बैतूल: जान जोखिम में डालकर एक गर्भवती को खटिया पर लादकर नदी पार कराने का मामला बैतूल में सामने आया है. यहां बारिश के दिनों मे टापू बन जाने वाले गांव जामुन ढाना में हालात बदतर है. इसकी बानगी बुधवार सामने आई. ज़ी मीडिया इस गांव की विडंबना को पहले भी दिखा चुका है. लेकिन ताजा वायरल हो रहे वीडियो ने एक बार फिर इस गांव की मजबूरियों को उजागर किया है. बीते पांच दिनों से बैतूल में रुक-रुक कर भारी बारिश हो रही है. ऐसे में नदी नाले उफान पर है. ऐसे में महिला को खटिया पर लिटाकर नदी पार करवाई.


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दरअसल विकासखंड शाहपुर के ग्राम पंचायत पावरझंडा के ग्राम जामुनढाना की नदी में पुल न होने से लोगों का आवागमन बाधित हो रहा था. यहां बुधवार को ग्रामीणों ने जान जोखिम में डालकर गर्भवती महिला को खटिया में लिटाकर नदी पार करवाई. कई सालों से यह समस्या होने के बाद भी अब तक प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं हो सकी है. हालात ये है कि बारिश के मौसम में जब भी गांव में कोई बीमार पड़ता है ये लोग उसे खाट पर लिटाकर अपनी जान को जोखिम में डालकर उफनती नदी को पार करके मरीज को डॉक्टर के पास ले जाते है. बुधवार ऐसा ही कुछ हुआ की गांव के लोगों को फिर अपनी जान को जोखिम में डालना पड़ा.


खाट पर लिटाकर अस्पताल ले गए
दरअसल जामुन ढाणा गांव के रूपेश टेकाम की गर्भवती पत्नी मयंती टेकाम को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हो गई जिसके चलते मयंती दर्द से तड़पने लगी मयंती को प्रसव पीड़ा से निजात दिलाने के लिए रूपेश ने गांव के लोगों से मदद मांगी. ग्रामीणों ने रूपेश का साथ देते हुए रूपेश की गर्भवती पत्नी मयंती को खाट पर लिटाकर अपनी जान की परवाह किए बिना एहतियात के साथ खाट पर लेटी गर्भवती महिला को लेकर उफनती नदी पार की और उसे उपचार के लिए शाहपुर लेकर पहुंचे. लेकिन यहां पर भी माचना नदी उफान पर होने के कारण उन्हें वापस लौटकर महिला को भौरा के शासकीय अस्पताल ले जाना पड़ा. अस्पताल पहुंचाने के बाद ग्रामीणों ने राहत की सांस ली. फिलहाल जच्चा-बच्चा ठीक है.


पहले भी बने थे ऐसे हालात
आपको बता दें कि ज़ी मीडिया इस गांव के हालात को पहले भी सामने ला चुका है. पिछले साल 30 जुलाई 2021 को भी ज़ी मीडिया ने बारिश के दिनों में टापू बन जाने वाले इस गांव की दिक्कतों को उजागर किया था. तब तत्कालीन जनपद सीईओ कंचन डोंगरे ने यहां पुल बनाने के लिए स्टीमेट तैयार कराने का भरोसा जताया था. मौजूदा सीईओ फिरदौस शाह को तो ग्रामीणों की इस विडंबना की जानकारी ही नहीं है. कलेक्टर अमन बीर सिंह बैंस ने ज़ी मीडिया से कहा की वे जल्द ही इस गांव में आने जाने के लिए पुल का स्टीमेट तैयार करवाएंगे. इसके लिए अधिकारियों को निर्देश दिए गए है. इसके लिए डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फंड का इस्तेमाल किया जाएगा.


ये है गांव की कहानी 
महज 1300 की आबादी वाला यह गांव बारिश के दिनों में टापू बन जाता है. यहां पहुंचने के लिए गांव वालों को नदी पार करना पड़ता है. जिस पर पुल न होने से ग्रामीण बारिश के दिनों में गांव में ही फंसकर रह जाते है. राशन या मजदूरी के लिए गांव से बाहर जाने के बाद अगर नदी में बाढ़ आ जाये तो ग्रामीणों का गांव पहुंचना मुश्किल हो जाता है. नदी की बाढ़ कई बार दो-दो दिन नहीं उतरती. स्कूली बच्चों के लिए भी यह नदी मुसीबत बनती रही है. सांसद से लेकर विधायक और अफसरों के पास गुहार लगा चुके ग्रामीण अब थक चुके है. पूर्व सरपंच ईश्वरदास की माने तो वे 2011 से अब तक सांसद,विधायक,जनपद सभी को पुल का प्रस्ताव भेज चुके है. लेकिन स्टीमेट के आधार पर जितनी रकम की जरूरत है. वह नहीं मिल पा रही है. एक घंटे के बारिश में ही आवागमन ठप्प हो जाता है. यहां तक कि चार-चार दिन गांव में ही कैद हो जाना पड़ता है.