Independence Day 2022: आसानी से नहीं मिला था भोपाल को राजधानी का दर्जा, शंकर दयाल शर्मा ने बिछाई थी बिसात
देश में इस बार 15 अगस्त को आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. इस अवसर पर हम आपको मध्य प्रदेश से जुड़े ऐसे किस्से सामने ला रहे हैं जो प्रदेश के बनने की रोचक कहानी को सामने लाता है.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की राजधानी वैसे तो भोपाल है लेकिन जब मध्य प्रदेश बन रहा था तब इसका नाम राजधानी के रूप में चर्चा तक में नहीं था. फिर भी भोपाल को अचानक से देश के सबसे बड़े प्रदेश की राजधानी बना दिया गया. इसके पीछे वैसे तो कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है कि भोपाल से ताल्लुक रखने वाले डॉ. शंकर दयाल शर्मा ऐसा चाहते थे. उन्होंने इस बात के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को राजी कर लिया था.
ढाई साल तक चली प्रदेश बनने की मशक्कत
ढाई साल से भी ज्यादा वक्त तक चली कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार मध्य प्रदेश का गठन 1956 में हो तो गया लेकिन देश के दिल में बसे इस राज्य की राजधानी का किस्सा अभी बाकी था. गठन के बाद उस वक्त के तीन बड़े शहर ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर मध्य प्रदेश के हिस्से में थे. ऐसे में तीनों की क्षेत्र के नेताओं की यह कोशिश थी कि उनके शहर को राजधानी का तमगा मिले.
भोपाल को राजधानी बनवाने में इनका रहा योगदान
ये बहुत आसान बात नहीं थी क्योंकि इन शहरों के बीच की दूरी भी ज्यादा थी और इनक क्षेत्रीय विवाद भी था. बड़ा सवाल यह था कि इतने बड़े राज्य की राजधानी ऐसी हो जो प्रशासनिक और राजनैतिक कामकाज के लिए सबसे उपयुक्त हो. इंदौर और ग्वालियर राजधानी के रेस में आगे थे लेकिन अचानक नाम भोपाल का नाम सामने आ गया. इस नाम को सामने लाने में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा का नाम आगे है.
भोपाल के बारे में गंभीरता से दी जानकारी
उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात कर यह प्रस्ताव उनके सामने रखा. डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने बताया कि पहाड़ी इलाके पर बसा यह शहर हर लिहाज से प्रदेश की राजधानी बनने के काबिल है क्योंकि अन्य शहरों के मुकाबले यहां न गर्मी पड़ती है, न ही सर्दी और न ही थोड़ी सी बारिश से यहां बाढ़ के हालात बनेंगे. इसके अलावा जिस तरह मध्य प्रदेश देश के बीचों बीच स्थित है, ठीक उसी तरह भोपाल भी प्रदेश के बीचों बीच स्थित है. यहां से प्रदेश में चारों और के हालात ज्यादा बेहतर ढंग से जाने जा सकते थे जबकि राज्य के अन्य तीनों बड़े शहरों से भी यहां आसानी से आया जा सकता है.
जवाहर लाल नेहरू को पसंद आ गया था प्रस्ताव
डॉ. शंकर दयाल शर्मा का यह प्रस्ताव पंडित जवाहर लाल नेहरू को पसंद आया. ऐसे में उन्होंने भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. जब भोपाल राजधानी बना तब वह सीहोर जिले की एक तहसील मात्र था. लेकिन यह शहर बाद में प्रदेश का केंद्र बन गया, जहां 1972 में भोपाल को अलग जिले का दर्जा भी मिल गया.
भोपाल की ये थी वैधानिक स्थिति
बता दें कि एमपी की स्थापना के साथ ही भोपाल राज्य को 1 जून 1949 को भारत सरकार द्वारा लिया गया था. इसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक मुख्य आयुक्त द्वारा शासित राज्य घोषित किया गया था. एमपी में 1951 में पहली बार चुनाव हुए. भोपाल स्टेट के चुनाव में पहली बार 27 मार्च 1952 में विधान सभा चुनाव हुए. भोपाल स्टेट होने के बाद भी सीहोर जिले में आता था जिसका दायरा बहुत बड़ा था. इसके अलावा रायसेन जिला भी भोपाल स्टेट का ही हिस्सा था.
भोपाल स्टेट के सीएम बने थे शंकर दयाल शर्मा
भोपाल की 23 विधानसभा सीटों पर चुनाव आयोजित हुए. इनमें वर्तमान सीहार जिले की 7 विधानसभा सीट शामिल थी. सीहोर, श्यामपुर और आष्टा विस सीट पर दो-दो विधायक थे. स्टेट की 23 विस में 91 प्रत्याशी चुनाव में उतरे. तत्कालीन सीहोर जिले की सीमा क्षेत्र में ही भोपाल जिले की बैरसिया सीट भी शामिल थी जिस पर पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने चुनाव लड़ा और जीतने के बाद उन्हें भोपाल स्टेट का सीएम बनाया गया. बाद में वे देश के राष्ट्रपति बने.
मध्य प्रदेश में अब हैं 52 जिले
अपने 66 साल के सफर में मध्य प्रदेश के गठन के समय प्रदेश में कुल 43 जिले ही बनाए गए थे लेकिन, वर्तमान में बढ़ती आबादी के कारण व्यवस्थाओं को सुचारू ढंग से चलाने के लिए अब तक मध्य प्रदेश में कुल 52 जिले बनाए जा चुके हैं. 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से निकालकर छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बना दिया गया. वर्तमान में मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें और 29 लोकसभा सीटें हैं.
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