राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: आज बुधवार को भैरव अष्टमी पर्व पर बाबा कालभैरव के धाम को विद्युत व फूलों से सुसज्जित किया गया. रात 12 बजे भगवान भैरव जन्म लेंगे और साथ ही बाबा को 56भोग अर्पित किए जाएंगे. वहीं अगले दिन गुरुवार को बाबा कालभैरव की सवारी नगर भ्रमण पर निकलेंगी. जहां बाबा भैरव जेल के कैदियों को भी दर्शन देंगे. महाकाल की नगरी में स्थित काल भैरव भगवान से जुड़े कई रहस्य है, जिसमें खास तौर पर बाबा भैरव द्वारा मदिरा का पान किया जाना है जिसको लेकर कई शोध करता पता नहीं कर पाए कि बाबा मदिरा पान कैसें कर लेते है. आखिर मदिरा जाती कहा हैं, एक समय पहले बाबा मास का भी सेवन करते थे. लेकिन समय में बदलाव के चलते मास का भोग लगाने की परंपरा को प्रतिबंध प्रशासन द्वारा कर दिया गया है. आइये जानते है कितनी आस्था लिए पहुंचते हैं श्रद्धालु और मंदिर के बाहर खुले आम मिलने वाली शराब के बारे में...


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नियमित 2,000 शराब की बोतलों का करते हैं सेवन
दरअसल नगरी में शिव कई रूपो में विराजमान है. नगरी में शहर से 8 किलोमीटर करीब दूर एक ऐसा प्राचीन और रहस्यमई मंदिर है, जहां भगवान कालभैरव हर रोज करीब 2000 शराब बोतलों के भोग का पुजारी के माध्यम से मंत्रोच्चार के बाद सेवन करते है और वो शराब कही जाती है. इसका आज तक शोध करने वाले पुरात्तव विभाग व वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा पाए, मंदिर मां शिप्रा नदी किनारे ओखलेश्वर जाग्रत शमशान के समीप भैरव पर्वत नामक स्थान पर स्थित है, जहां पास ही में पाताल भैरवी गुफा भी है. मंदिर से जुड़ी कहानियां इतिहास और रहस्य के बारे में आज हम आपको इस रिपोर्ट के माध्यम से बताएंगे ऐसा कहते है. भगवान को मदिरा का भोग लगाने के बाद प्रसाद रूप में मदिरा का सेवन करने से शरीर के रोग दूर होते है. हर कष्ट से, दोष से मुक्ति मिलती है. वहीं मंदिर के बाहर जो हर तरह-तरह के ब्रांड की महंगी से महंगी शराब 12 माह मिलती है, उसे प्रशासन की अनुमति से ही बेचा जाता है. मंदिर के बाहर आबकारी विभाग का भी काउंटर है, जहां महिला पुरुष की अलग-अलग कतार है. इसके साथ ही आस-पास की दुकान वाले भी शराब खुले आम बेचते हैं.


जानिए क्या कहा मंदिर के पुजारी ने!
मंदिर के मुख्य पुजारी बताते है कि मंदिर के पट हर रोज सुबह 6 बजे खुलते हैं, सुबह 07 से 08 बजे भगवान की आरती होतीं है और शाम को 06 से 07 बजे के बीच भगवान की आरती होती है, मंदिर में दीप स्तंभ प्रज्वलित किए जाते हैं. वहीं मंदिर से जुड़ी कहानी की बात करे तो यहां मंदिर में आम दिनों में हर रोज भगवान को 2000 करीब शराब की बोतलों का भोग लगाते हैं. 


