चंद्रशेखर सोलंकी/रतलाम: भारत ही एकमात्र ऐसा देश है. जहां सबसे अनूठी परंपराएं और अद्भुत त्योहार है. यही भारतीय संस्कृति की ताकत भी है. ऐसी ही एक अनूठी परम्परा रतलाम में दिवाली त्योहार पर देखने को मिलती है.  जिसमें एक तरफ दुख-वियोग का दृश्य है और उसी जगह दूसरी तरफ खुशियों के दीए जलाए जा रहे हैं. दरअसल हम बात कर रहे हैं रतलाम के श्मशान घाट की. जहां रूप चौदस के दिन देर शाम एक तरफ चिता जल रही थी, वहीं दूसरी तरफ लोग रोशनी के महापर्व दिवाली की खुशी में दीए जला रहे थे.


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गौरतलब है कि देशभर में दिवाली के त्योहार का उत्साह और उल्लास है. लेकिन रतलाम जिले में दिवाली के एक दिन पहले शाम को श्मशान भी दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है और आतिशबाजी की गूंज से गुंजायमान होता है.


पूर्वजों के साथ बांटी खुशियां
रूप चौदस या नरक चतुर्दशी की देर शाम रतलाम शहर के त्रिवेणी श्मशान रात में दीयों की रोशनी से जगमगाता नजर आया. रूप चौदस की रात में लोगों ने श्मशान में दिवाली मनाई और रोशनी के साथ ही यहां आतिशबाजी भी की गयी. दरअसल श्मशान में दिवाली मनाने का उद्देश्य ये है कि दिवाली के समय हर जगह खुशियां मनाई जाती हैं लेकिन श्मशान में दुनिया से चले गए पूर्वजों के साथ दिवाली की खुशियां बांटी जाएं.


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पूर्वजों की आत्म की शांति के आयोजन
पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अलग-अलग संस्थाएं इसका आयोजन करती हैं. इस दौरान महिलाएं, बच्चे भी श्मशान में आते है. यहां लोग दिवाली मनाते हैं. रूप चौदस के दिन श्मशान में बड़ी सी रंगोली बनाई जाती है और पूरे श्मशान को दीयों की रोशनी से रोशन किया जाता है. इसके बाद आतिशबाजी भी की जाती है और अंधेरा होने तक लोग यहां दिवाली मनाते है. और अपने पूर्वजों को याद करते हैं.


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ये हमारी संस्था की ताकत
प्रेरणा संस्था ने 15 साल पहले श्मशान में दिवाली मनाने की पहल की थी. अब इस पहल से शहर भर के लोग जुड़ चुके हैं और रूप चौदस की शाम श्मशान पहुंचकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं. प्रेरणा संस्था के संरक्षक गोपाल सोनी ने बताया कि ये हमारी संस्कृति की ताकत है, जिसमें एक तरफ रूप चौदस के दिन श्मशान में चिताएं जल रहीं थी. वहीं दूसरी तरफ शहर भर के लोग श्मशान में दीए जलाकर दिवाली के पर्व की खुशियां मना रहे थे.