नई दिल्लीः 2-3 दिसंबर 1984 की मध्य रात्रि भोपाल ने अपने इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी को झेला था. इतनी बड़ी आपदा के बारे में अगर आज या आने वाली पीढ़ी पढ़ना या जानना चाहे तो उसके लिए "फाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल" किताब बेहद अहम है. इस किताब में भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों और इस हादसे में यूनियन कार्बाइड कारखाने की भूमिका के बारे में विस्तार से लिखा हुआ है. बता दें कि यह किताब किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि फ्रेंच लेखक डोमिनिक लैपिएरे ने जेवियर मोरो के साथ मिलकर लिखा था. 


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बता दें कि डोमिनिक लैपिएरे का 91 साल की उम्र में बीती 4 दिसंबर को फ्रांस में निधन हो गया. डोमिनिक को भारत से प्यार था और यही वजह थी कि अपने जीवनकाल के कई साल डोमिनिक भारत में ही रहे. भोपाल गैस त्रासदी पर किताब लिखने के दौरान भी डोमिनिक लैपिएरे ने 3 साल से ज्यादा वक्त एमपी की राजधानी भोपाल में बिताया था. किताब लिखने के लिए डोमिनिक ने काफी रिसर्च की थी और भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों से मुलाकात की थी. 


खास बात ये है कि डोमिनिक लैपिएरे ने भोपाल गैस त्रासदी पर लिखी किताब की रॉयल्टी से मिलने वाली रकम से भोपाल में एक एनजीओ क्लीनिक खोला था, जिसमें त्रासदी के पीड़ितों को मुफ्त इलाज मिलता है. इतना ही नहीं डोमिनक लैपिएरे ने भोपाल के ओरेया बस्ती इलाके में एक प्राइमरी स्कूल भी खोला है. डोमिनिक लैपिएरे को उनके योगदान के लिए साल 2008 में देश के तीसरे सबसे बड़े सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था.


हालांकि डोमिनिक लैपिएरे को साल 2009 में विवादों का भी सामना करना पड़ा, जब भोपाल गैस त्रासदी के समय भोपाल पुलिस के डीजीपी रहे स्वराज पुरी ने डोमिनिक लैपिएरे के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था. साथ ही कोर्ट ने किताब की बिक्री पर भी रोक लगा दी थी. हालांकि बाद में एमपी हाईकोर्ट ने इस प्रतिबंध को हटा दिया था. 


डोमिनिक लैपिएरे को भारत से कितना प्यार था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया  जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन के कई साल कोलकाता में भी बिताए और कोलकाता पर एक किताब लिखी सिटी ऑफ जॉय. यह किताब डोमिनिक लैपिएरे की बेस्ट सेलिंग बुक है और इस किताब ने डोमिनिक लैपिएरे को दुनियाभर में पहचान दी. आज भी कोलकाता को सिटी ऑफ जॉय के नाम से जाना जाता है.