बाबा काल भैरव के जन्म से जुड़ी कहानी
पौराणिक मान्यतानुसार एक बार एक पर्वत पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु महेश बैठ कर चर्चा के रहे थे. इस संसार का सबसे बड़ा देव कौन है, ब्रह्मा कहते है उत्तप्ति मैनें की तो मैं बड़ा हूं, विष्णु जी कहते है मैं पालनहारी हूं इसलिए मैं बड़ा हूं. महेश शिव कहते हैं संघारकर्ता तो मैं हूं. इसलिए मैं बड़ा हुआ. जब इस चर्चा का निष्कर्ष नहीं निकलता है तो भगवान अपने अपने लोक में चले जाते है, अब ब्रह्मा जी के 5 मुख थे तो उन्होंने 4 से चार वेदों की रचना कर दी. अब पांचवे मुख से भी वे एक और रचना ''रचना'' चाहते थे. लेकिन उसके बारे में भगवान शिव को पता चल जाता वे मना करते हैं कि यह गलत है. संसार के लिए लेकिन ब्रह्मा नही मानते और रचना करने लगे ऐसे में शिव क्रोधित हो उठते और उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है. जैसे ही नेत्र खुलता है तो उस नेत्र से एक ज्योति प्रकट होती है, 5 साल के बालक के रूप में जिसे बटुक भैरव कहा गया है, बटुक भैरब ब्रह्मा जी को मनाने जाते हैं. लेकिन ब्रह्मा जी की जिद और वे बटुक भैरव को बालक समझ कर उसका तिरस्कार कर देते है, जिससे बटुक भैरव को क्रोध आता है और वे 5साल की उम्र में ही मदिरा पान कर लेते हैं. जिन्हें आज श्री काल भैरव जी महाराज कहा जाता है, जब वे विशाल रूप बटुक से कालभैरव का क्रोध में आकर लेते है तो ब्रह्मा जी के पांचवे मुख का तीक्ष्ण उंगली से छेदन कर देते है, जिससे काल भैरव को ब्रह्म हत्या का दोष लगता है. वे शिव के पास आते हैं और उस दोष के निवारण हेतु उचित मार्ग की बात रखते है. शिव उन्हें भ्रमण करने को कहते हैं और भ्रमण के दौरान ही कालभैरव उज्जैनी अवन्तिक नगरी में शिप्रा स्नान कर महाकाल वन में दर्शन कर पर्वत पर तपस्या करते हैं. यह जगह भैरव पर्वत के नाम से ही जाना जाता है और यहीं तपस्या के दौरान भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष से मुख्ति मिली.


शोधकर्ता भी नहीं हो पाएं सफल
मंदिर के मुख्य पुजारी बताते है कि मंदिर में वाम मार्गीय (तांत्रिक) पूजन का विधान रहा है. जिसमें भगवान को 5 तत्वों का भोग लगता है, मांस, मदिरा, मछली, मुर्गा व अन्य समय के चलते प्रशासन ने मांस, मटन, मुर्गा, मछली बंद कर दिया. वहीं शराब आज भी यहां भगवान को भोग में चढ़ाई जाती है, भगवान उस मदिरा को मंत्र उच्चार के साथ स्वयं पी जाते हैं. पीने के बाद मदिरा अदृश्य हो जाती है, मदिरा पान के लिए यहां भारत सरकार द्वारा शोध किया गया. लेकिन वो शोध भी सफल नहीं हो पाया और ये रहस्य आज तक बना हुआ है. भगवान की महिमा है यह चमत्कार ही है यहां, क्योकि श्री काल भैरव यहां स्वयं विद्यमान हैं. पुजारी बताते है कि भगवान कालभैरव नगर रक्षा के लिए महाकाल वन में विराजमान है. भगवान महाकाल महाराज के सेनापति के रूप में हैं.


जानिए क्या है मान्यता
पुजारी बताते हैं कि भगवान काल भैरव आदि अनादि काल से वीराजमान है, मंदिर का निर्माण परमार कालीन नजर आता है. वहीं भगवान हर रोज आम दिनों में शराब की करीब 2000 बोतलों का भोग सेवन करते हैं. इसके अलावा पर्वो पर यह संख्या बढ़ जाती है. माना जाता है भगवान को शराब का प्रसाद चढ़ाने के बाद उसे पीने से शरीर के रोग दूर होते हैं.


जानिए क्या कहना है पुरातत्व
पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर प्रोफेसर रमण सोलंकी बताते हैं कि काल भैरव मंदिर अति प्राचीन मंदिर है, क्योंकि ये राजधानी के रूप में पूरा क्षेत्र रहा है. एक समय में, कालभैरव पीठाधीश्वर कहलाये हैं, चंद्र प्रद्योत का शासन काल हो, सम्राट अशोक का शासन काल हो या राजा विक्रमादित्य का शासन काल हो इनकी कहानियां काफी प्रचलित रही. राजा विक्रमादित्य के शासन काल में कालभैरव की सवारी निकलना शुरू हुई. विशेष रूप से जो मदिरा पान की कहानी हमें मिलती है, वो राजा विक्रमादित्य के काल से आज तक हम सुन रहे और देख रहे हैं.


