Baba Mahakal Shahi Sawari: उज्जैन स्थित प्रसिद्धि ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल की 'शाही' सवारी के नाम को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. BJP ने 'शाही' शब्द पर आपत्ति जताते हुए इस शब्द को हटाने की मांग की है.    BJP प्रवक्ता  यशपाल सिंह सिसोदिया ने CM मोहन यादव से  'शाही' शब्द हटाने की मांग की है. इस पर कांग्रेस ने विरोध किया है, जिसे लेकर सियासत गरमा गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकाल की सवारी का इतिहास बहुत ही रोचक है. इस पूरे विवाद के बीच आइए जानते हैं कि करीब 1100 साल पहले आखिर कैसे बाबा महाकाल की 'शाही' सवारी शुरू हुई,  किसने इसे शुरू किया है और क्या है इसका पूरा इतिहास. 


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क्या है बाबा महाकाल की सवारी
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर क्या है बाबा महाकाल की सवारी. हर साल सावन महीने में सोमवार को बाबा महाकाल नगर भ्रमण पर निकलते हैं. सावन के अलावा भादौ महीने के दो सोमवार भी उनकी यात्रा निकलती है. भादौ माह के दूसरे सोमवार को उनकी आखिरी और 'शाही' यात्रा निकाली जाती है. ये एक भव्य यात्रा होती है, जिसमें  विभिन्न कलाकार, संगीतकार और नर्तक शामिल होते हैं. चांदी के रथ में सवार होकर बाबा महाकाल पूरे शहर का भ्रमण करते हैं और लोगों को आशीर्वाद देते हैं. उनके रथ को खूबसूरत फूलों से सजाया जाता है. भगवान महाकाल के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं. पूरी नगरी बाबा महाकाल के जयकारों से गूंजती है. 


महाकाल की सवारी का इतिहास 
महाकाल की सवारी का इतिहास करीब 1100 साल पुराना है. प्राचीन ग्रेंथों में किए गए उल्लेख के मुताबिक 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने महाकाल की सवारी की परंपरा को बहुत बड़े रुप में शुरू किया था.  इस यात्रा में कई कलाकार और संगीतकार शामिल हुए थे. यहां तक की मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर भी शामिल हुए थे. इसके बाद सिंधिया वंश के राजाओं ने इसे और अधिक भव्य बना दिया. उन्होंने नए रथ और हाथी शामिल किए. इसके बाद यात्रा ने भव्य रूप ले लिया.


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क्या है महाकाल की सवारी का महत्व
बाबा महाकाल की सवारी का बहुत महत्व है. इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु बाबा महाकाल को उनकी पसंद के भोग, फल, मिठाई और दूध अर्पित करते हैं. बड़ी संख्या में दूर-दूर से लोग इसमें शामिल होने के लिए पहुंचते हैं और महाकाल के नाम का जाप करते हैं. इस यात्रा के दौरान पूरी नगरी महाकाल के जयकारों से गूंजने लगती है. 


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महीनों पहले शुरू हो जाती है तैयारी
महाकाल की सवारी और 'शाही' सवारी के लिए कई महीनों पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं. महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी और मंदिर समिति के सदस्य से लेकर श्रद्धालु काफी पहले से तैयारियों में जुट जाते हैं. बता दें कि महाकाल की सवारी को भगवान महाकाल के प्रति भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है. 


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