प्रदीप शर्मा/भिंडः मध्य प्रदेश के भिंड की पहचान बीहड़ और अपने बागी स्वभाव के लिए है लेकिन यहां के नौजवानों का देश की सुरक्षा में भी अहम योगदान है. 1962 का भारत चीन युद्ध हो या फिर 1971 या 1999 का कारगिल युद्ध, हर बार भिंड के सपूतों ने भारत मां की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दी है. देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले जवानों की फेहरिस्त लंबी है. हर साल 26 जुलाई को, कारगिल युद्ध में जीत के उपलक्ष्य में 'विजय दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. ऐसे में आज कारगिल विजय दिवस के अवसर पर हम आपको कारगिल युद्ध में अपनी वीरता से जिले का नाम रोशन करने वाले कुछ वीरों के बारे में बता रहे हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

सुल्तान सिंह नरवरिया
कारगिल युद्ध के दौरान 527 वीर योद्धाओं ने अपने प्राणों की आहूति दी थी. इनमें से तीन मध्य प्रदेश के जिले भिंड से थे. इनमें द्वितीय बटालियन राजपूताना राइफल्स रेजीमेंट के शहीद हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की शहादत यादगार है. भिंड के छोटे से गांव पीपरी में 16 जून 1960 को सुल्तान सिंह नरवरिया का जन्म हुआ था. हायर सेकेंडरी करने के बाद वह साल 1979 में भारतीय सेना में शामिल हो गए. शहीद सुल्तान सिंह नरवरिया के बेटे देवेंद्र नरवरिया बताते हैं कि जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ, उस वक्त उनके पिता छुट्टियों पर घर आए हुए थे. युद्ध शुरू होने की जानकारी मिलते ही वह रवाना हो गए थे. 


देवेंद्र सिंह ने बताया कि उनके पिता को ऑपरेशन विजय का हिस्सा बनाया गया था. 10 जून को उन्हें टुकड़ी का सेक्शन कमांडर बनाया गया. उनकी टुकड़ी को पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जे में ली गई तोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर में बनी चौकी को आजाद कराने की जिम्मेदारी दी गई थी. 12-13 जून की दरमियानी रात माइनस डिग्री तापमान में उनकी टुकड़ी ने भारी गोलीबारी के बीच आगे बढ़ना शुरू किया. इस गोलीबारी में कुछ सैनिक शहीद हो गए. 


पाकिस्तानी सैनिक ऊंचाई से एलएमजी से गोलियां बरसा रहे थे लेकिन भगवान राम के जयकारों के बीच सुल्तान सिंह नरवरिया और उनकी टुकड़ी का एक ही संकल्प था और वो था चौकी पर फिर से तिरंगा फहराने का. दुश्मन की गोलीबारी में सुल्तान सिंह नरवरिया भी घायल हो गए लेकिन इसके बावजूद उन्होंने 8-10 दुश्मनों को ढेर कर अपना टास्क पूरा किया और तोलोलिंग चोटी पर तिरंगा फहराया. हालांकि इस लड़ाई में सुल्तान सिंह नरवरिया अपने 17 जवानों के साथ शहीद हो गए. 


वीर चक्र से हुए सम्मानित
सुल्तान सिंह नरवरिया को उनकी वीरता के लिए साल 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित किया. साथ ही केंद्र सरकार ने उनके परिवार को भिंड के मेहगांव में जमीन देकर घर का निर्माण कराया. साथ ही एक पेट्रोल पंप भी दिया. जिससे शहीद सुल्तान सिंह के परिवार को जीवन यापन में कोई परेशानी ना हो. हालांकि शहीद के परिजनों को राज्य सरकार से नाराजगी है. सुल्तान सिंह नरवरिया के बेटे देवेंद्र सिंह बताते हैं कि पिता के शहीद होने के बाद राज्य सरकार ने परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की बात कही थी लेकिन कई कोशिशों के बाद भी परिवार के किसी सदस्य को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकी. देवेंद्र सिंह नरवरिया और उनके परिवार को पिता की शहादत पर गर्व है. 


देवेंद्र सिंह भी सेना में जाना चाहते थे लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते नहीं जा पाए. देवेंद्र कहते हैं कि वह अपने बच्चों को आर्मी में भेजना चाहते हैं. हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में देवेंद्र सिंह नरवरिया पार्षद चुने गए हैं.  


शहीद ग्रेनेडियर दिनेश सिंह भदौरिया
भिंड के ही लांस नायक दिनेश सिंह भदौरिया भी कारगिल युद्ध में शामिल हुए थे और दुश्मनों को खदेड़ दिया था. हालांकि कारगिल युद्ध के बाद 31 जुलाई 2000 को कारगिल क्षेत्र में ही पाकिस्तानी घुसपैठ के दौरान हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए थे. दिनेश सिंह भदौरिया को उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 


शहीद लांस नायक करन सिंह
भिंड जिले के पूर्व थाना अंतर्गत आने वाले सगरा गांव में करण सिंह का जन्म हुआ था. वह भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट में शामिल हुए थे और कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया. 16 नवंबर 1999 को कारगिल युद्ध में वह शहीद हो गए थे. शहीद लांस नायक करन सिंह को भी मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.