मदिरा को लेकर हुआ काफी शोध
प्रोफेसर रमण सोलंकी ने बताया कि मदिरा के रहस्य को जानने के लिए पद्म श्री डॉ॰ विष्णु श्रीधर वाकणकर जिन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पद्म श्री से नवाजा पुरातत्व के कार्यो को लेकर उन्होंने यहां शोध किया क्योंकि लोगों का मानना था कि मंदिर शिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है और शराब पानी में घुल जाती है, बह जाती है. लेकिन खुदाई के वक्त पाया कि ऐसी कोई जगह यहां नहीं है, जहां वो मदिरा जा सके. ये एक रहस्य है जो आज भी बना हुआ है.


पत्थर तो एब्जॉर्ब नही कर लेते?
पुराविद प्रोफेसर ने जवाब देते हुए बताया कि ये जो प्रतिमा है और मंदिर में लगे पत्थर मालवा के बेसॉल्ट से बनी है, जिसमें जितना पानी डालोगे बह कर निकल जाएगा, क्योंकि शोध के वक्त प्रतिमा और आस पास लगा सिंदूर निकलने पर ये ज्ञात हुआ यहां कोई ऐसा पत्थर नहीं है, जो किसी तरल पदार्थ को सोख सके. वहीं प्रोफेसर ने आगे कहा कि दो प्रकार के भैरव होते हैं एक काल भैरव व दूसरे गौरा भैरव जिसमें गौरा भैरव शुद्ध होते है, जो मदिरा पान नहीं करते. वहीं काल भैरव मास मदिरा का सेवन करते हैं.


कालभैरव पूरे क्षेत्र का  करते हैं रक्षण!
प्रोफेसर ने कालभैरव के बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा कि बाबा काल भैरव पूरे क्षेत्र का रक्षण करते हैं, क्षेत्र पर उनका अधिपत्य होता है और वे महाकाल बाबा के प्रतिनिधि के रूप में यहां वीराजमान हैं. इसलिए यहां जितने शासक रहे वो काल भैरव की पूजा पद्धति में संलग्न रहे हैं. विशेष कर राजा विक्रमादित्य के काल से हर्षवर्धन के काल, उदयादित्य के काल, राजा भोज के काल की पूजन पद्धति के प्रमाण यहां मिलते रहते हैं.


पास ही में है ओखलेश्वर शमशान!
प्रोफेसर रमण सोलंकी बताते हैं कि उज्जैन कर्क रेखा पर स्थापित होने के कारण यहां तंत्र क्रियाएं होती हैं और यह पूरे विश्व की नाभि केंद्र कहलाती है. इसलिए इस जगह का विशेष महत्व हो जाता है. यहां ओखलेश्वर शमशान है जाग्रत शमशान है मंदिर के पास जहां विश्व भर के तांत्रिक वक्त-वक्त पर तंत्र साधना करने पहुंचते हैं और यह कालभैरव का मंदिर ओखलेश्वर शमशान के नजदीक ही स्थापित है.



पाताल भैरव जैसी फिल्में यहां बनी!
प्रोफेसर बताते है कि यहां जमीन के अंदर एक कक्ष बना हुआ है, जिसे पाताल भैरवी गुफा के नाम से आज सब जानते हैं, जिसमें तंत्र साधना का यहां प्रमाण प्राप्त होता है. दिल्ली का शासक रहा अकबर जब उज्जैन आया तो उसने इस मंदिर को महिमा को समझा और ओखलेश्वर शमशाम व मन्दिर के बीच एक प्राचीन दीवार बनवाई. जब सिंधिया का शासन यहां हुआ तो वे कालभैरव को कुल देवता के रूप में पूजने लगे. आज भी मंदिर में सवारी के दौरान सिंधिया राजाघरने की पगड़ी भगवान को चढ़ाई जाती है.