Dhar Bhojshala ASI Survey: मध्य प्रदेश के धार जिले के भोजशाला का ज्ञानवापी की तरह सर्वे किया जाएगा.  हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण के अपर निदेशक ने इंदौर डिविशनल कमिश्नर, धार जिले के कलेक्टर, एसपी को पत्र लिखा है, जिसमें सर्वे की बात कही गई है. बता दें कि आगामी 22 मार्च से ASI सर्वे करेगी. 


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कोर्ट के आदेश के बाद भोजशाला मामले को ज्ञानवापी मस्जिद की तरह देख रहे हैं. उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में हुए  ASI के सर्वे के बाद हिंदू पक्ष को वहां पूजा का अधिकार मिल गया है. दोनों ही मामलों में काफी समानताएं हैं. सर्वे के बाद ये तय हो पाएगा कि आखिर भोजशाला पर किसका अधिकार होता है. 


क्या है भोजशाला
11वीं शताब्दी में मध्य प्रदेश के धार जिले में परमार वंश का शासन था. 1000 से 1055 ई. तक राजा भोज धार के शासक थे. खास बात यह थी कि राजा भोज देवी सरस्वती के बहुत बड़े भक्त थे. 1034 ई. में राजा भोज ने एक महाविद्यालय की स्थापना की थी, यह महाविद्यालय बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना गया, जिस पर हिंदू धर्म के लोग आस्था रखते हैं. 


ऐसे बना मस्जिद 
इतिहासकार बताते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी ने 1305 ई. में भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था. इसके बाद 1401 ई. में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में एक मस्जिद बनवाई. इसके बाद महमूद शाह खिलजी ने 1514 ई. में भोजशाला के एक अलग हिस्से में एक और मस्जिद बनवाई. 1875 में खुदाई करने पर यहां से मां सरस्वती की एक प्रतिमा का निकली थी. जिसे बाद में मेजर किंकैड लंदन लेकर गए. यह प्रतिमा अब लंदन के संग्रहालय में है, जिससे इसे वापस लाने के लिए एक याचिका दायर की गई है.


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क्या है विवाद 
भोजशाला पर विवाद बात करें तो हिंदू संगठन भोजशाला को सरस्वती को समर्पित मंदिर मानते हैं. हिंदुओं का मानना है कि राजवंश के शासनकाल के दौरान कुछ समय के लिए मुसलमानों को भोजशाला में नमाज की अनुमति मिली थी. वहीं इसके विपरीत, मुस्लिम समुदाय भोजशाला में नमाज अदा करने की लंबे समय से चली आ रही परंपरा का दावा करता है. मुसलमान भोजशाला को भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं. हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद अब सर्वे होगा जिसके बाद स्थिति साफ हो जाएगी. 


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