राहुल सिंह राठौर/उज्जैनः आज से चैत्र नवरात्र विक्रम संवत् वर्ष 2079 की शुरुआत हो चुकी है. बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में भी गुड़ी पड़वा पर्व की खूब धूम होती है. सुबह ही मां क्षिप्रा को चुनर ओढ़ाकर और शंख बजाकर हिंदू नववर्ष की शुरुआत की गई. बता दें कि माता सती की 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ की स्थापना उज्जैन नगरी में हुई थी. मान्यता है कि यहां राजा विक्रमादित्य ने माता को खुश करने के लिए उनके चरणों में अपना शीश अर्पित किया था.  


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बता दें कि उज्जैन में 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माता हरिसिद्धि के रूप में विराजमान हैं. धार्मिक नगरी उज्जैन में भगवान शिव के साथ शक्ति भी विराजमान हैं. मान्यता है कि उज्जैन नगरी में माता सती की कोहनी गिरी और वो स्थान माता हरिसिद्धि के नाम से जाना गया. नवरात्र में लोग देवियों के अलग-अलग रूप में पूजते हैं. कुछ लोग इसमें एक समय का तो कुछ लोग दोनों समय का उपवास रखते हैं और दुर्गा चालीसा का पाठ कर पूरे विधि-विधान से देवी का पूजन करते हैं. 


चैत्र शुक्ल की एकम सबसे खास इसलिए भी मानी जाती है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से नया पंचाग शुरू हुआ था. जिसे उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने 2000 साल पहले विक्रम संवत के रूप में शुरू किया था. सनातन धर्म को मानने वाले इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाते हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पहले दिन मंदिर के पुजारियों द्वारा और घरों में परिवार के सदस्यों द्वारा घट स्थापना की जाती है. 9 दिन तक पूजन अर्चन चलता है. 9वें दिन माता के लिए विशेष पूजन हवन किया जाता है. 


ऐसी मान्यता है उज्जैन में हर 12 वर्षो में अकाल पड़ता था, जिसको दूर करने के लिए उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने सभी देवियों को प्रसन्न किया था और इसी वजह से यहां माता का प्रकोप कम है. उज्जैन में शांति बनी रहने का यही एक कारण है सभी भक्तों पर माता का आशीर्वाद बना रहता है.