Kheti Kisani: नीमच। काली हीरा कहे जाने वाले अफीम की फसल (Opium Crops Harvesting) तैयार हो गई है. लेकिन, किसानों के चेहरे पर मुस्कान के साथ-साथ अब कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है. मध्य प्रदेश के नीमच (Neemuch) के अफीम किसानों ने परंपरा (Tradition) अनुसार, काली पूजा (Kali Puja) कर डोडा चीरा (Doda Chira) करना शुरू कर दिया है. जानिएं क्या है काली पूजा और डोडा चीरा परंपरा.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अफीम का माना जाता है काली का रूप
मध्यप्रदेश के मालवा में अफीम को काली देवी का रूप तो माना ही जाता है. इसे पूजा भी जाता है. साथ ही इसे काला सोना भी कहा जाता है. वर्तमान समय में मालवा क्षेत्र के किसान के लिए जो बहुमूल्य फसल है. अफीम किसानों को अच्छा पैसा तो दिलाती ही है. साथ ही किसान का समाज में रुतबा भी बढ़ाती हैं.


ये भी पढ़ें: चमत्कारी है MP का ये शिव मंदिर,विरुपाक्ष महादेव के प्रसाद से होती है संतान प्राप्ति


क्यों होती है ये विशेष पूजा
नीमच जिले में अफीम की फसल अपने यौवन पर है. डोडे पक कर तैयार हो चुके हैं. इस कारण किसानों ने शुभ मुहर्त में काली की पूजा करके अफीम में चीरा लगाने का कार्य शुरू किया है. किसान अफीम की खेती में काली की पूजा इसलिए करते हैं कि माता उनके अफीम की खेती को चोर लुटेरों से बचाए और नारकोटिक्स विभाग को जो अफीम देनी रहती है वो कम नहीं पड़े.


खेत में स्थापित की जाती है काली प्रतिमा
मां काली की पूजा कर किसान उनसे मन्नत मांगकर खेत में ही माताजी की स्थापना करते हैं. किसानों का कहना है कि जब अफीम की फसल का कार्य पूर्ण हो जाता है तो चितोड़गढ़ मां काली के मंदिर जाकर दर्शन करते हैं.


ये भी पढ़ें: आव देखा न ताव शेर के बाड़े में लगा दी छलांग, फिर जो हुआ जानकर भरोसा नहीं होगा


असली टास्क शुरू
आपको बता दें की केंद्र सरकार द्वारा किसानों को अफीम के पट्टे दिए जाते हैं. अफीम किसानों को नारकोटिक्स विभाग को एक-एक ग्राम का हिसाब देना पड़ता है यदि औसत मान से किसान ने अफीम कम दी तो अफीम लायसेंस निरस्त भी हो सकता है. ऐसे में किसान इस फसल को अपने बेटे से भी ज्यादा इस देखभाल करते हैं.