मनाया जाता है. 


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हरेली के दिन ​बस्तर के दशहरे पर्व की पहली रस्म 
दरअसल, हरेली के दिन बस्तर के दशहरे पर्व की पहली रस्म निभाई जाती है. बस्तर का दशहरा विश्व के सबसे लंबे त्योहार के रूप में प्रसिद्ध है. यह त्यौहार यहां 75 दिनों तक मनाया जाता है और हरेली अमावस्या के दिन जंगल से लाए गए ताल वृक्ष के लट्ठे को बलि देकर यहां पूजा अर्चना की जाती है.


बस्तर के दशहरे में खींचे जाने वाले रथ का निर्माण 
इस लट्ठे को ग्रामीण स्थानीय बोली में टूरलू खोटला कहते हैं. इस लकड़ी का प्रयोग बस्तर के दशहरे में खींचे जाने वाले रथ के निर्माण में होता है. यह पहली लकड़ी है जो रथ निर्माण में प्रयुक्त की जाएगी और उसके बाद जंगलों से और लकड़ियों का आना प्रारंभ होगा. 


मछली और अंडे की बलि देकर की जाती है पूजा 
परंपरा के अनुसार, आज गुरुवार को जगदलपुर नगर के मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने पाठ जात्रा रस्‍म की अदायगी की गई. इसमें लकड़ी के लट्ठे की पूजा की गई और मछली और अंडे की बलि देकर रस्म निभाई गई. 


छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार हरेली आज बड़े ही धूमधाम और पारंपरिक तरीके से मनाया गया. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जनजीवन में रचा बसा खेती किसानी से जुड़ा ये साल का पहला त्योहार माना जाता है. इसलिए हरेली त्योहार को खास माना जाता है. राजनादगांव में कार्यक्रम के तहत पारंपरिक खेलों जिसमें फुगड़ी, रस्सी दौड़, कुर्सी दौड़ सहित विभिन्न खेलों का आयोजन और भौंरा, पिठ्ठूल, रस्सी खींच प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज ही प्रदेश में गौमूत्र खरीदी की शुरुआत भी की. 


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