मध्य प्रदेश में पहली बार टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देंगी गाय, 10 जिलों का हुआ चयन, सागर का नंबर पहला
Test Tube Animal Baby MP: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)के सागर में पहली बार टेस्ट ट्यूब एनिमल बेबी होने जा रहा है. 2 महीने बाद यहां पर अहमदाबाद की टीम भ्रूण प्रत्यारोपण करेगी. सागर (Sagar) के अलावा एमपी के 10 जिले चयनित किए गए हैं.
Test Tube Animal Baby in Sagar: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के सागर जिले में पहली बार टेस्ट ट्यूब एनिमल बेबी (test tube animal baby) होने जा रहा है. इसका परीक्षण भोपाल (Bhopal) अहमदाबाद और रूड़की में हो रहा था. यहां पर मिली सफलता के बाद अब जमीन स्तर पर उतारने के लिए एमपी के 10 जिलों को चयनित किया गया है. यहां पर 2 महीने बाद रुड़की और अहमदाबाद की टीमें आएंगी और भ्रूण प्रत्यारोपण करेंगी. जिसके द्वारा 11 महीने बाद गायों के बछड़े पैदा होंगे. क्या है ट्यूब एनिमल बेबी जानते हैं.
375 भ्रूण प्रत्यारोपण का लक्ष्य
देश भर के अलग- अलग हिस्सों में आईवीएफ तकनीक के माध्यम से गायों में प्रजनन का प्रयोग कई स्थानों पर चल रहा है. इसके साथ ही इसको जमीन स्तर पर भी उतारने का प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस तकनीक के जरिए एमपी के सागर को 375 भ्रूण प्रत्यारोपण का लक्ष्य मिला है. जिसके जरिए जिले में गायों का चयन किया जा रहा है.
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इस तकनीक का प्रयोग पहले साहीवाल नस्ल की गायों के लिए किया जाता था. मगर अब इस तकनीक के जरिए देसी नस्ल की अच्छी गाय और बैल तैयार किए जाने का काम किया जाएगा. यह काम राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत किया जा रहा है.
मिलेगा अनुदान
इस तकनीक पर खर्च करने के लिए कुल 21 हजार रूपए का खर्च आएगा. जो भी किसान अपनी गायों का गर्भादान कराएगा उसे 19500 रूपए का अनुदान भी दिया जाएगा. इस हिसाब से गर्भादान के लिए केवल 1500 रूपए देने पड़ेंगे. इस योजना के तहत सागर,रायसेन, दमोह, छिंदवाड़ा, खरगोन, नरसिंहपुर, मुरैना खंडवा, सीहोर, विदिशा जिले शामिल किए गए हैं.
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यहां हुई थी पहली नस्ल
भारत में पहली बार कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक से टेस्ट ट्यूब भैंस के बछड़े का जन्म गुजरात मे हुआ था. यह भैंस बन्नी नस्ल की थी. इसके साथ ही भारत में ओपीयू-आईवीएफ तकनीक अगले स्तर पर पहुंच गई थी. पहला टेस्ट ट्यूब बछड़ा, बन्नी नस्ल की भैंस के 6 बार गर्भाधान के बाद पैदा हुआ था. यह प्रक्रिया सुशीला एग्रो फार्म्स के किसान विनय एल.वाला के घर जाकर पूरी की गई थी. इसके बाद देश के कई हिस्सों में इस तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा.
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