राकेश जयसवाल/खरगोन: खरगोन शहर का प्राचीन मुरली मनोहर मन्दिर भगवान कृष्ण का ऐसा मंदिर हैं, जिसमे कंस की दासी कुबजा की पूजा होती है. 250 पुराने इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण मुरली मनोहर के रूप में राधाजी के साथ विराजित है, साथ ही कंस की दासी कुब्जा की मूर्ति भी विस्थापित है. संभवतः यह देश का एकमात्र मंदिर है. जहां राधा-कृष्ण की मूर्ति के साथ-साथ कंस की दासी कुब्जा की भी वर्षों पुरानी मूर्ति स्थापित है. 


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बता दें कि सफ़ेद स्टोन के संगमरमर पत्थर की आकर्षक भगवान कृष्ण और राधारानी की मूर्ति है. वहीं पीतल की कुब्जा की मूर्ति देखते ही बनती है. बताया जाता है कुब्जा कंस की दासी थी. जो प्रतिदिन चंदन का लेप कंस के लिए तैयार करती थी. 


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कुब्जा को श्री कृष्ण ने बनाया सुंदरी
मथुरा नगरी में जब पहली बार भगवान कृष्ण पहुंचे तो कंस के महल में उनकी इस कुब्जा दासी से मुलाकात हो गई. जिस कुब्जा को कुरूप एंव कुबड़ी होने से सदैव बुरा ही सुनने को मिलता था भगवान कृष्ण उसे सुंदरी कहां जा रही हो यह कहकर पुकारते है तो कुब्जा भगवान के अमृत तुल्य वचन सुनकर एंव मनमोहक रूप देखकर कुब्जा ने कंस के लिए ले जा रही चन्दन के लेप को भगवान कृष्ण को लगा दिया. भगवान कृष्ण प्रसन्नचित होकर कुब्जा के कुरूप एंव कुबड़ेपन को खत्म कर उसे सुंदर युवती स्वरूप दे दिया. कुब्जा श्राप के कारण कुरूप में थी, उसे यह विदित भी था भगवान जब कृष्ण अवतार में आएंगे तब उसका उद्धार होगा. उसकी मनोकामना भगवान की गोपी के रूप में पूरी होगी. यह श्रीमद्भागवत गीता में उल्लेख भी है. 


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1008 गोपियों में कुब्जा भी
मन्दिर में श्रद्धालु संगीता शुक्ला बताती हैं कि कुब्जा ने भगवान से किसी जन्म में उनकी गोपी बनने की अभिलाषा की थी. वह पूरी होती है. इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण की 1008 गोपियों में कुब्जा को भी माना जाता है. खरगोन के इस अनोखे मुरली मनोहर मंदिर में कुब्जा को भी राधा-कृष्ण के साथ पूजा जाता है. मान्यता है कि कुब्जा दासी की तरह ही इस मंदिर में जो भी बीमार, दुखी एंव शारीरिक समस्याओं वाले लोग दर्शन करते है. उनके रोग दूर होते है. वैसे मंदिर में पुजारी शुक्ला परिवार द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. मूर्तियां भी छोटी स्थापित की हुई है. भगवान कृष्ण के विशेष दिनों जन्माष्टमी आदि अवसरों पर ही अधिक दर्शन को पहुंचते है.