दुर्ग/हितेश शर्मा: रूस और भारत की दोस्ती के प्रतीक मैत्री बाग जो व्हाइट टाइगर के लिए जाना जाता है, वहां से एक खुशखबरी आई है. देश में लगातार घटती व्हाइट टाइगर की संख्या एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है. हाल ही में छ्त्तीसगढ़ के दुर्ग के मैत्री बाग में भी कुछ व्हाइट टाइगर की मौत से संख्या घटने का खतरा बढ़ गया था. इस बीच सोनम के दूसरे जू चले जाने से सुल्तान अकेला पड़ गया था. इसके बाद उसकी नई साथी रोमा के साथ बीडींग करवाई गई. जिसका परिणाम यह निकला कि अब व्हाइट टाइगर का कुनबा बढ़ गया है. जू में नए मेहमान की एंट्री से पर्यटक भी खुश हैं. 


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2 माह तक नन्हें शावक को विशेष निगरानी में रखा गया और जब सब कुछ बेहतर और उचित पाया गया तो नन्हें शावक को उसकी मां के साथ आम पिंजरे में भेज दिया गया शावक का नाम सिंघम रखा गया है .अब इसे उसकी मां रोमा के साथ केज में रखा गया है. इसे देखने के लिए लोग बेताब हैं.  


पर्यटक कब देख सकते हैं नन्हे सिंघम को
इसी बीच पर्यटकों के लिए भी ये एक अच्छी खबर है कि अब आम पर्यटक भी इस नन्हे सिंघम को देख सकते हैं. मैत्री बाग में दो बाघिन समेत सफेद टाइगर की संख्या 7 हो गई हैं. लोगों को मैत्री बाग में घूमने की इजाजत मिल गयी है, जो हर किसी के चेहरे पर खुशी की वजह बन गयी है. लगातार घटती व्हाइट टाइगर की जनसंख्या पर्यटकों के लिए भी दुखद बनी हुई थी. व्हाइट टाइगर की बढ़ती तादाद की खुशी पर्यटकों के चेहरे पर साफ झलक रही है. 


इससे पहले 2018 में हुआ था जन्म
मैत्री गार्डन के केज नंबर-7 में सफेद बाघ का शावक अपनी मां के साथ पिंजरे में इधर-उधर घूम रहा है. लंबे समय के बाद मैत्री बाग में सफेद बाघ का शावक देखने को मिल रहा है. मैत्री बाग में अंतिम बार 2018 में सफेद बाघ के शावक रक्षा और आजाद का जन्म हुआ था. उसके बाद से किसी नवजात शावक की किलकारी नहीं गूंजी थी. अब 2022 में नन्हे मेहमान ने मैत्री बाग में कदम रखा है. यह पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बना रहेगा. भारत के व्हाइट टाइगर में से लगभग आधे भिलाई के ही मैत्री बाग की देन है. देश के अधिकतर जू में इनके ही वंशज हैं. बता दें 1972 में सोवियत रूस और भारत की मैत्री के प्रतीक के रूप में मैत्री बाग शुरू किया गया था.