इंदौर: आज इंदौर देशभर में अपने खान-पान और स्वच्छता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन एक और चीज है जो इंदौर को बाकि शहरों से अलग बनाती है वो है अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली झांकी जिसे लेकर शहर और प्रदेशवासियों ही नहीं बल्कि विभिन्न राज्यों के लोग भी उत्साहित रहते हैं. शहर की सड़कें बहुरंगी रोशनी से चमक उठती हैं. जिसे निहारने के लिए हजारों की भीड़ जमा हो जाती है. परंपरागत झांकियों के साथ इंदौर के अखाड़े भी हर साल शस्त्रकला का प्रदर्शन कर दर्शकों को रोमांचित करते हैं. यूं तो देश के कई शहरों में झांकियां निकलती हैं, लेकिन इंदौर की झांकियां कुछ खास हैं वो इसलिए क्योंकि यहां की झाकियां कला, खेल, संस्कृति, ज्ञान, सियासत, धर्म, पर आधारित होती हैं. इस बार भी कुछ ऐसा ही रंग अनंत चतुर्दशी की रात को इंदौर की सड़को पर देखने को मिलेगा.


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98 साल पहले शुरू हुआ झांकियों का सिलसिला 


इंदौर में निकलने वाली झांकियों का इतिहास देश की आजादी से भी पुराना है. हर वर्ष निकलने वाली झांकियों का यह सिलसिला करीब 98 साल पहले वर्ष 1924 में शुरू हुआ था. उस वक्त शहर को आर्थिक रुप से चलाने वाली मिलों ने झांकियों की शुरुआत की थी. उस वक्त के इन्दौर के सबसे बड़े उद्योगपति सर सेठ हुकुमचंद की हुकुमचंद मिल ने सबसे पहले 1924 में झांकी निकाली थी. वक्त के साथ कई और मिलें भी उत्सव का हिस्सा बनती गईं और कारवां चल पड़ा. जैसे मालवा मिल, स्वदेशी मिल, कल्याण मिल, राजकुमार मिल, समय के साथ इसमें कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं, इन्दौर प्रशासन, नगर निगम की झांकियां भी शामिल हो गई. आज आलम यह है कि अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली झांकियों की संख्या 28 से 30 तक पहुंच गई हैं. 


अखाड़े भी हैं आकर्षण का खास केन्द्र


खास बात यह है कि इन झांकियों के काफिले में इंदौर के प्रसिध्द अखाड़े भी जुड़ गए अब आकर्षण का खास केन्द्र बन गए हैं. झांकियों के साथ चलने वाले अखाड़े तलवार, भाले, बनेठी, ढाल से अपनी शस्त्रकला का प्रदर्शन कर दर्शकों को रोमांचित करते हैं. झांकियों के माध्यम से पुराने जमानें की युद्ध कला का प्रचलन होता है. इसके अलावा एक बड़े से रथ पर सवार अखाडों के हट्टे-कट्टे पहलवान अपनी भुजाओं के बल पर हैरतंगेज करतब दिखाते हैं. जिस अखाड़े का प्रदर्शन सबसे सर्वश्रेष्ठ होता है उसे सम्मानित किया जाता है. ठीक इसी तरह झंकियों को भी पुरस्कार और इनामी राशि दी जाती है.


3 महीने पहले शुरु होती है झांकी बनाने की तैयारी 


सामान्य पुतलों और इलेक्ट्रिक लाइटिंग से बनने वाली इन झाकियों को बनने में काफी समय लगता है. कुछ झांकियां इतनी विशाल होती हैं कि इन्हें बनने में कई बार 3 महीनें भी लग जाते हैं. शुरुआती सालों में झांकियां बैलगाड़ी पर निकाली जाती थीं, लेकिन इसकी जगह अब बड़े-बड़े ट्रकों ने ले ली है.  लालटेन, गैस बत्ती से रोशन होने वाली झांकियां अब इलेक्ट्रिक लाइटिंग से जगमग होती हैं.


मुंबई से दीदार करने आते हैं लोग


शुरुआती दौर में झांकियों को मिल के मजदूर, कर्मचारी ही बनाते थे बाद में इसमें जरूरत के हिसाब से कलाकार भी जु़ड़ते गए. झांकी बनाने में मिल से ही कपड़े का इस्तेमाल होता था. आज झांकी बनाने में करीब 6 से 7 लाख रुपये का खर्च आता है. इसके लिए लोगों के अलावा IDA,नगर निगम  फंड उपलब्ध कराते हैं.  इन्दौर की झांकियों की प्रसिद्धता का आलम ऐसा है कि लोग मुंबई से इन झांकियों को देखने आते हैं. इस दौरान लोग सड़क के किनारे पहले से ही जगह घेर लेते हैं. 


कोरोना ने तोड़ी प्राचीन परंपरा


अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली झांकियों की परंपरा 1975 से 1977 तक इमरजेंसी में भी नहीं टूटी, लेकिन वो परंपरा 2 साल पहले कोरोना की वजह से टूट गई. साल 2020 और 2021 में कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासन ने झांकियों पर रोक लगा दी थी. तब 96 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब अनंत चतुर्दशी पर शहर की सड़कें उसी तरह दिख रही थीं जैसे कोई आम दिन हो.  
2 साल बाद झांकियों के लिए विशेष तैयारियां


इन्दौर में कोरोना महामारी के बाद हर त्यौहार बड़े ही धूम-धाम से मनाए जा रहे हैं. अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली झांकियों को लेकर भी विशेष तैयारियां की हैं. झांकी मार्ग में आने वाली तमाम बाधकों को हटा लिया गया है. खुली नालियों और सड़कों को दुरुस्त किया गया है. आने वाले दिनों में इन्दौर के जनप्रतिनिधि और अधिकारियों के दौरे होने हैं. झांकियों के लिए शहरवासी और आयोजनकर्ता जोश से लबरेज हैं