भोपालः साल 1984 में 2-3 दिसंबर की ठंडी रात में भोपाल अपने इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) की गवाह बना. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब हजारों लोग जहरीली गैस से मौत के मुंह में जा रहे थे और पूरे शहर में डर और भगदड़ का माहौल था, उस वक्त राज्य के तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह (Arjun Singh) इलाहाबाद निकल गए थे! इस बात का खुलासा खुद अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा A Grain of Sand in the Hourglass of Time: An Autobiography में किया था. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अर्जुन सिंह ने बताया कि वह इस मुश्किल घड़ी में अपने बचपन के स्कूल में प्रार्थना के लिए गए थे ताकि उन्हें हिम्मत मिल सके. अर्जुन सिंह (Arjun Singh) ने बताया कि वह गैस पीड़ितों के लिए प्रार्थना करने गए थे. अर्जुन सिंह लिखते हैं कि 3 दिसंबर 1984 की सुबह मैंने भोपाल से इलाहाबाद के लिए फ्लाइट पकड़ी, जो कि भोपाल से 550 किलोमीटर दूर था. इलाहाबाद में मैं अपने पुराने स्कूल सेंट मेरी कॉन्वेंट गया, जहां प्रिंसिपल की इजाजत लेकर मैं प्रार्थना के लिए चैपल में बैठा और वहां गैस कांड पीड़ितों के लिए प्रार्थना की. उल्लेखनीय है कि इतने बड़े कांड के वक्त राज्य के सीएम के इस तरह अचानक दूसरे राज्य चले जाने पर भोपाल में प्रदर्शन भी हुए थे और प्रदर्शनकारियों ने अर्जुन सिंह पर भागने का आरोप लगा दिया था. 


मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय प्रशासन ने यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री (Union Carbaide Factory) में जहरीली गैस लीक होने के बाद तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह को सलाह दी थी कि वह भोपाल से कुछ समय के लिए दूर रहें. 4 दिसंबर को तत्कालीन पीएम राजीव गांधी भी भोपाल आए थे और इस दौरान भी लोगों ने हादसे की रात अर्जुन सिंह के भोपाल से चले जाने का मुद्दा उठाया था. बाद में इसकी जांच के लिए एक कमीशन का भी गठन किया गया था. हालांकि कुछ माह बाद ही इस कमीशन को खत्म कर दिया गया था. 


भोपाल गैस त्रासदीः गुमनामी की मौत मरा था हादसे का दोषी वारेन एंडरसन! एक फोन कॉल से हो गया था रिहा


बता दें कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2-3 दिसंबर की रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के स्टोरेज टैंकों में से करीब 40 टन जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हुई थी, जिसमें 3000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. हालांकि भोपाल गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे अब्दुल जब्बार आदि का मानना था कि इस त्रासदी में 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और 5 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे.