Guru purnima 2023: गुरु पूर्णिमा के मौके पर खंडवा के दादाजी धूनीवाले (Dhuniwale Dadaji) का मंदिर एक बार फिर लाखों भक्तों की आस्था के सैलाब में सराबोर होने जा रहा है. दादा जी के अनुयाई विदेशों में भी हैं. देश-विदेश से आने वाले भक्तों को ध्यान में रखते हुए मंदिर ट्रस्ट 3 दिन तक गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाता है, प्रमुख उत्सव रविवार को मनाया जाएगा. दो दिन पहले से ही भक्तों का यहां आना शुरू हो गया है. लगभग 4 से 5 लाख लोग यहां दादाजी धूनीवाले की समाधि पर मत्था टेकने आते हैं. खास बात यह है कि इन श्रद्धालुओं के लिए पूरा शहर मेजबानी करता है. जगह-जगह निशुल्क भंडारे और सेवा के कार्य खंडवा के लोगों की ओर से किए जाते हैं.


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बता दें कि अवधूत संत केशवानंद महाराज ने 1930 में यहां समाधि ली थी. वह नर्मदा के अनन्य भक्त थे और अपने साथ हमेशा एक धूनी जलाए रखते थे. यही कारण है कि उन्हें दादाजी धूनीवाले कहा जाता है. 1930 से यह धूनी लगातार उनकी समाधि के सामने प्रज्वलित होती आ रही है. उनके शिष्य और छोटे भाई ने भी यहां 1941 में समाधि ली थी.


कैसे बना मंदिर
मूलत: यह एक अखाड़ा था जो देशाटन करते हुए खंडवा पहुंचा था. यहीं पड़ाव डाला और कुछ दिनों बाद ही दादाजी यहां समाधि लीन हो गए. कालांतर में उनके शिष्यों ने यहां भव्य मंदिर बना दिया. तभी से यह दादाजी धूनीवाले का मंदिर कहलाने लगा. गुरु शिष्य परंपरा की अनोखी मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में देश भर से श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में ना तो कोई पंडा पुजारी व्यवस्था है और ना ही इस मंदिर के दरवाजे कभी बंद होते हैं. समाधि के सामने जलने वाली धूनी में ही सब कुछ स्वाह किया जाता है.


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मंदिर में स्थित दो समाधि
दादाजी मंदिर के प्रमुख ट्रस्टी सुभाष नागौरी ने कहा कि इस मंदिर में दो समाधि एक केशवानंद महाराज की और दूसरी उनके शिष्य और भाई हरिहरानंद महाराज की हैं. दोनों ही अवधूत संत थे. नग्न अवस्था में रहते थे. पवित्र नदी नर्मदा के किनारे वर्षों तक आराधना की और आध्यात्मिक शक्ति के बल पर ही वह पूजे जाने लगे. वह हमेशा अपने साथ एक जलती हुई धूनी रखते थे. श्रद्धालु भक्ति भाव से जो कुछ भी लाता सब इस धूनी में स्वाहा कर दिया जाता है.


हर मुराद पूरी करते दादाजी
देश विदेश तक उनके अनुयाई फैले हैं. गुरु पूर्णिमा के मौके पर वह अपनी मुरादे लेकर आते हैं. मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से कई समूह सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी होते हैं. महाराष्ट्र के पांढुर्ना और बैतूल जिले से अनुयायियों के समूह पिछले 50 सालों से लगातार पैदल यात्रा करते हुए यहां पहुंचते हैं और निशान अर्पित करते हैं. अनुयायियों का मानना है कि इस पैदल यात्रा में उनकी रक्षा दादाजी धूनीवाले करते हैं और उनसे जो कुछ भी मांगा जाता है वह मुराद पूरी होती है.


24 घंटे खुला रहता है दादाजी का मंदिर
पूरे देश में खंडवा का यह मंदिर ही एकमात्र ऐसा स्थान है, जो 24 घंटे खुला रहता है. यहां कोई पंडा पुजारी नहीं होता है. श्रद्धालु स्वयं चादर चढ़ाते हैं, दर्शन करते हैं और प्रसाद पाकर निकल जाते हैं. दादाजी की समाधि के सामने अनवरत जल रही धूनी ही उनकी शक्ति मानी जाती है.  श्रद्धालु भी इसी धूनी में सब कुछ स्वाहा कर देते हैं. खासकर सूखा नारियल ही इस धूनी में अर्पण किया जाता है. पीढ़ियों से इस मंदिर में सैकड़ों किलोमीटर चलकर पैदल आने वाले अनुयाई उन्हें आज के युग का भगवान मानते हैं. यहां प्रज्वलित अखंड धूनी 93 सालों से निरंतर जल रही है. वहीं मंदिर के भंडार में प्रसादी बनाने के लिए चूल्हा 93 साल से निरंतर जल रहा है. मान्यता के मुताबिक दादाजी की शक्ति इसी धूनी में समाई है, इससे निकलने वाली भभूत को आज भी लोग प्रसाद की तरह ग्रहण करते हैं.


निशुल्क सेवा की जाती है
इस मंदिर में दादाजी धूनीवाले के शिष्य की ओर से बनाए हुए कुछ सख्त नियम भी है, जिनका पालन सख्ती से किया जाता है. यहां चमड़े की वस्तुएं प्रतिबंधित है, टिक्कड़ और चटनी प्रमुख प्रसाद लोगों को दिया जाता है. देशभर से आने वाले अनुयायियों के लिए खंडवा के लोग निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं.  यहां 200 से ज्यादा भंडारे शहर को जोड़ने वाले प्रमुख मार्गों से लेकर बाजार तक में लगाए जाते हैं. डॉक्टर, कुली , बस, रिक्शा, मेडिकल फैसिलिटी,धर्मशालाएं और यहां तक कि लोग अपने मकान के खाली कमरे भी श्रद्धालुओं के ठहरने लिए खोलते हैं. वो भी एक दम मुफ्त.  तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं को निशुल्क सेवा देने की अनूठी मिसाल खंडवा में देखने को मिलती है. सबसे खास बात ये कि खंडवा देश का पहला ऐसा शहर है, जहां पर्व पर तीन दिन सराफा बाजार बंद रखा जाता है.


आकर्षक तरीके सजा मंदिर 
इस बार भी महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालू आएंगे.  जिस वजह से प्रशासन ने खास इंतजाम किए हैं. दूसरी तरफ श्रीधूनीवाले दादाजी दरबार को बड़े ही आकर्षक तरीके से सजाया गया है.