राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: सनातन धर्म में चाहे कोई पर्व हो उसका इतिहास पुराणों में बाबा महाकालेश्वर की अवंतिका नगरी से जरूर जोड़ा जाता है. लेकिन अगर बात भगवान श्री कृष्ण की करें तो उनकी तो शिक्षा स्थली ही अवंतिका नगरी रही है. यहां भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली होने के साथ-साथ एक ऐसा प्रसिद्ध और प्राचीन द्वारकाधीश गोपाल मंदिर है, जो शैव व वैष्णव संप्रदाय के एक होने का खास संदेश देता है. यहां पर अष्टमी पर्व शुरू होते ही  5 दिन तक भगवान की ना मंगला आरती होगी न शयन आरती और ना ही भगवान का श्रृंगार बदला जाता है. इस मंदिर में 5 दिन तक ब्रज बारस तक भगवान का जन्मोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.


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दो साल बाद सजाया गया दरबार
बता दें कि द्वारीकाधीश मंदिर में पिछले दो साल से कोरोना पाबंदी लगने की वजह से जन्माष्टमी का त्यौहार भक्तों के साथ धूम धाम से नहीं मनाया जा रहा था. इस साल कोरोना पाबंदी हटने से द्वारिकाधीश धाम में भक्त और भगवान के बीच दूरी खत्म हो गई है. मंदिर को आकर्षक विद्युत सज्जा से रोशन और फूलों से सुसज्जित किया गया है. आज जन्माष्टमी होने के वजह से सुबह से ही भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की कतार लगनी शरू हो गई है. वहीं मंदिर के गर्भगृह के बाहर महिलाएं भजन कीर्तन कर रही हैं.



5 दिन तक नहीं किया जाएगा श्रृंगार
द्वारिकाधीश मंदिर के पुजारी राम पाठक ने बताया कि भगवान के जन्म लेते ही जो श्रृंगार किया जाएगा. यह श्रृंगार आगामी 5 दिन तक यानी 23 अगस्त को ब्रज बारस तक रहेगा. उस दिन दोपहर में 12 बजे मटकी फोड़ी जाएगी और भगवान का पूजन अभिषेक कर 5 दिन बाद नया श्रंगार किया जाएगा. लेकिन इन 5 दिनों में सिर्फ फूल व माला भगवान की बदली जाएगी. गर्भ गृह भी 5 दिन तक खुला रहेगा. इसके साथ ही मंगला व शयन आरती भगवान की नहीं की जाएगी. 5 दिन तक अनेकों अनेक कार्यक्रम मंदिर प्रांगण में देखने को मिलेंगे.


मंदिर में होता है हरि हर मिलन 
दरअसल माना जाता है कि विश्व भर में द्वारकाधीश गोपाल मंदिर ही एक मात्र ऐसा मंदिर है जो शैव व वैष्णव सम्प्रदाय के एक होने का खास संदेश प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के दौरान आने वाली वैकुंठ चतुर्दशी की रात 12:00 बजे हरिहर मिलन के रूप में देता है, क्योंकि यही वह दिन है जब भगवान महाकालेश्वर (हर रूप में) मंदिर से रात 11:00 बजे पालकी में सवार होकर द्वारकाधीश गोपाल मंदिर रात 12:00 बजे द्वारकाधीश (विष्णु रूप में जिन्हें हरी कहा जाता है) से मिलने पहुंचते हैं और उन्हें सृष्टि का भार 8 माह के लिए सौंप कर ध्यान हेतु योग निद्रा में चले जाते हैं.


जानिए मंदिर का इतिहास
यह मंदिर मराठा स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है, मंदिर के गर्भ गृह में गोपाल कृष्ण के अलावा, शिव पार्वती, गरुड़ और बायजाबाइ की प्रतिमा भी है, महाराज दौलतराव शिंदे की धर्मपत्नी बायजाबाई शिंदे ने अपने आराध्यदेव गोपाल कृष्ण द्वारकाधीश का ये मंदिर उन्नीसवीं शताब्दी में बनवाया था. इस मंदिर के गर्भ गृह में सुसज्जित चांदी का द्वार भी विशेष दर्शनीय है, क्योंकि कहा जाता है द्वार सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर से गजनि ले गया था. वहां से अहमदशाह अब्दाली इसे लाहौर ले गया और महाराज सिंधिया ने उसे प्राप्त कर इस मंदिर में उस द्वार की पुनः प्रतिष्ठा की जो आज भी है. माना जाता है द्वारकाधीश गोपाल मंदिर शहर के मध्य और नगर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है, शहर के मध्य व्यस्ततम क्षेत्र में स्थित इस मंदिर की भव्यता आस-पास बेतरतीब तरीके से बने मकान और दुकानों के कारण दब-सी गई है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दौलतराव सिंधिया की धर्मपत्नी बायजा बाई ने संवत 1901 में कराया था, जिसमें भगवन की प्रतिमा(मूर्ति) स्थापना संवत 1909 में की गई थी. 


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