खंडवा:  भगवान राम की कल्पना करते ही सुंदर, सुशील, सौम्य और सबका भला करने वाले दयालु पुरुष की छवि दिमाग में उभरती है. देश के लगभग सभी मंदिरों में भी इसी तरह के स्वरूप वाली प्रतिमाएं स्थापित है. लेकिन खंडवा में एक प्राचीन मंदिर ऐसा भी है, जहां पर मूंछ वाले भगवान राम विराजित है. इतना ही नहीं लक्ष्मण जी की भी मूंछ हैं. खास बात यह है कि इस मंदिर में भगवान राम लक्ष्मण सीता जी की दो-दो प्रतिमाएं स्थापित है. लोग इसे राजाराम मंदिर कहते हैं तो कुछ लोग मूंछ वाले राम भगवान का मंदिर भी कहते हैं.


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हम बात कर रहे हैं खंडवा जिले के भामगढ़ गांव की, जो कभी प्राचीन समय में आदिवासी राजा राव लखमे सिंह की रियासत रही है. लोग बताते हैं कि भगवान राम ने लंका जीतने के बाद जब अयोध्या का राज पाठ संभाला था, उस समय चक्रवर्ती राजा के रूप में भगवान राम की मूंछ वाली प्रतिमा की कल्पना की गई थी. इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर के राम दरबार में भगवान राम और लक्ष्मण की मूंछ है. वर्षों से ग्रामीण मंदिर में रखी इन छह प्रतिमाओं की पूजा करते आ रहे है.


दो-दो मूर्ति वाला एक मात्र राम मंदिर!
आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां पर सम्भवतः भगवान राम की दो-दो मूर्तियां और मूंछ वाली प्रतिमाओं वाला देश का एकमात्र राम मंदिर है. 22 जनवरी को इस मंदिर को अयोध्या की तरह सजाया जाएगा.


जानकारी के मुताबिक यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है. भामगढ़ खंडवा जिले की प्राचीन रियासत रही है. तत्कालीन राजा लखमें सिंह ने राजस्थान से बनवाई गई मूर्तियों की अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद यहां स्थापित किया था. बाद में यह रियासत पेशवा शासकों के अधीन चली गई, तब रियासत प्रमुख भुसकुंडे  ने भी यहां पर राम लक्ष्मण और सीता का राम दरबार स्थापित करवाने का संकल्प लिया. 


एक नया मंदिर बनवाने के बाद उसमें यह प्रतिमाएं स्थापित की जाना थी लेकिन नया मंदिर नहीं बन पाया. इसीलिए यह प्रतिमाएं भी इसी मंदिर में रखवा दी गई. तब से आज तक ग्रामीण राम दरबार की छह मूर्तियों की पूजा करते आ रहे है. भगवान की मूंछे इसीलिए है कि इस मंदिर में भगवान राम को एक शासक के तौर पर स्थापित किया गया है.


भगवान राम की भामगढ़ पर कृपा
खण्डवा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर भाम नदी के किनारे पहाड़ी पर स्थित भामगढ़ कई प्राचीन मान्यताओं और विशेषताओं के लिए जाना जाता है.  भामगढ़ राज परिवार के शासक राव लखमे सिंह द्वारा अति प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था.  गांव के ही 85 वर्षीय उमाशंकर बड़ोले बताते हैं कि हमारी 5 पीढ़ियों के लोग बताते आये हैं कि यह मंदिर 500 साल से भी पुराना है. मंदिर में पेशवा शासनकाल में दो और मूर्तिया शांति, सम्पन्नता के लिए स्थापित की गईं. जिससे यहां गांव के तीन रास्तों पर नदी होने के बावजूद कभी बाढ़ का पानी गांव में नहीं घुसा.