Saint Shiromani Ramjibaba Mela History: नर्मदांचल की संस्कृति प्राचीन काल से ही साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे की रही है.आज से करीब चार सौ साल पहले रामजी बाबा और सूफी संत गौरीशाह बाबा की मित्रता ने क्षेत्र में जो अमन चैन के बीज बोए उनकी हरियाली से आज भी नर्मदापुरम और आसपास के क्षेत्रों में हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिशाल नजर आती है. इसी कारण आज भी वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वाह नगर में किया जाता है. इसी कड़ी में साम्प्रदायिक सदभावना एवं हमारी संस्कृति के प्रतीक संत शिरोमणि रामजीबाबा मेले का प्रारंभ गौरीशाह बाबा की दरगाह पर चादर चढ़ाने की रस्म के साथ हुआ. बता दें कि संत शिरोमणि श्री रामजी बाबा के मेले का शुभारंभ प्रतिवर्ष इसी परंपरा के साथ किया जाता है.जिसमें समाधि पर पूजा अर्चना के बाद गौरीशाह बाबा की दरगाह पर चादर पेश की जाती है और अमन चैन की दुआ मांगी जाती है.


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दोनों संतों की मित्रता है अमर
मां नर्मदा की गोद में बसे नर्मदापुरम नगर में सैंकड़ों वर्ष पहले आध्यात्मिक संत रामजी बाबा और सूफी संत गोरीशाह बाबा की मित्रता हुई थी. दोनों संतों ने नर्मदांचल में आपसी प्रेम और भाईचारे की बीज बोए. मान्यता के अनुसार, दोनों संतो की मित्रता इतनी प्रगाढ़ हो गई थी कि उनके दुनिया से जाने के बाद आज भी उनकी मित्रता अमर है.


बता दें कि रामजी बाबा की समाधि मंदिर बनाते समय मंदिर की छत नहीं बन पा रही थी, तभी एक भक्त को स्वप्न आया कि जब तक गौरीशाह बाबा की दरगाह से पत्थर लाकर नहीं लगाया जाता, तब तक मंदिर नहीं बन पाएगा. पहले तो लोगों ने इस बात को नहीं माना, लेकिन बाद में ऐसा करने पर छत पूरी हुई.कुछ ऐसा ही वाक्या गौरीशाह बाबा की दरगाह पर हुआ, तब वहां भी समाधि मंदिर से लाकर निशान लगाया गया, तब से लेकर आज तक इस पंपरा को पूरी आस्था के साथ निभाया जाता है. रामजी बाबा का मेला शुरू होने पर समाधि से दरगाह पर चादर पेश की जाती है और गौरीशाह बाबा के उर्स पर दरगाह से समाधि पर निशान चढ़ाया जाता है.


रिपोर्ट: अभिषेक गौर (नर्मदापुरम)