Betul News: होली का त्यौहार खुशियां लेकर आता है. कहा जाता है कि इस दिन की खुशी में दुश्मन भी एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं और गले मिलकर होली की खुशी मनाते हैं. वहीं मध्य प्रदेश में एक ऐसा गांव है जहां रंगों का त्योहार कहे जाने वाले होली की शुरुआत शिवरात्रि से ही हो जाती है. जिसे जिले भर के विभिन्न गांवों में एक माह तक सामूहिक रूप से मनाया जाता है. आज हम आपको इस गांव के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.


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आदिवासियों के बीच इस नाम से है मशहूर
बैतूल जिले के आदिवासी समुदाय गोंड, परधान और गोंड गायकी समुदाय अपनी अच्छी फसल होने पर शिवरात्रि के बाद होली खेलना शुरू करते हैं. यह शिमगा होली के नाम से प्रसिद्ध है. जिले के आदिवासी लोग अपने परिवार के साथ चमढ़ी, छोटा महादेव भोपाली, सालबर्डी, मढ़देव असाडी, डुलाहरा बिघवा व अन्य शंभु देव स्थानों पर जाते हैं. 



 फागुन चांद दिखने पर नया वर्ष मनाते हैं
आदिवासी समुदाय के लोग शिवरात्रि के दो-तीन दिन बाद फागुन चंद्रमा दिखाई देने पर नया साल मनाते हैं. फागुन का चांद दिखते ही लोग घरों में एक-दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं. आदिवासी समाज में फागुन का महीना नए साल का पहला महीना होता है. हर गांव में फागुन चंद्रमा दिखने के 15 दिन बाद तक लकड़ियां इकट्ठी की जाती हैं. उसके बाद फागुन माह की पूर्णिमा को सभी गांवों में होली जलाई जाती है, जिसे आदिवासी समाज में शिमगा कहा जाता है. उसके बाद जिस गांव में खंडेराई स्थित है वहां खंडेराई मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे आमतौर पर मेघनाद मेला कहा जाता है.


महिलाएं गाती हैं गोड़ी गीत
बता दें कि जिले के आदिवासी समुदाय एक-दूसरे को राख, गुलाल लगाकर और सेवा-सेवा कहकर एक-दूसरे से गले मिलकर होली मनाते हैं. इसके बाद आदिवासी समुदाय की महिलाएं गोंडी गीत गाते हुए पुरुषों से फगवा मांगती हैं. आदिवासी समाज में होली यानी शिमगा त्योहार अन्य समाजों की तुलना में अलग ढंग से अपनी पारंपरिक संस्कृति और रीति-रिवाज के अनुसार मनाया जाता है. आदिवासियों का शिमगा एक माह तक चलता है.